Bihar Ganga River: गंगा नदी, जो बिहार की जीवन रेखा मानी जाती है, न केवल इस राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है, बल्कि सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है.
गंगा नदी बिहार के अनेक गांवों के लिए सिर्फ जीवनदायिनी ही नहीं है, बल्कि यह उनकी सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान का भी प्रमुख आधार है. इन गांवों की पूरी जीवन शैली, उनकी सांस्कृतिक परंपराएँ, और उनकी अर्थव्यवस्था का ताना-बाना गंगा के जल पर टिका हुआ है. इस नदी के बिना. इन गांवों के अस्तित्व की कल्पना करना मुश्किल है, क्योंकि गंगा उनकी रोजमर्रा की जरूरतों से लेकर उनकी सांस्कृतिक धरोहर तक, हर पहलू में गहराई से जुड़ी हुई है.
गंगा के तट पर बसे गांवों के निवासियों के लिए गंगा का पानी बेहद अनमोल है. यह पानी केवल पीने के लिए ही नहीं, बल्कि खेती, पशुपालन, और घरेलू कार्यों के लिए भी उपयोग किया जाता है. इसके अलावा, कई क्षेत्रों के लोग गंगा के जल को पवित्र मानते है, और इसे धार्मिक अनुष्ठानों और पूजा-पाठ में भी इसका प्रयोग किया जाता है.
बिहार के कई शहरों में गंगा आरती का आयोजन किया जाता है. जो यहाँ की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है. इस आरती में सम्मिलित होने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। गंगा आरती के समय, पूरे माहौल में भक्ति और श्रद्धा का अनोखा दृश्य देखने को मिलता है. यह आरती लोगों को भीतर से शांति और आध्यात्मिक संतोष का अनुभव कराती है, जो गंगा की महिमा को और भी विशेष बना देती है.
गंगा नदी के किनारे बसे मछुआरों का जीवन पूरी तरह से इन नदी पर टिका हुआ है. उनकी रोजमर्रा की आजीविका गंगा के जल पर ही आधारित है. जो उनकी रोजमर्रा की जिंदगी का महत्वपूर्ण हिस्सा है. मछुआरों का गंगा से संबंध केवल आर्थिक ही नहीं, बल्कि गहरा सांस्कृतिक भी है. वे गंगा को मां के रूप में पूजते हैं.
बिहार में गंगा के किनारे समय-समय पर धार्मिक मेला, कुंभ मेला का आयोजन किया जाता है. जहां लाखों में लोग गंगा के स्नान के लिए आते हैं. यह मेला सांस्कृतिक धरोहर को दिखाता है, जो लोगों के दिलों में गंगा और उसकी महिमा के प्रति गहरा सम्मान और श्रद्धा को दर्शाता हैं.