ICMR Study: दिल्ली में 51% से ज्यादा बच्चे अस्वस्थ, ग्रामीण के मुकाबले शहरी बच्चों की हाइट हो रही कम
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ICMR Study: दिल्ली में 51% से ज्यादा बच्चे अस्वस्थ, ग्रामीण के मुकाबले शहरी बच्चों की हाइट हो रही कम

Indian Council of Medical Research: वैज्ञानिकों के मुताबिक बच्चे की हाइट और विकास मोटे तौर पर उसे मिलने वाले खाने यानी पोषण और रहने के हालात से तय होते हैं, लेकिन स्कूली बच्चों की सेहत पर शहर की सुविधाओं के फायदे होते नहीं दिखाई दे रहे. 

 ICMR Study: दिल्ली में 51% से ज्यादा बच्चे अस्वस्थ, ग्रामीण के मुकाबले शहरी बच्चों की हाइट हो रही कम

ICMR Study: भारत समेत दुनिया के कई अमीर देशों में शहरों के बच्चों की लंबाई ग्रामीण बच्चों के मुकाबले कम हो गई है. केवल कुछ गरीब अफ्रीकी और एशियाई देशों में ही अब भी शहरों के बच्चे गांवों के बच्चों के मुकाबले लंबाई और बीएमआई में बेहतर पाए गए हैं.  इसका सीधा मतलब ये है कि ज्यादा पैसा और सुविधाएं बच्चों की सेहत बिगाड़ रही है. पढ़कर चौंक गए न आप, लेकिन ये आंकड़े 3 दशक तक किए अध्ययन से निकलकर सामने आए हैं. 

5 से 19 वर्ष के 71 मिलियन यानी 7 करोड़ से ज्यादा लोगों की लंबाई और वजन की स्टडी की गई. ये अब तक की सबसे बड़ी स्टडी कही जा सकती है. इसमें 200 देशों के 1990 से 2020 तक के डाटा का आकलन किया गया. रिपोर्ट के मुताबिक तीस साल के अंदर शहरीकरण से मिलने वाले फायदे बेकार साबित हो गए यानी शहरों में मिलने वाली सुविधाओं-बेहतर खाना और रहने की बेहतर व्यवस्था के बावजूद अब शहरों के बच्चे लंबे नहीं होते.

ये बात भी सामने आई कि ज्यादातर देशों में शहरों में रहने वाले बच्चों की लंबाई और वजन का पैमाना कहे जाने वाले BMI यानी बॉडी मास इंडेक्स में कमी आई है, जबकि गांव में रहने वाले बच्चों में देसी खानपान और रहन-सहन में सुधार की वजह से उनका शारीरिक विकास बेहतर हुआ है. 

भारत में पिछले 2 दशक से ग्रामीण क्षेत्र में बच्चों की ऊंचाई में काफी वृद्धि देखी गई है. लड़कों और लड़कियों दोनों में शहर के मुकाबले 4 सेमी बेहतर ग्रोथ हुई. आईसीएमआर के वैज्ञानिकों के मुताबिक बच्चे की हाइट और विकास मोटे तौर पर उसे मिलने वाले खाने यानी पोषण और रहने के हालात से तय होते हैं, लेकिन स्कूली बच्चों की सेहत पर शहर की सुविधाओं के फायदे होते नहीं दिखाई दे रहे. इस वजह से युवा होने तक या बुढापे में वो बीमार हो रहे हैं. 

शहरी बच्चों की हाइट कम होने का कारण 
बच्चों के पास खेलने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है. वे सब्जियां, फल और नट्स जैसे स्वास्थ्यवर्धक विकल्पों के बजाय सस्ते जंक फूड को चुनते हैं. यही वजह है कि भारत में आज  मोटापा, कुपोषण से बड़ी समस्या बन चुकी है. 

पैदायशी मोटे  हो रहे बच्चे 
लांसेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पिछले वर्ष 21 प्रतिशत बच्चे कम वजन के साथ पैदा हुए. जन्म के समय उनका वजन 2.5 किलो से कम रहा. हालांकि अब ऐसे बच्चों की तादाद घट रही है, जबकि 12 प्रतिशत ओवरवेट पैदा हुए. मोटे पैदा होने वाले बच्चों की तादाद हर राज्य में बढ़ रही है. अध्ययन से यह भी पता चला कि मोटे बच्चे 5 प्रतिशत की दर से बढ़ रहे हैं. कुपोषण 1 फीसदी की दर से घट रहा है.  

