आपको वह दिन याद होगा जब नीतीश कुमार भी बिहार में मंच पर थे और कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद भी. तब नीतीश कुमार ने भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनाव में मात देने के लिए विपक्षी एकता की बात कही थी और सलमान खुर्शीद इशारों-इशारों में कह गए थे कि यह समय आने पर पता चलेगा कि पहले आई लव यू कौन बोलता है.
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पटना: आपको वह दिन याद होगा जब नीतीश कुमार भी बिहार में मंच पर थे और कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद भी. तब नीतीश कुमार ने भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनाव में मात देने के लिए विपक्षी एकता की बात कही थी और सलमान खुर्शीद इशारों-इशारों में कह गए थे कि यह समय आने पर पता चलेगा कि पहले आई लव यू कौन बोलता है. मतलब तब साफ था कि राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते कांग्रेस एकला चलो रे के फॉर्मूले पर ही लोकसभा चुनाव में चलना चाहती थी.
कांग्रेस के नेता 2024 में पीएम के चेहरे के तौर पर राहुल गांधी को देख रहे थे. अब परिस्थिति अलग है कांग्रेस के नेता और वायनाड से सांसद रहे राहुल गांधी को 'मोदी सरनेम' मामले में जब सूरत की अदालत ने दो साल की सजा सुनाई तो उनकी सासंदी चली गई. अब वह अभी तक के फैसले के अनुसार 8 साल तक चुनावी राजनीति नहीं कर पाएंगे. ऐसे में उनके लिए अभी फिलहाल तो पीएम बनना भी मुश्किल है. ऐसे में राजनीतिक जानकारों की मानें तो जो सबसे ज्यादा खुश हुए होंगे वह नीतीश कुमार ही होंगे. नीतीश ने राहुल गांधी के सांसद जाने के मामले पर जो सधी प्रतिक्रिया देर से ही सही मीडिया को दी वह भी इसी ओर इशारा कर रहा था. एक तरफ जहां तमाम विपक्षी दल राहुल के समर्थन में खड़े थे वहीं नीतीश ने साफ कह दिया कि कोर्ट के फैसले पर वह पहले भी प्रतिक्रिया नहीं देते थे अब भी नहीं देते हैं.
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इससे पहले नीतीश कुमार भाजपा को केंद्र की सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए सुपर एक्टिव नजर आए थे. बिहार में महागठबंधन की सरकार के गठन के बाद उन्होंने विपक्षी नेताओं से मिलने और उन्हें एकजुट करने के लिए मैराथन दौरे किए विपक्ष के लिए नीतीश पीएम का चेहरा भी बनने लगे थे लेकिन तब कांग्रेस कन्नी काट गई थी. अब नीतीश कुमार को पता है कि राहुल के नहीं होने के बाद कांग्रेस के पास विकल्प के तौर पर कुछ भी नहीं है इसलिए इस बार वह कांग्रेस का इंतजार कर रहे हैं कि कांग्रेस ही इसपर पहले पहल करे. जेडीयू नेताओं को तो लगने भ लगा है कि 2024 में नीतीश कुमार ही देश का नेतृत्व संभालेंगे.
वैसे भी नीतीश जब से महागठबंधन के साथ बिहार की सत्ता पर काबिज हुए हैं उनकी पार्टी में और बिहार की राजनीति में खूब उथल-पुथल मचा रहा है. उनके कई करीबी उनका साथ छोड़कर चले गए. बिहार में महागठबंधन के साथ आने के बाद तीन सीटों पर उपचुनाव और उसमें से एक सीट पर लड़ने का मौका नीतीश की पार्टी को मिला. यहां पूरी ताकत झोंकने के बाद भी कुढ़नी सीट पर जदयू को हार का सामना करना पड़ा. वहीं बिहार में तेजस्वी को अपना अगला उत्तराधिकारी घोषित करने के बाद भी नीतीश की पार्टी के अंदर ही असंतोष बढ़ गया. ऐसे में नीतीश कुमार की तरफ से विपक्षी एकजुटता की जो मुहिम शुरू की गई थी वह ठंडे बस्ते में दिख रही है और उनकी निगाह कांग्रेस के इशारे का इंतजार कर रही है.