Chhotan Shukla Story: तारीख 3 दिसंबर...दिन शनिवार...साल 1994, जब मुजफ्फरपुर में खेला जाता है खूनी खेल! पढ़िए छोटन शुक्ला की मर्डर हिस्ट्री
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Chhotan Shukla Story: तारीख 3 दिसंबर...दिन शनिवार...साल 1994, जब मुजफ्फरपुर में खेला जाता है खूनी खेल! पढ़िए छोटन शुक्ला की मर्डर हिस्ट्री

Bihar Crime Series: बिहार में 90 के दशक में अपराध की दुनिया में कई डॉन ने खूब नाम कमाया और पॉलिटिक्स से उनका सीधा कनेक्शन रहा है. हम पिछली दो सीरीज में आपको बिहार के दो अंडरवर्ल्ड क्रिमिनल्स और बाहुबली देवेंद्र दुबे और बृजबिहारी प्रसाद की कहानी बता चुके हैं. आज हम इस स्टोरी में आपको बिहार के छोटन शुक्ला मर्डर की कहानी बताएंगे कि कैसे छोटन शुक्ला को 3 दिसंबर 1994 को मुजफ्फरपुर में मार गिराया गया था.

छोटन शुक्ला की कहानी

Bihar Crime Series: तारीख 3 दिसंबर...दिन शनिवार...साल 1994 को मुजफ्फरपुर में एक फिर मौत का खूनी खेल खेला जाता है...जब आनंद मोहन के करीबी और क्राइम किंग की हत्या हो जाती है. हत्या करने वाले पुलिस की वर्दी में खूंखार अपराधी होते हैं, जिसके शव यात्रा में गोपालगंज के डीएम की हत्या हो जाती है. इस हत्या के आरोप में आनंद मोहन को उम्रकैद की सजा होती है. आज हम आपने क्राइम सीरीज की कहानी में उस डॉन के बारे में जानेंगे, जिसकी हत्या के बाद बिहार के तत्कालीन मंत्री का मर्डर हो जाता है. हम इस ऑर्टिकल में जानेंगे क्राइम किंग से लेकर सियासी कनेक्शन तक की कहानी. जी हां, हम बात कर रहे हैं उत्तर बिहार के डॉन छोटन शुक्ला की, जिसकी मौत से पूरा बिहार हिल गया था. बिहार की राजधानी भले ही पटना हो, लेकिन अंडरवर्ल्ड की राजधानी मुजफ्फरपुर रही है.

90 के दशक में अपराध की दुनिया में कई डॉन ने खूब नाम कमाया 

दरअसल, बिहार में 90 के दशक में अपराध की दुनिया में कई डॉन ने खूब नाम कमाया और पॉलिटिक्स से उनका सीधा कनेक्शन रहा है. हम पिछली दो सीरीज में आपको बिहार के दो अंडरवर्ल्ड क्रिमिनल्स और बाहुबली देवेंद्र दुबे और बृजबिहारी प्रसाद की कहानी बता चुके हैं. आज हम इस स्टोरी में आपको बिहार के छोटन शुक्ला मर्डर की कहानी बताएंगे कि कैसे छोटन शुक्ला को 3 दिसंबर 1994 को मुजफ्फरपुर में मार गिराया गया था. इसी दौर में बिहार की धरती पर अगर एके-47 सबसे पहले चला तो वह भी मुजफ्फपुर में चला था. इसके सूत्रधार बेगूसराय के अपराधी अशोक सम्राट थे, जिन्होंने मुजफ्फरपुर में एके-47 से फायरिंग की थी.

