Sarva Pitru Amavasya: सनातन धर्म के अनुसार पितृपक्ष के दौरान पितर अपने वंशजों या पुत्रों से जल ग्रहण करने के लिए पृथ्वी पर आते हैं. यह प्रक्रिया भाद्रपद पूर्णिमा के दिन अगस्त्यार्घतर्पण से शुरू होती है.
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Sarva Pitru Amavasya: आज सनातन धर्म में पितृपक्ष का अंतिम दिन है जिसे सर्व पितृ अमावस्या कहा जाता है. यह दिन उन पितरों के लिए खास होता है जिनके नाम, मृत्यु तिथि या स्वर्गवास की सही जानकारी नहीं होती है. आचार्य मदन मोहन के अनुसार इस दिन सभी पितरों का तर्पण किया जाता है. इस अमावस्या के दिन, तर्पण करने से सभी पितर तृप्त होते हैं और उन्हें पितृलोक भेजा जाता है. पितृपक्ष का समापन होने के बाद शारदीय नवरात्र की शुरुआत होती है, जो इस साल 3 अक्टूबर से शुरू होगी.
तर्पण और दान का महत्व
इस दिन पितरों को तर्पण करने के बाद दान देने की परंपरा है. आचार्य मदन मोहन के अनुसार अमावस्या तिथि रात 11:05 बजे तक रहेगी, इसलिए अपराह्नकाल यानी दोपहर के बाद तीन बजे तक तर्पण कर सकते हैं. तर्पण के बाद तिल, गुड़, फल, भोजन और बर्तन आदि दान करने चाहिए. यह दान ब्राह्मण, गरीब और जरूरतमंदों को देना चाहिए. इससे पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद के रूप में घर में धन, समृद्धि और वंश की वृद्धि होती है. महालया खत्म होते ही देवी आगमन का समय शुरू हो जाता है, इसलिए आज ही कलश स्थापना की तैयारी करनी चाहिए.
पितृपक्ष में पितरों का आगमन
सनातन धर्म के अनुसार पितृपक्ष के दौरान पितर पृथ्वीलोक पर अपने वंशजों से जल ग्रहण करने के लिए आते हैं. यह प्रक्रिया भाद्रपद पूर्णिमा के दिन शुरू होती है और इसके अगले दिन से श्राद्ध कर्म किया जाता है. पितर पितृपक्ष के 15 दिनों तक विभिन्न तिथियों पर जल ग्रहण के लिए आते हैं. इस दौरान वंशज उन्हें तर्पण देकर उनकी आत्मा की तृप्ति करते हैं. सर्व पितृ अमावस्या के दिन यह विशेष रूप से किया जाता है, ताकि वे प्रसन्न होकर पितृलोक लौट सकें.
इस तरह सर्व पितृ अमावस्या का दिन उन पितरों के लिए विशेष होता है, जिनके बारे में हमें जानकारी नहीं होती और इस दिन तर्पण और दान का विशेष महत्व होता है.
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