इन बच्चों की उम्र होती है कम 
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक अगर लंबाई और बीएमआई दोनों कम है तो आगे चलकर ये बच्चे बीमार होते हैं और उनकी आयु भी कम होती है. अगर बीएमआई ज्यादा है तो भविष्य में मोटापे और लाइफ स्टाइल से जुड़ी बीमारियों का खतरा बना रहता है.  

जानिए कैसे मापते हैं बॉडी मास इंडेक्स (BMI)  
स्वस्थ इंसान का वजन उसकी लंबाई के हिसाब से होना चाहिए। किसी व्यक्ति की ऊंचाई और वजन का अनुपात बीएमआई यानी बॉडी मास इंडेक्स है. बीएमआई के आधार पर आप यह जान पाते हैं कि आप लंबाई और वजन के हिसाब से संतुलित और स्वस्थ हैं या नहीं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के हिसाब से अगर आपका बीएमआई 24 से ज्यादा है तो आप मोटे हैं. अगर बीएमआई 30 से ज्यादा है तो आपको सर्जरी करवानी पड़ सकती है. एक और आसान तरीका ये है कि महिलाओं का कमर का घेरा 35 इंच और पुरुषों में 40 इंच से ज्यादा हो तो इसे मोटापा समझ लेना चाहिए. 

ऐसे समझिए वजन कम है या ज्यादा  

बीएमआई            स्थिति 

18.5 से नीचे        सामान्य से कम वजन  
18.5 – 24.9        सामान्य 
 25 – 29.9           सामान्य से अधिक वजन 
 30 – 34.9           मोटापा 
 35 – 39.9           अति मोटापा 
> 40         बेहद बीमार 

2020 के मुकाबले मोटे बच्चों की संख्या बढ़ी 
स्पोर्ट्स विलेज स्कूल्स (Sports Village schools) के सर्वे के मुताबिक दिल्ली के 51 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे अस्वस्थ हैं, जबकि वर्ष 2020 में मोटापे के शिकार बच्चों की दिल्ली में संख्या 50 प्रतिशत थी. सर्वे के अनुसार, दिल्ली के लगभग 51% बच्चों का बॉडी मांस इंडेक्स अस्वस्थ कैटेगरी में है. दिल्ली से खराब हालत देश के दो अन्य शहर बेंगलुरू और चेन्नई का है, जहां ये आंकड़ा 53% है. 

आईसीएमआर की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 1990 में गांवों और शहरों के बच्चों के बीच अंतर बेहद ज्यादा था. शहरी बच्चों की बीएमआई में वजन के हिसाब से ग्रामीण बच्चों के मुकाबले 400 ग्राम से लेकर 1.2 किलो तक का फर्क था. उस दौर में गांवों में शहरों के मुकाबले अभाव की स्थिति थी. सुविधाएं कम थीं.  

1990 में शहरों के बच्चे गांव के बच्चों से लंबे थे. केवल नीदरलैंड, बेल्जियम और यूनाइटेड किंगडम में ग्रामीण इलाकों में रहने वाले बच्चे शहरी बच्चों के मुकाबले थोड़े लंबे थे. ये सभी तब भी विकसित देश थे. दक्षिण एशिया और अफ्रीका के देशों में रहने वाले बच्चों की लंबाई उस समय विकसित देशों के बच्चों के मुकाबले कम थी. 2020 तक आते-आते ये तस्वीरे ऐसे बदलीं कि अमीर देशों में कई जगह शहरों के बच्चे गांव के बच्चों के मुकाबले कम लंबे हैं और उनकी बीएमआई भी खराब हो गया. विकासशील देशों में ये बच्चे अब गांवों के मुकाबले केवल 1 से 2.5 सेंटीमीटर तक ही लंबे रह गए हैं. कई पश्चिमी और सेंट्रल यूरोपीय देशों में तो शहरी बच्चों की लंबाई गांवों के बच्चों के मुकाबले 1 सेमी कम हो गई है. मिडिल इनकम वाले देश जैसे वियतनाम और चीन में शहरों के बच्चे अब भी लंबे हैं, लेकिन ये अंतर कम हुआ है.