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नई दिल्ली: दिल्ली सरकार अपने शिक्षकों को ट्रेनिंग के लिए फिनलैंड भेजने की हर मुमकिन कोशिश कर रही है. इसी कड़ी में डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने आज एलजी के पास दोबारा प्रस्ताव भेजा है. जिसमें उन्होंने कहा है कि सरकार ने कास्ट बेनिफिट एनालिसिस सहित सभी पहलुओं से प्रस्ताव की जांच की और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए शिक्षकों की ट्रेनिंग को जरूरी पाया है. मुझे उम्मीद है कि आप शिक्षकों को ट्रेनिंग के लिए विदेश जाने की अनुमति देंगे. अगर सीएम और शिक्षा मंत्री ने अपने शिक्षकों को विदेश भेजने का फैसला किया है, तो आप बार-बार मामूली आपत्तियां लगाकर इसे कैसे रोक सकते हैं? यह लोकतंत्र और संविधान के खिलाफ है कि एक अनिर्वाचित व्यक्ति लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार के हर निर्णय ले रहा है और बदल रहा है.
दिल्ली सरकार के शिक्षकों को ट्रेनिंग के लिए फ़िनलैंड भेजने का प्रस्ताव पुनः LG साहब के पास भेजा है….. pic.twitter.com/SSy0oGyhfs
— Manish Sisodia (@msisodia) January 20, 2023
उन्होंने कहा है कि यहां लोग अपने बच्चों को विदेश भेजना चाहते हैं, लेकिन गरीब बच्चों के शिक्षकों को विदेश भेजने का कड़ा विरोध करते हैं और कास्ट बेनिफिट एनालिसिस चाहते हैं. आपकी टिप्पणी अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है. 21वीं सदी के भारत में ऐसी सामंती मानसिकता की कोई जगह नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार भी एलजी के पास मंत्रिपरिषद के किसी भी निर्णय पर कास्ट बेनिफिट एनालिसिस करने का आदेश देने की शक्ति नहीं है. मेरा अनुरोध है कि कृपया सूचित करें कि क्या आप प्रस्ताव को मंजूरी देंगे या इसे राष्ट्रपति को भेजेंगे?
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री एवं शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने दिल्ली के शिक्षकों को फिनलैंड भेजने का प्रस्ताव एक बार फिर उपराज्यपाल के पास भेजा है. डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने उपराज्यपाल द्वारा पिछले प्रस्ताव पर आई आपत्तियों का जवाब देते हुए आज यह प्रस्ताव भेजा है. उन्होंने प्रस्ताव में लिखा है कि सरकार ने अपने शिक्षकों को फिनलैंड भेजने के प्रस्ताव पर उनके कॉस्ट बेनिफिट एनॉलिसिस सहित हर पहलू की जांच की है. इसमें यह पाया गया कि शिक्षकों की क्षमता बढ़ाने और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए उन्हें ट्रेनिंग के लिए फिनलैंड भेजना जरूरी है.
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डिप्टी सीएम ने कहा कि एलजी के पास मंत्रिपरिषद के किसी भी निर्णय पर कॉस्ट बेनिफिट एनॉलिसिस का आदेश देने की पॉवर नहीं है. एलजी ने कहा है कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करने के लिए बाध्य नहीं हैं, क्योंकि वो उसे सुप्रीम कोर्ट की राय मानते हैं. हम एलजी साहब को याद दिलाना चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश न केवल भारत के हर नागरिक के लिए बाध्यकारी हैं बल्कि देश का कानून बन गए हैं. हर नागरिक सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने के लिए बाध्य है.
इसके अलावा, एलजी ने यह भी कहा है कि वो दिल्ली के 'प्रशासक' हैं. इसलिए उन्हें किसी भी विषय पर किसी भी अधिकारी को कोई भी आदेश जारी करने की सर्वोच्च शक्तियां प्राप्त हैं. हम विनम्रता पूर्वक कहना चाहते हैं कि दिल्ली के 'प्रशासक' की शक्तियां असीमित नहीं हैं. उन्हें संविधान और सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न आदेशों में परिभाषित किया गया है, जो बाध्यकारी हैं. इस संबंध में एलजी एक अच्छे संवैधानिक विशेषज्ञ से सलाह ले सकते हैं.
उन्होंने आगे कहा है कि दिल्ली सरकार को दिल्ली के दो करोड़ लोगों ने चुना है. कई बार सर्वोच्च न्यायालय ने लोकतंत्र के पक्ष में फैसला सुनाया है कि एक मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली निर्वाचित मंत्रिपरिषद के पास सभी शक्तियां हैं. ऐसे में अगर मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री ने फैसला किया है कि वे अपने शिक्षकों को ट्रेनिंग के लिए विदेश भेजना चाहते हैं, तो एलजी बार-बार मामूली आपत्तियां लगाकर इसे कैसे रोक सकते हैं?
साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि दिल्ली सरकार की फाइलें एलजी के पास नहीं जाएंगी. एक बार किसी मंत्री द्वारा निर्णय लिए जाने के बाद उसकी एक प्रति एलजी को भेजी जाएगी. एलजी साहब के अप्रूवल या सहमति का इंतजार किए बिना मंत्री उस फैसले को लागू करना शुरू कर देंगे. एलजी की सहमति की आवश्यकता नहीं है.
डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने कहा है कि वर्ष 2021 में दुर्भाग्य से केंद्र सरकार ने जीएनसीटीडी एक्ट में संशोधन किया और संविधान पीठ के उक्त फैसले को पलट दिया. उस संशोधन का एकमात्र उद्देश्य सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ के फैसले को अमान्य ठहराना था. संशोधन के अनुसार, अब से सभी फाइलें एलजी के पास जाएंगी. निर्णय तब तक लागू नहीं किया जाएगा, जब तक कि एलजी यह तय नहीं कर लेते कि क्या वह मंत्रिपरिषद के निर्णय से असहमत होना चाहते हैं और क्या वह इस मामले को भारत के राष्ट्रपति के पास भेजना चाहते हैं. हालांकि, तब से यह देखा गया है कि एलजी शायद ही कभी संविधान के अनुच्छेद 239एए (4) के प्रावधान का इस्तेमाल करते हैं और वह शायद ही कभी किसी मामले को राष्ट्रपति के पास भेजते हैं. हालांकि, वह लगभग हर मामले पर अनावश्यक और मामूली आपत्तियां लगाते रहते हैं. संशोधन का यह असर हुआ है कि अब एलजी की सहमति सभी मामलों पर जरूरी है. यह असंवैधानिक है. यह संविधान पीठ के फैसले के उलट है. यह लोकतंत्र और संविधान के मूल ढांचे के भी खिलाफ है, जो एक अनिर्वाचित व्यक्ति तय कर रहा है और प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई और लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार के हर फैसले को बदल रहा है.
उन्होंने आगे कहा है कि सभी पहलुओं की जांच करने के बाद दिल्ली सरकार ने अपने टीचर्स को ट्रेनिंग के लिए फिनलैंड भेजने का फैसला किया है. एलजी कृपया सूचित करें कि क्या वे संविधान के अनुच्छेद 239एए (4) के प्रावधान को लागू करना चाहते हैं. अगर वे ऐसा करना चाहता है, तो उन्हें टीबीआर के नियम 49 में दी गई प्रक्रिया का पालन करना चाहिए.