सैलरी ना मिलने से प्रोफेसर्स परेशान है. तो दूसरी तरफ जिन प्रोफेसरों को रिटायर को लेकर बड़ी चिंता, क्योंकि उन्हें रिटायरमेंट बेनिफिट तक नहीं मिल पा रहा. प्रोफेसर्स को यह भी डर सता रहा है कि रिटायरमेंट के बाद क्या उन्हें पेंशन के लिए भी इसी तरह से परेशान होना पड़ेगा और फिर आगे उनका बुढ़ापा कैसे गुजरेगा.
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ओपी शुक्ला/दिल्ली(द्वारका): दिल्ली सरकार के द्वारा चलाए जा रहे डिग्री कॉलेजों के प्रोफेसरों की सैलरी से कटौती की गई, जिसके चलते सभी प्रोफेसर परेशान हैं. जहां उनका कहना है कि पिछले 3 सालों से कॉलेजों की स्थिति खराब है कि उनकी सैलरी 3 से 4 महीने लेट आती हैं. ऐसे में अब सैलरी से पैसा काट कर सरकार उन्हें और लाचार बना रही है. वही यह स्थिति सिर्फ दिल्ली सरकार के ही डिग्री कॉलेजों में है जबकि केंद्र सरकार के कॉलेजों में सभी प्रोफेसर की सैलरिया निरंतर और समय पर आती हैं.
दिल्ली सरकार द्वारा चलाए जा रहे लगभग 12 डिग्री कॉलेज के प्रोफेसरों की सैलरी से कटौती का मामला सामने आया है. जहां द्वारका सेक्टर 3 स्थित दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज भी इन्हीं 12 कॉलेजों में शामिल है और कॉलेज में लगभग ढाई सौ प्रोफेसरों की सैलरी से कटौती की गई है, जिससे सभी प्रोफेसर नाखुश हैं. जहां प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर की सैलरी से 50 हजार रुपये तथा असिस्टेंट प्रोफेसर की सैलरी से 30 हजार की कटौती की गई है.
दिल्ली सरकार को कई बार कर चुकें हैं शिकायत
वहीं, कॉलेज के प्रोफेसर्स का कहना है कि पिछले 3 सालों से सैलरी को लेकर बड़ी समस्या है और उन सभी की जिंदगी परेशानी से गुजर रही है. जहां उनकी सैलरी 3 से 4 महीने लेट आती हैं. वही इस समस्या के खिलाफ कई बार दिल्ली सरकार को शिकायतें दे चुके हैं और जब शिकायतों पर कार्यवाही नहीं हुई तो प्रोफेसर एसोसिएशन माननीय कोर्ट की शरण में भी गया.
लेकिन, उसके बावजूद भी कोई सुधार नहीं हुआ. हालांकि, इस बार भी टीचर्स डे पर एसोसिएशन द्वारा दबाव डाले जाने के बाद सैलरी के बारे में प्रशासन द्वारा सोचा गया। जहां जुलाई की सैलरी आनी थी, लेकिन अभी तक उसके आने की कोई उम्मीद नहीं है और उसी सैलरी में से यह कटौती की गई है. शायद यह जुलाई की सैलरी नवंबर तक उन्हें मिले. वही इस हिसाब से अगस्त, सितंबर और अक्टूबर की सैलरी शायद अगले साल मिले.
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इतना ही नहीं कॉलेज के कांट्रेक्चुअल स्टाफ की सैलरी का भी यही हाल है. वही प्रोफेसर प्रदीप कुमार झा, दीन दयाल उपाध्याय कॉलेज के स्टाफ एसोसिएशन के प्रेसिडेंट है उनका का कहना है कि यह समस्या सिर्फ दिल्ली सरकार की यूनिवर्सिटी में है. बाकी और कहीं नहीं है. जहां पिछली बार कॉलेज का बजट 38 करोड़ रुपये था. वही अब कम करके 32 करोड़ रुपये कर दिया गया है.
उन्होंने कहा कि जहां दिल्ली सरकार के कॉलेजों के प्रोफेसर की फाइनेंशली स्थिति इस कदर खराब हो चुकी है कि प्रोफेसर्स को मजबूरी में अपने दवा आदि व बच्चों की फीस के लिए अपने पीएफ से पैसा निकाल कर अपनी जरूरतों को पूरा करना पड़ रहा है. इतना ही नहीं कॉलेज की बिल्डिंग पर भी कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा. जहां कई सालों से कॉलेज की बिल्डिंगों का मेंटेनेंस नहीं हुआ है और जगह-जगह से बिल्डिंग के प्लास्टर व पत्थर निकल कर गिर रहे हैं.
उन्होंने आगे कहा कि कॉलेज की सीढ़ियां टूट रही है. यहां तक की मेंटेनेंस ना होने की वजह से पिछले 1 सालों से कॉलेज की फिजिक्स लैब बंद पड़ी हुई है, क्योंकि फिजिक्स लैब डेंजर हालत में है, लेकिन इन सबके बावजूद दिल्ली सरकार इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रही. डॉक्टर केके झा असिस्टेंट प्रोफेसर हैं और उनका कहना है कि सभी प्रोफेसरों की फाइनेंसियल स्थिति बद से बत्तर हो रही है.
प्रोफेसर को सता रही है रिटायरमेंट की चिंता
उन्होंने कहा कि वहीं एक तरफ समय पर सैलरी ना मिलने से प्रोफेसर्स परेशान है. तो दूसरी तरफ जिन प्रोफेसरों को रिटायर होना है वह अधिक परेशान है क्योंकि उन्हें रिटायरमेंट बेनिफिट तक नहीं मिल पा रहा. क्योंकि यदि किसी रिटायर प्रोफेसर को रिटायरमेंट बेनिफिट दिया जाता है. तो सभी की सैलरी और लेट हो जाती है. ऐसे में प्रोफेसर्स को यह भी डर सता रहा है कि रिटायरमेंट के बाद क्या उन्हें पेंशन के लिए भी इसी तरह से परेशान होना पड़ेगा और फिर आगे उनका बुढ़ापा कैसे गुजरेगा.
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इतिहास के प्रोफेसर राधा माधव भारद्वाज का कहना है कि वह पिछले 33 सालों से यूनिवर्सिटी में कार्य कर रहे हैं. उनकी उम्र 59 साल की है और वह रिटायर होने की कगार पर हैं, लेकिन अपनी पूरी जिंदगी में उन्होंने ऐसी स्थिति कभी नहीं देखी. जहां अपने बच्चों की फीस भरने के लिए वह कई बार पीएफ से पैसा निकाल चुके हैं और जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें उधार तक लेना पड़ रहा है.
उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार द्वारा प्रोफेसर्स को मिलने वाली मेडिकल फैसिलिटी भी बंद की जा चुकी है. इन सबके बावजूद सभी प्रोफेसर अपनी लगन के साथ बच्चों को पढ़ाते हैं जहां देश के 50 हजार कॉलेजो में से दिल्ली के कॉलेज की रैंक 15 नंबर पर आई है, लेकिन फिर भी दिल्ली सरकार अपने प्रोफेसरों पर ध्यान नहीं दे रही, जिससे दिल्ली सरकार के सभी कॉलेजों के प्रोफेसर लाचार और परेशान हैं.