बिहार: 15 वर्षों में 6वीं बार CM पद की ली शपथ, कुछ ऐसे नीतीश ने की थी राजनीति में इंट्री
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बिहार: 15 वर्षों में 6वीं बार CM पद की ली शपथ, कुछ ऐसे नीतीश ने की थी राजनीति में इंट्री

ये नीतीश कुमार की साफ सुथरी धवि और बिहार में सियासी पकड़ का ही नतीजा है कि जेडीयू की कम सीट होने के बावजूद बीजेपी उनके अलावा किसी अन्य को सीएम बनाने के मूड में नहीं है.

15 वर्षों में 6वीं बार CM पद की शपथ लेंगे नीतीश कुमार. (फाइल फोटो)

पटना: बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर सोमवार को नीतीश कुमार सातवीं बार पद एवं गोपनीयत की शपथ लेने जा रहे हैं. राजभवन में सादे समारोह में आयोजित कार्यक्रम में नीतीश कुमार बिहार के सीएम पद की शपथ लेंगे. उनके साथ कुछ अन्य नेता भी मंत्री पद की शपथ लेंगे. इस दौरान अमित शाह, जेपी नड्डा, बीएल संतोष सहित तमाम नेता मौजूद रहेंगे.

इस दौरान नीतीश कुमार सातवीं बार सीएम पद की शपथ लेंगे, जो अपने आप में एक कीर्तिमान है. वैसे ये नीतीश कुमार की साफ सुथरी धवि और बिहार में सियासी पकड़ का ही नतीजा है कि जेडीयू की कम सीट होने के बावजूद बीजेपी उनके अलावा किसी अन्य को सीएम बनाने के मूड में नहीं है.

वैसे बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार बीते 4 दशक से भी अधिक समय से प्रासंगिक बने हुए हैं. पिछले डेढ़ दशक से वह बिहार की राजनीति में एकछत्र राज कर रहे हैं और राज्य की सत्ता भी उनके इर्द-गिर्द ही 15 वर्षों से घूमती रही है. वहीं, नीतीश की सियासत को हिलाने में विरोधी बीते 15 साल से लगे हुए हैं. लेकिन यह समाजवादी नेता आज भी जनता के बीच में अपनी छवि और व्यक्तित्व को मजूबती से साफ बनाए हुए है. सरल स्वभाव, शांत व्यक्तित्व, ओजस वक्ता और काम करने में विश्वास रखना यह नीतीश कुमार की पहचान है और विरोधी भी गाहे-बगाहे इस बात के कायल हैं.

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जीवन परिचय
नीतीश कुमार का जन्म 1 मार्च 1951 को बिहार के बख्तियारपुर में हुआ था. इनके पिता कविराज राम लखन सिंह आयुर्वेदिक चिकित्सक थे और मां परमेश्वरी देवी गृहणी थी. नीतीश कुमार का जन्म एक साधारण निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था. वह पढ़ने में काफी तेज थे और उन्होंने बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (वर्तमान में एनआईटी पटना) से बीटेक की डिग्री हासिल की है. इसके बाद उन्होंने कुछ समय तक नौकरी की और फिर नीतीश कुमार ने राजनीति में कदम रख दिया.

राजनीतिक जीवन
जानकारों के मुताबिक, नीतीश कुमार अपने शुरुआती दिनों में जय प्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, सतेंद्र नारायण सिन्हा, कर्पूरी ठाकुर जैसे लोगों से काफी प्रभावित थे और इसी वजह से उनका झुकाव राजनीति की तरफ हुआ. इस बीच, जब पूरे देश में इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के खिलाफ जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में जेपी मूवमेंट या 'संपूर्ण क्रांति आंदोलन' की शुरुआत 1974 में हुई तो उसमें नीतीश कुमार ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. बाद में नीतीश कुमार ने एसएन सिन्हा के नेतृत्व वाली जनता पार्टी में शामिल हो गए और 1977 में विधानसभा का चुनाव हरनौत सीट से लड़ा था. लेकिन वह चुनाव हार गए.

सियासी सफरनामा
पहले विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद 1985 में नीतीश कुमार समता पार्टी के दिकट पर दोबारा हरनौत सीट से चुनाव लड़ा. लेकिन इस बार उन्हें जीत मिली. नीतीश कुमार पहली बार विधानसभा के लिए चुने गए. इस जीत से शुरू हुआ नीतीश कुमार का सफर लगातार आगे बढ़ता गया और उन्होंने दोबारा पीछे मुड़कर नहीं देखा. हालांकि, राजनीति में उतार-चढ़ाव आते रहे. लेकिन नीतीश हिले नहीं, धैर्य और नए राजनीतिक जोश के साथ आगे बढ़ते गए. केंद्र से लेकर राज्य तक में लगातार नीतीश ने अपनी छाप छोड़ी और राजनीतिक में प्रासंगिक बने रहे.

