एक ही गांव में कई स्कूल खोलने, लड़के-लड़कियों के अलग-अलग स्कूल बनाने और एक ही कैंपस में दो स्कूल चलाने का मकसद प्रबंधन को बेहतर बनाना था. इन स्कूलों के हेड टीचर, स्टाफ, प्रशासनिक कार्य और खाते अलग-अलग होते थे. प्रबंधन बेहतर होने से शिक्षा की गुणवत्ता सुधर रही थी, लेकिन मौजूदा सरकार ने एक ही झटके में सब खत्म कर दिया.
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विनोद लांबा/चंडीगढ़ः बीजेपी-जेजेपी सरकार बेरोजगारी के बाद हरियाणा को अशिक्षा में भी नंबर वन बनाना चाहती है. इसलिए जनता की गाढ़ी कमाई, पीढ़ियों की मेहनत, पंचायतों के चंदे व समाज के सहयोग से स्थापित हुए स्कूलों को बंद किया जा रहा है. ये कहना है पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा का.
उन्होंने कहा कि गठबंधन सरकार स्कूलों का मर्जर नहीं बल्कि प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था का मर्डर कर रही है. रैशनलाइजेशन और चिराग योजना का मकसद तय रणनीति के तहत स्कूलों पर ताले जड़ना है. सरकार जानबूझकर भ्रामक बयानबाजी कर रही है ताकि जनता से सच्चाई छुपाई जा सके. खुद मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री के बयान आपस में मेल नहीं खाते.
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उदाहरण के तौर पर शिक्षा मंत्री कहते हैं कि सरकार ने एक गांव और एक किलोमीटर के दायरे में चल रहे स्कूलों को ही मर्ज किया है, लेकिन मुख्यमंत्री कहते हैं कि सिर्फ एक कैंपस में चल रहे दो या दो से ज्यादा स्कूलों को मर्ज किया गया है. शिक्षा महकमे का आदेश और विधानसभा में सरकार का जवाब बताता है कि बाकायदा लिस्ट जारी करके सरकार 301 स्कूलों पर ताले जड़े गए हैं लेकिन मुख्यमंत्री पत्रकार वार्ता करके कहते हैं कि उनकी सरकार ने कोई भी स्कूल बंद नहीं किया.
मुख्यमंत्री उसी पत्रकार वार्ता में कहते हैं कि बीजेपी सरकार ने पूरे कार्यकाल के दौरान सिर्फ 120 स्कूलों को ही मर्ज किया और उन 120 में से 42 स्कूलों को फिर से शुरू कर दिया गया. यानी मुख्यमंत्री के मुताबिक इस सरकार ने सिर्फ 78 स्कूलों को ही मर्ज किया, लेकिन उसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्यमंत्री खुद बताते हैं कि उनकी सरकार ने मर्जर प्रक्रिया के तहत 14,503 स्कूलों की संख्या घटाकर 9700 कर दी. यानी सरकार ने 4800 से ज्यादा स्कूलों को मर्ज कर दिया.
खुद मुख्यमंत्री ने बताया है कि उनकी सरकार ने 4493 स्कूलों को मर्ज कर 8677 प्राइमरी स्कूलों की संख्या 4184 तक समेट दी है. इस तरह हजारों प्राइमरी स्कूलों से हेड टीचर्स का पद भी खत्म हो गया. ऐसा करके सरकार ने जेबीटी अध्यापकों से हेड टीचर के तौर पर प्रमोशन का अधिकार भी छीन लिया है.
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हुड्डा ने कहा कि एक ही गांव में कई स्कूल खोलने, लड़के-लड़कियों के अलग-अलग स्कूल बनाने और एक ही कैंपस में दो स्कूल चलाने का मकसद प्रबंधन को बेहतर बनाना था. इन स्कूलों के हेड टीचर, स्टाफ, प्रशासनिक कार्य और खाते अलग-अलग होते थे. प्रबंधन बेहतर होने से शिक्षा की गुणवत्ता सुधर रही थी, लेकिन मौजूदा सरकार ने एक ही झटके में सब खत्म कर दिया.
भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि शिक्षा मंत्री कांग्रेस सरकार के दौरान कई स्कूल बंद किए जाने का दावा करते हैं. लेकिन मुख्यमंत्री कहते हैं कि कांग्रेस सरकार ने स्कूलों को सिर्फ मर्ज किया गया था. उन्होंने बताया कि कांग्रेस सरकार बनने से पहले 2005-06 तक प्रदेश में 13,190 सरकारी स्कूल थे. कांग्रेस ने इस संख्या को 2014-15 तक बढ़ाकर 14,504 कर दिया.
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कांग्रेस सरकार ने सिर्फ नए स्कूल खोलने और स्कूलों को अपग्रेड करने का काम किया था. विधानसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में सरकार ने बताया कि कांग्रेस सरकार के दौरान 2332 स्कूलों को अपग्रेड/ऑपन किया. इसके मुकाबले आरटीआई के जवाब में मौजूदा सरकार ने बताया कि उसने 8 साल में सिर्फ 8 नए स्कूल स्थापित किए और सिर्फ 463 स्कूलों को अपग्रेड किया.
स्पष्ट है कि नए स्कूल स्थापित करने, स्कूलों को अपग्रेड करने और शिक्षा महकमे में नौकरियां देने के मामले में मौजूदा सरकार कांग्रेस के सामने कहीं नहीं टिकती. क्योंकि कांग्रेस सरकार के दौरान हरियाणा को शिक्षा का हब बनाने के लिए कई बड़े कदम उठाए गए थे. आरोही, संस्कृति मॉडल, किसान मॉडल समेत सैंकड़ों स्कूलों की स्थापना के साथ कांग्रेस सरकार के दौरान प्रदेश में आईआईएम, आईआईटी, केंद्रीय विश्वविद्यालय, डिफेंस यूनिवर्सिटी समेत 15 राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के शिक्षण संस्थान स्थापित किए गए.
इस सरकार ने एक कैंपस ही नहीं, एक ही गांव व आस-पास के गांवों में चलने वाले हजारों स्कूलों को मर्ज कर दिया है. ऐसा करके उसने 38,476 खाली पड़े टीचर्स के पदों में से लगभग 25,000 पदों को बिना कोई भर्ती के खत्म कर दिया है. जबकि टीचर्स नहीं होने की वजह से सैंकड़ों स्कूलों में साइंस स्ट्रीम बंद हो गई है. कई स्कूलों में मैथ्स, फिजिक्स, कैमिस्ट्री, हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी सब्जेक्ट के टीचर्स नहीं हैं. इस तरह टीचर्स के पदों को खत्म और सरकारी स्कूलों को बंद करके मौजूदा सरकार दलित, पिछड़े, गरीब, किसान, मजदूर व ग्रामीण बच्चों से शिक्षा का अधिकार छीन रही है.