छोटन शुक्ला मर्डर की कहानी का सियासी कनेक्शन

छोटन शुक्ला मर्डर की कहानी समझने के लिए सबसे पहले तब के बिहार के सियासी हालात को समझना होगा. साल 1990 में लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने थे. लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री बनाने में चंद्रशेखर का अहम किरदार था. दूसरी तरफ वीपी सिंह राम सुंदर दास को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे, लेकिन चंद्रशेखर ने लालू यादव को सपोर्ट किया. चंद्रशेखर के सपोर्ट के बिना लालू यादव का मुख्यमंत्री बनना संभव नहीं था. तब रघुनाथ झा चंद्रशेखर की पार्टी के अध्यक्ष थे. चंद्रशेखर ने फैसला लालू यादव के पक्ष में सुनाया और अपने विधायकों को लालू यादव के पक्ष में वोट करने को कहा. कहा जाता है कि चंद्रशेखर की पार्टी के राजपूत विधायकों का मन लालू यादव के पक्ष में नहीं था, लेकिन उनके पास कोई और चारा भी नहीं था. इसके बाद लालू यादव की राजनीति पूरे शबाब पर शुरू होती है.

बिहार के अंडरवर्ल्ड पर विशेषकर भूमिहार और राजपूतों का दबदबा 

लालू प्रसाद यादव ने मुख्यमंत्री बनते ही पिछड़ों की राजनीति शुरू कर दी. तब बिहार के अंडरवर्ल्ड पर विशेषकर भूमिहार और राजपूतों का दबदबा हुआ करता था. दूसरी पिछड़ी जातियों के लोग इतने बड़े गैंगस्टर नहीं बन पा रहे थे जो इनसे मुकाबला कर सके. उस समय मुजफ्फरपुर के दो बड़े राजनेता हुआ करते थे- एक रघुनाथ पांडेय और ललितेश्वर प्रसाद सिंह. दोनों की छत्रछाया में कई बाहुबली पल बढ़ रहे थे, जिनमें छोटन शुक्ला और अशोक सम्राट का भी नाम भी शामिल था. दोनों एक-दूसरे की जान के दुश्मन थे. इन सबके बीच लालू प्रसाद यादव की नई राजनीति चल रही थी. 

लालू प्रसाद यादव के राज में एक बड़ी घटना

उस समय उत्तर बिहार में एक और बाहुबली हुए बृजबिहारी प्रसाद. माना जाता है कि बृजबिहारी पर लालू प्रसाद यादव का हाथ था. बृजबिहारी मुजफ्फरपुर में पिछड़ों के रहनुमा बनते चले जा रहे थे. इसके बाद जितने भी मनबढ़ और मनचले किस्म के लोग थे. वह बृजबिहारी के साथ जुड़ रहे थे. ये सब गोलबंद होकर एकतरफा राज चाहते थे. तब साल 1992 में लालू प्रसाद यादव के राज में एक बड़ी घटना होती है...28 मार्च 1992 को वैशाली के हेमंत शाही की हत्या हो गई. विधायक हेमंत शाही ललितेश्वर प्रसाद सिंह के करीबी के बेटे थे.

काफी हनक वाले विधायक थे हेमंत शाही 

हेमंत शाही काफी हनक वाले विधायक थे. कहा जाता है कि बिहार विधानसभा में शाही का प्रभाव इतना था कि लाल यादव भी समझते थे कि इनसे उलझना ठीक नहीं है. हेमंत शाही से कोई जल्दी उलझना नहीं चाहता था. इस बीच आनंद मोहन भी अपनी नई राजनीति तलाशने लगे थे उन्हें लगा कि बिहार में सवर्ण राजनीति की गुंजाइश है आगे चलकर उन्होंने बिहार पीपुल्स पार्टी बनाया. इससे पहले जब चंद्रशेखर की पार्टी से कई विधायकों को लालू यादव ने बाहर का रास्ता दिखा दिया था, तो वह आनंद मोहन की बिहार पीपुल्स पार्टी की ओर बढ़ गए थे और इस बीच आनंद मोहन के साथ जो लोग जुड़ रहे थे वह अपने-अपने इलाके के बाहुबली माने जाते थे. इस बीच कई और घटनाएं हुई हैं. वहीं, हेमंत शाही की हत्या के बाद उपचुनाव हुआ और हेमंत शाही की पत्नी वीणा शाही चुनाव लड़ने उतरीं. आनंद मोहन ने वैशाली के उपचुनाव में सक्रिय भूमिका का निर्वहन करते रहें और वीणा शाही को जीत मिली. इसके बाद आनंद मोहन को नया मौका मिला, जब वैशाली लोकसभा का उपचुनाव आया. वैशाली लोकसभा क्षेत्र के मौजूदा संसद का स्वर्गवास हो चुका था और उपचुनाव की घोषणा हो चुकी थी. आनंद मोहन ने अपनी पत्नी लवली मोहन को यहां से निर्दलीय उम्मीदवार बना दिया, उनके सामने किशोरी सिन्हा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा की पत्नी थी और लालू यादव की उम्मीदवार भी किशोरी सिन्हा थीं.

