Navmi Hawan Vidhi: नवरात्र के नौंवे दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर साफ और सुंदर वस्त्र धारण करें. सर्वप्रथम गणेश और कलश पूजन कर मां सिद्धिदात्री की पूजा प्रारंभ करें. माता को पंचामृत से स्नान करवाएं.
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पटनाः Navmi Hawan Vidhi: नवरात्रि के नौंवे दिन हवन-पूजन का विधान है. महानवमी के दिन महास्नान और षोडशोपचार पूजा की जाती है. ये पूजा अष्टमी की शाम ढलने के बाद की जाती है. दुर्गा बलिदान की पूजा नवमी के दिन सुबह की जाती है. नवमी के दिन हवन करना जरूरी माना जाता है. क्योंकि इस दिन नवरात्रि का समापन हो जाता है. मां की विदाई कर दी जाती है. इसके बाद दशमी को मां का विसर्जन किया जाता है. नवमी के दिन हवन कराने के लिए अक्सर पंडितजी की खोज की जाती है, लेकिन कई घरों में विधान होने के कारण कभी-कभी पंडित जी नहीं मिल पाते हैं. ऐसे में आप परेशान न हों, नवरात्र की पूर्णाहुति का हवन आप खुद भी कर सकते हैं. इसके लिए हवन पूजा विधि और मंत्र की जानकारी जरूरी है.
जानिए मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि
नवरात्र के नौंवे दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर साफ और सुंदर वस्त्र धारण करें. सर्वप्रथम गणेश और कलश पूजन कर मां सिद्धिदात्री की पूजा प्रारंभ करें. माता को पंचामृत से स्नान करवाएं. फिर माता को नौ प्रकार के फूल, अक्षत, कुमकुम, सिंदूर, पान, सुपारी आदि अर्पित करें. इसके बाद मां सिद्धिदात्री की कथा का पाठ करें. अंत में आरती करें.
हवन सामग्री: आम की लकड़ियां, कलीगंज, देवदार की जड़, बेल, नीम, पलाश का पौधा, बेर, आम की पत्ती और तना, चंदन का लकड़ी, गूलर की छाल और पत्ती, पापल की छाल और तना, तिल, कपूर, अश्वगंधा की जड़, बहेड़ा का फल, लौंग, चावल, ब्राह्मी, मुलैठी, हर्रे, घी, शक्कर, जौ, गुगल, लोभान, इलायची, गाय के गोबर से बने उपले, सुपारी, पान, बताशा, घी, नीरियल, लाल कपड़ा, कलावा, पूरी और खीर.
हवन विधि- नवरात्र की नवमी तिथि को सबसे पहले विधिवत तरीके से मां दुर्गा के नौवें स्वरूप मां सिद्धादात्री की पूजा कर लें. इसके बाद कलश की पूजा करें. इसके बाद आटे से रंगोली बनाएं. इस चौक पूरना कहते हैं. इसके ऊपर हवन कुंड रख दें. अब हवन शुरू करें. हवन कुंड में लकड़ी रखें और थोड़ा सा कपूर या घी डालकर जला दें. आसन पर बैठकर मंत्रों के साथ हवन आरंभ करें. जब हवन मंत्रों के साथ आहुति डाल दें. आप को किन-किन मंत्रों के साथ आहुति डालनी वह जान लीजिए.
हवन करते समय इन मंत्रों के साथ दें आहुति:
ऊं आग्नेय नम: स्वाहा
ऊं गणेशाय नम: स्वाहा
ऊं गौरियाय नम: स्वाहा
ऊं नवग्रहाय नम: स्वाहा
ऊं दुर्गाय नम: स्वाहा
ऊं महाकालिकाय नम: स्वाहा
ऊं हनुमते नम: स्वाहा
ऊं भैरवाय नम: स्वाहा
ऊं कुल देवताय नम: स्वाहा
ऊं न देवताय नम: स्वाहा
ऊं ब्रह्माय नम: स्वाहा
ऊं विष्णुवे नम: स्वाहा
ऊं शिवाय नम: स्वाहा
ऊं जयंती मंगलाकाली, भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा
स्वधा नमस्तुति स्वाहा।
ऊं ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च: गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु स्वाहा।
ऊं गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवा महेश्वर: गुरु साक्षात् परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: स्वाहा।
ऊं शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे, सर्व स्थार्ति हरे देवि नारायणी नमस्तुते।
अब इसके बाद हवन में खीर का भोग डालें. फिर एक सूखा नारियल लें. इसके चारों ओर रक्षा सूत्र लपेट दें. इसपर घी मल लें. इस नारियल को हवन कुंड के बीच में रख दें. अंत में बची हुआ हवन धूप को ऊपर से डालकर इस मंत्र को बोले- ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् , पूर्ण मुदच्यते,
पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवा वशिष्यते.
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