प्रेतशिला वेदी के पास विष्णु भगवान के चरण के निशान हैं तथा इस वेदी के पास पत्थरों में दरार है. मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से अकाल मृत्यु को प्राप्त पूर्वजों या परिवार का कोई सदस्य तक पिंड सीधे उन्हीं तक पहुंचता है तथा उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है.
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गया: अपने पितरों (पुरखों) के उद्धार करने के लिए प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ तीर्थस्थल बिहार के गया को माना गया है. यही कारण है कि गयाजी को मोक्ष स्थली भी कहा जता है. सनातन धर्म में पितरों को पिंडदान करने से जहां पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. वहीं, पितृदोष से मुक्ति मिलने की बात भी बताई जाती है.
कहा जाता है कि पहले गया में 365 पिंडवेदियां थी लेकिन फिलहाल 54 पिंडवेदियां है, जिसमें 45 पिंडवेदी और नौ तर्पणस्थल है जहां लोग पितृपक्ष में पुरखों की मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान और तर्पण करते हैं. इसमें से प्रेतशिला वेदी को काफी महत्वपूर्ण माना गया है. पालकी पर सवार होकर शारीरिक रूप से असहाय पिंडदानी 873 फीट उंचे प्रेतशिला पहाड़ी के शिखर पर पहुंचते हैं और अपपने पूर्वजों की आत्मा के मोक्ष की प्रार्थना करते हैं.
आत्मा और परमात्मा में विश्वास रखने वाले लोग आश्विन पक्ष की प्रतिपदा तिथि से पूरे पितृपक्ष की समाप्ति तक गया में आकर पिंडदान करते हैं. मान्यता है कि प्रेतशिला वेदी पर श्राद्ध करने से किसी कारण से अकाल मृत्यु के कारण प्रेतयोनि में भटकते प्राणियों को भी मुक्ति मिल जाती है. प्रेतशिला पर पिंडदान करने के लिए लोग पालकी से भी पहाड़ पर जाते हैं. गया शहर से लगभग छह किलोमीटर दूर उत्तर पश्चिम में स्थित प्रेतशिला तक पहुंचने के लिए 873 फीट उंचे प्रेतशिला पहाड़ी के शिखर जाना पड़ता है.
सभी पिंडदान करने वाले श्रद्धालु प्रेतशिला पहुंचते हैं लेकिन शारीरिक रूप से कमजोर लोगों को इतनी उंचाई पर वेदी के होने के कारण वहां तक पहुंचना मुश्किल होता है. उस वेदी तक पहुंचने के लिए यहां पालकी की व्यवस्था है, जिस पर सवार होकर शारीरिक रूप से कमजोर लोग यहां तक पहुंचते हैं.
पंडा श्री राम धामी बताते हैं कि प्रेतशिला वेदी के पास विष्णु भगवान के चरण के निशान हैं तथा इस वेदी के पास पत्थरों में दरार है. मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से अकाल मृत्यु को प्राप्त पूर्वजों या परिवार का कोई सदस्य तक पिंड सीधे उन्हीं तक पहुंचता है तथा उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. उन्होंने बताया कि सभी पिंडस्थलों पर तिल, गुड़, जौ आदि से पिंड दिया जाता है, परंतु इस पिंडवेदी के पास तिल मिश्रित सत्तु छिंटा (उड़ाया) जाता है. उन्होंने बताया कि पूर्वज जो मृत्यु के बाद प्रेतयोनि में प्रवेश कर जाते हैं तथा अपने ही घरों में लोगों का तंग करने लगते हैं उनका यहां पिंडदान हो जाने से उन्हें शांति मिल जाती है और वे मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं.
गरुड पुराण में लिखा है कि पूर्वज प्रेतशिला में मौजूद दरारों से पिंडदान लेने के लिए गयाधाम जाते हैं, जिसके बाद वे आत्मा की दुनिया में लौट आते हैं. बहुत से लोग मानते हैं कि आत्माएं एक ग्रह से दूसरे ग्रह पर जाने के दौरान जमीन में चट्टानों से गुजरती हैं.
कहा जाता है कि प्रेतशिला का नाम प्रेमपर्वत हुआ करता था, परंतु भगवान राम के यहां आकर पिंडदान करने के बाद इस स्थान का नाम प्रेतशिला हुआ. प्रेतशिला में पिंडदान के पूर्व ब्रह्म कुंड में स्नान और तर्पण करना अनिवार्य होता है.
(आईएएनएस)