आनंद मोहन का ऐलान, छोटन शुक्ला चुनाव लड़ेंगे

पूर्वी चंपारण का विधानसभा क्षेत्र से यमुना यादव विधायक थे. आनंद मोहन ने ऐलान कर दिया कि यहां से छोटन शुक्ला चुनाव लड़ेंगे, तब तक छोटन शुक्ला मुजफ्फरपुर का बड़ा बाहुबली बन चुका थे. इसके बाद लड़ाई तीखी होती चली गई. छोटन शुक्ला के चुनाव लड़ने के ऐलान होते ही बृजबिहारी भी सतर्क हो गए थे. केसरिया विधानसाभा से छोटा शुक्ला का चुनाव लड़ना बृजबिहारी के प्रभुत्व को चुनौती देना था. ऐसे में खूनी लड़ाई की तैयारी शुरू हो गई थी और इसकी पृष्ठभूमि तय हो गई थी. छोटन शुक्ला के आनंद मोहन की पार्टी पीपीपी का उम्मीदवार बनते ही वह रोज मुजफ्फरपुर से केसरिया जाने लगे. छोटन शुक्ला हर रोज सुबह जाना शाम को आना जैसा हर बाहुबली करता है. लोगों के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए वैसा ही छोटन शुक्ला कर रहे थे लोगों के बीच कपड़े बांटना, पैसे बांटना, लोगों की मदद करना वह रोज कर रहे थे. इस तरह से छोटन शुक्ला लोकप्रियता हासिल करने लगे थे. यह बात लालू यादव के करीबी बृजबिहारी को अखर गई, लगा की नई चुनौती मिल रही है.

छोटन शुक्ला के हत्या की प्लानिंग

इसके बाद इस चुनौती को खत्म करने के लिए प्लानिंग शुरू की गई. 3 दिसंबर 1994 का दिन आता है. स्थानीय लोग बताते हैं कि छोटन शुक्ला हर दिन सुबह मुजफ्फरपुर अपने घर से निकले, वह दिन भर वहां चुनावी कैंपेनिंग की. यहां एक बात आपको बता दूं कि वह जमाना हथियार लेकर चलने का था, क्योंकि बिहार में अपराध पूरे चरम पर था. इस बीच छोटन शुक्ला केसरिया से कैंपेनिंग कर मुजफ्फरपुर अपने घर की तरफ लौट रहे थे तभी रास्ते में पुलिस की वर्दी में कुछ लोग खड़े होते हैं तबतक छोटा शुक्ला कुछ कर पाते इससे पहले ही पुलिस की वर्दी पहने अपराधियों ने छोटा शुक्ला पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. एक-47 से ताबड़तोड़ गोलियां बरसानी शुरू कर दी. कहा जाता है कि करीब आधे घंटे तक गोलियां चलती रही. पुलिस की वर्दी में गोली चल रहे अपराधी पूरी तरह निश्चिंत हो जाने के बाद वहां से गए कि अब छोटन शुक्ला की मौत हो चुकी है. इस वारदात में छोटा शुक्ला के साथ गाड़ी में सवार सभी लोगों की मौत हो चुकी थी.

