झारखंड में हाथियों और इंसानों के बीच थम नहीं रहा संघर्ष, सामने आए चौंकाने वाले आंकड़े
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झारखंड में हाथियों और इंसानों के बीच थम नहीं रहा संघर्ष, सामने आए चौंकाने वाले आंकड़े

बीते 31 जुलाई को लातेहार जिले के बालूमाथ थाना क्षेत्र के रेची जंगल में एक हाथी की लाश मिली. कुछ लोग मृत हाथी का दांत काटकर ले गये थे. वन विभाग ने इसकी एफआईआर दर्ज की है.

हाल की घटनाएं बताती हैं कि इस संघर्ष के चलते कितना नुकसान हो रहा है.

रांची: झारखंड में हाथियों और इंसानों के बीच संघर्ष थम नहीं रहा. बीते सात महीनों में हाथियों के हमले में राज्य में 52 लोगों की मौत हुई है. इस दौरान अलग-अलग वजहों से आठ हाथियों की भी जान गयी है. यह वन विभाग का आंकड़ा है. हाल की घटनाएं बताती हैं कि इस संघर्ष के चलते कितना नुकसान हो रहा है. 

बीते 31 जुलाई को लातेहार जिले के बालूमाथ थाना क्षेत्र के रेची जंगल में एक हाथी की लाश मिली. कुछ लोग मृत हाथी का दांत काटकर ले गये थे. वन विभाग ने इसकी एफआईआर दर्ज की है. इसके पहले 17 जुलाई को खूंटी जिले के रनिया प्रखंड अंतर्गत बोंगतेल जंगल में एक हाथी मृत पाया गया. आशंका है कि कोई जहरीला पदार्थ खाने से उसकी मौत हुई. जुलाई महीने में ही रांची के इटकी के केवदबेड़ा जंगल में एक हाथी मरा पाया गया था. वन विभाग तीनों घटनाओं की जांच कर रहा है. मौत के कारणों के बारे में अब तक कोई स्पष्ट रिपोर्ट नहीं आयी है.

मई के तीसरे हफ्ते में चक्रधरपुर रेल मंडल अंतर्गत बांसपानी-जुरुली रेलवे स्टेशन के बीच मालगाड़ी की चपेट में आकर तीन हाथियों की मौत हो गयी थी. इनकी मौत से गमजदा डेढ़ दर्जन हाथी लगभग 12 घंटे तक ट्रैक पर जमे रहे थे. बताया गया था कि करीब 20 हाथियों का झुंडबांसपानी-जुरूली के बीच बेहेरा हटिंग के पास रेल लाइन पार कर रहा था, तभी तेज गति से आ रही एक मालगाड़ी ने इन्हें टक्कर मार दी थी. इसके पहले के पहले हफ्ते में गिरिडीह जिले में चिचाकी और गरिया बिहार स्टेशन के बीच ट्रेन की टक्कर में एक हाथी की मौत हो गयी थी.

गुस्सा गजराज भी राज्य के 15 से ज्यादा जिलों में जमकर आतंक मचा रहे हैं. पिछले दो-तीन वर्षों में हजारीबाग जिले में हाथियों ने सबसे ज्यादा उत्पात मचाया है. यहां इस साल अब तक हाथी 14 लोगों की जान ले चुके हैं. इसी तरह गिरिडीह में नौ, लातेहार में आठ, खूंटीमें पांच, चतरा, बोकारो, खूंटी और जामताड़ा में तीन-तीन लोग हाथियों के हमले में मारे गये हैं. 

हाल की घटनाओं की बात करें तो बीते 28 जुलाई को हजारीबाग जिले के सदर प्रखंड केमोरांगी नोवकी टांड़ निवासी जितेंद्र राम को हाथियों के झुंड ने कुचलकर मार डाला था. इसके एक दिन पहले 27 जुलाई को खूंटी जिले के तोरपा प्रखंड के कमडा पोढोटोली गांव में हरसिंह गुड़िया नामक एक दिव्यांग को झुंड से बिछड़े एक जंगली हाथी ने कुचलकर मार डाला. इसी तरह 30 जून को चाईबासा जिले के किरीबुरु थाना अंतर्गत बोगदाकोचा ढलान के जंगल में तोपाडीह गांव निवासी बिमल जक्रियस बारला हाथियों के झुंड का निशाना बन गये.

झारखंड विधानसभा के बीते बजट सत्रमें वन विभाग के प्रभारी मंत्री चंपई सोरेन ने हाथियों के उत्पात से जुड़े एक सवाल के जवाब में बताया था कि वर्ष 2021-22 में हाथियों द्वारा राज्य में जानमाल को नुकसान पहुंचाये जाने से जुड़े मामलों में वन विभाग ने एक करोड़ 19 लाखरुपये के मुआवजे का भुगतान किया है. उन्होंने अपने जवाब में कहा था कि हाथियों और इंसानों के बीच द्वंद्व बढ़ने के कई कारण हैं. जनसंख्या बढ़ने के कारण वन्यजीव का प्रवास क्षेत्र प्रभावित हुआ है. गांवों में मादक पेय पदार्थ बनाए जाते हैं, जिसकी महक हाथियों को आकर्षित करती है. इस कारण भी हाथियों की आदतों और भ्रमण के मार्ग में बदलाव आया है.

हाथियों के व्यवहार पर शोध करने वाले डॉ तनवीर बताते हैं कि जूलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और सेटेलाइट सर्वे के आधार पर यह तथ्य स्थापित हुआ कि हाथी अपने पूर्वजों के मार्ग पर सैकड़ों साल बाद भी दोबारा अनुकूल वातावरण मिलने पर लौटते हैं. अगर मार्ग में आवासीय कॉलोनी या दूसरी मानवीय गतिविधियां मिलती हैं तो उनका झुंड उसे तहस-नहस करके ही आगे बढ़ता है. हाथियों के उग्र होने का मुख्य कारण अपने रास्ते के लिए उनका बेहद संवेदनशील होना भी है. जुलाई से सितंबर के दौरान हाथी प्रजनन करते हैं. इस समय हाथियों के हार्मोन में भी बदलाव आता है जिससे वो आक्रामक हो जाते हैं.

(आईएएनएस)

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