ममता ने बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. वह राहुल गांधी की काबिलियत पर सवाल उठाने लगी थीं, जबकि नीतीश कुमार हमेशा ऐसी टिप्पणियों से बचते रहे.
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Bihar Politics: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आखिरकार विपक्ष के अगुवाकार बनते दिखाई दे रहे हैं. बुधवार (12 अप्रैल) नीतीश कुमार ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मुलाकात की. इस मुलाकात में विपक्षी एकता पर बात हुई और नीतीश कुमार को इसके सूत्रधार बनने की जिम्मेदारी सौंपने पर सहमति बनी. नीतीश कुमार ने कांग्रेस नेताओं से मुलाकात करने के बाद दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल से भी मुलाकात की. केजरीवाल की ओर से भी पॉजिटिव रिस्पॉन्श मिला.
इसके बाद एक बात तो साफ है कि विपक्ष की ओर से नीतीश कुमार आगे बढ़ते दिखाई दे रहे हैं. इतना ही नहीं वह यूपीए के संयोजक भी बनाए जा सकते हैं. कुछ ऐसी ही कोशिश पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी भी कर रही थीं. लेकिन उन्हें सफलता हासिल नहीं हुई थी. तो सवाल उठते हैं कि कांग्रेस को जब पीछे ही चलना था तो दीदी में क्या कमी थी? नीतीश कुमार ज्यादा वक्त बीजेपी के साथ बिताया, उसके बाद भी उन्होंने ममता को कैसे मात दे दी?
ममता पर कैसे भारी पड़े नीतीश
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि ममता और नीतीश की राजनीति में काफी अंतर देखने को मिलता है. ममता ने बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. वह राहुल गांधी की काबिलियत पर सवाल उठाने लगी थीं, जबकि नीतीश कुमार हमेशा ऐसी टिप्पणियों से बचते रहे. नीतीश कुमार भले ही विपक्ष की ओर से पीएम पद की रेस मे हैं, लेकिन इसके बाद भी बीजेपी नेताओं पर व्यक्तिगत हमला करने से बचते हैं.
टीएमसी और जेडीयू में अंतर
इसके अलावा बंगाल में टीएमसी और कांग्रेस के बीच सत्ता को लेकर संघर्ष चलता रहता है, जबकि बिहार की सरकार में कांग्रेस सहयोगी है. ममता ने कई राज्यों में कांग्रेस को कमजोर करने का काम किया. मेघालय और गोवा के तमाम टीएमसी में तोड़फोड़ की थी. वहीं जेडीयू के साथ ऐसा कोई सीन नहीं रहा. नीतीश की ओर से किसी दल को तोड़ने की कोई कोशिश नहीं की गई. यही वजह है कि कांग्रेस ने ममता की जगह नीतीश के पीछे चलना स्वीकार किया.