पुलिस की वर्दी में अपराधियों ने की थी हत्या

स्थानीय लोग आज भी कहते हैं कि घटना को देखकर ऐसा लगता था कि इसका पता पुलिस को पहले से ही थी, क्योंकि स्थानीय पुलिस जब वारदात की जगह पहुंची तो वह किसी को भी अस्पताल अगले एक घंटे तक नहीं ले गई थी. पुलिस की तरफ से कहा जाता है कि जब एसपी साहब आएंगे तभी आगे की कार्रवाई की जाएगी. घटनास्थल पर छोटन शुक्ला और उसके चार साथियों की लाश वहां पड़ी हुई थी. वहीं, जब एसपी साहब आते हैं उसके बाद सभी को अस्पताल ले जाया जाता है. इसके बाद पोस्टमार्टम की प्रक्रिया शुरू होती है.

छोटन शुक्ला के शवयात्रा में डीएम की हो जाती है हत्या

इस घटना के बारे में आज भी कहा जाता है कि एक तरफ जहां छोटन शुक्ला की मौत से पूरे इलाके में गम था. वहीं, बृजबिहारी प्रसाद के समर्थक जश्न मना रहे होते हैं. इस घटना में बृजबिहारी के समर्थक ओंकार सिंह का नाम आता है, जिसे बाद में मार गिराया गया था. छोटन शुक्ला की मौत से उत्तर बिहार के मुजफ्फरपुर ही नहीं कई और जिले भी इसकी जद में आ गए थे. हर तरफ गुस्से का माहौल था. इस बीच आनंद मोहन भी वहां पहुंचते हैं अब अगले दिन 4 दिसंबर 1994 को छोटा शुक्ला शवयात्रा निकाली जाती है. इस शवयात्रा को छोटन शुक्ला के पैतृक गांव खंजाहाट जो वैशाली में पड़ता है. वहां ले जाया जाता है. इस बीच रास्ते में भीड़ बहुत होती है. हर तरफ गुस्सा और आक्रोश का आलम था. इस भीड़ में गोपालगंज के डीएम जी. कृष्णैया फंस जाते हैं. वह इस आक्रोशित भीड़ का शिकार हो जाते हैं और उनकी भीड़ हत्या कर देती है.

आनंद मोहन को मिलती है सजा

यहां आपको एक बात साफतौर पर जान लेनी जानिए कि अभी हाल ही में आनंद मोहन जी. कृष्णैया की हत्या मामले में जेल से उम्रकैद की सजा काटकर रिहा हुए हैं, क्योंकि भीड़ को उकसाने के लिए आनंद मोहन को कोर्ट ने दोषी माना था और सजा सुनाई गई थी. खैर, छोटन शुक्ला की मौत के बाद शुक्ला गैंग की कमान भुटकुन शुक्ला अपने हाथों में ले लेता है. हालांकि, बाद में भुटकुन शुक्ला की भी मौत हो जाती है. इसके बारे में कहा जाता है कि इसके मौत के पीछे शुक्ला गैंग के ही किसी सदस्य का हाथ था...।

आज के इस क्राइम सीरीज के एपिसोड में आपने जाना बिहार के बाहुबली छोटन शुक्ला की कहानी को, जो क्राइम का किंग कहा जाता था...जो वर्चस्व की लड़ाई में पुलिस की वर्दी में आए गुंडे की गोलियों का शिकार हो गया...जिसके शव यात्रा में एक डीएम की हत्या हो जाती है और छोटन शुक्ला के करीबी आनंद मोहन को सजा मिलती है...अब हमें इजाजत दीजिए और हम आपके लिए क्राइम सीरीज के अगले एपिसोड में किसी और क्राइम के किंग की ऐसी रोचक स्टोरी लेकर आएंगे...ऐसे ही दिलचस्प किस्से-कहानियों के लिए आप ZEE Bihar Jharkhand के साथ जुड़े रहिए...नमस्ते...!!!!

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