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मंत्री से मुख्यमंत्री तक
1989 में नीतीश कुमार बाढ़ लोकसभा सीट से जीतकर पहली बार लोकतंत्र के मंदिर संसद में पहुंचे और 1990 में पहली बार केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री बने. उसके बाद से बिहार के मुख्यमंत्री बनने से पूर्व नीतीश 6 बार लोकसभा के लिए चुने गए और कृषि, रेल जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री की जिम्मेदारी संभाली. इस दौरान एनडीए से नीतीश कुमार का जुड़ाव लगातार जारी रहा.

पहली बार सिर्फ 7 दिन के लिए बनें CM
2000 समता पार्टी और बीजेपी के गठबंधन को बहुमत न होने के बावजूद तत्कालीन राज्यपाल सुंदर सिंह भंडारी ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. हालांकि, नीतीश कुमार बाद में बहुमत साबित नहीं कर पाए और महज सात दिन में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद राज्य में दोबारा चुनाव हुए और आरजेडी-कांग्रेस की सरकार बिहार में बनी.

12 साल में 5 बार बनें CM
दिलचस्प बात यह है कि नीतीश कुमार ने सिर्फ 12 वर्षों में 5 बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. पहली बार जेडीयू और बीजेपी गठबंधन ने 2005 में लालू-राबड़ी के 15 साल के किले को ध्वस्त करते हुए बिहार में सरकार बनाई.

  1. दूसरी बार  24 नवंबर, 2005 से 24 नवंबर, 2010
  2. तीसरी बार 26 नवंबर, 2010 से 17 मई, 2014
  3. चौथी बार 22 फरवरी, 2015 से 19 नवंबर, 2015
  4. पांचवीं बार 20 नवंबर, 2015 से 26 जुलाई, 2017
  5. छठवीं बार 27 जुलाई, 2017 से अब तक 13 नवंबर 2020
  6. सातवीं बार 16 नवंबर 2020

राजनीति के 'सुशासन बाबू'
नीतीश कुमार अब तक 6 बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है और तीन बार इस्तीफा दिया है. राजनीति में लोग नीतीश कुमार को 'सुशासन बाबू' के नाम से जानते हैं. जिस बिहार को बीमारी राज्य के रूप में परिभाषित किया जाता था, जिस राज्य में सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा और कानून-व्यवस्था पूरी तरह से चरमा गई थी, उस राज्य में विकास की परिभाषा गढ़ने का श्रेय नीतीश कुमार को जाता है. इसकी तारीफ पूरी दुनिया में होती है और इस बात को दबी जुबानी विरोधी भी स्वीकार करते हैं.

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लालू बहादुर शास्त्री से हुई तुलना
1999 के अगस्त महीने में बिहार के किशनंज के गायसल में रेल हादसा हुआ. इस रेल हादसे के बाद कई तरह के सवाल उठने लगे. रेल हादसे के बाद नीतीश कुमार ने रेल मंत्री के पद से नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया. तब ये कहा गया कि लाल बहादुर शास्त्री के बाद नैतिक आधार पर इस्तीफा देने वाले नीतीश दूसरे रेल मंत्री हैं.

'पिछले दरवाजे से सत्ता की कुर्सी पर पहुंचते हैं नीतीश'
विपक्षी आरोप लगाते हैं कि नीतीश कुमार को हार का डर रहता है इसलिए वह चुनाव नहीं लड़ते हैं. दरअसल, नीतीश कुमार 2006 से विधान परिषद के लिए चुने जाते रहे हैं. अभी उनका कार्यकाल 2024 तक है. इस बार भी नीतीश कुमार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. हालांकि, विपक्ष के आरोपों पर नीतीश कुमार को फर्क नहीं पड़ता. उनका कहना है कि एक क्षेत्र पर ध्यान देने के बजाए गठबंधन की जीत के रणनीति बनाई जाए.

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'अवसरवादिता पर टिकी मौजूदा समय की राजनीति'
हालांकि, यह बात भी सच है कि जनप्रतिनिधि वही होता है जो जनता के द्वारा चुनकर आए. क्योंकि चुनाव जनता की नब्ज टटोलने का अवसर होता है, इसलिए इसे लोकतंत्र का महापर्व कहा जाता है. राज्यसभा और विधान परिषद जिसे ऊपरी सदन के नाम से परिभाषित किया जाता है, उसकी परिकल्पना नीति निर्धारक विषयों पर बेहतर बहस के लिए हुई थी. ये जनता के सीधे प्रतिनिधि नहीं होते. लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं की आज की राजनीति अवसरवादिता पर टिकी है. अगर आज कोई सीएम चुनाव हार जाए और इसके बावजूद उसकी सरकार बने तो उसकी पार्टी के लोग ही उसे दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे.