Child Care Tips: Mobile आपके बच्चे को कर रहा बीमार, अच्छे भविष्य के लिए अपनाएं ये 5 उपाय
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Child Care Tips: Mobile आपके बच्चे को कर रहा बीमार, अच्छे भविष्य के लिए अपनाएं ये 5 उपाय

Five Ways for Child Mental Health: एक सर्वे में 74 प्रतिशत लोग डिप्रेशन और तनाव की शिकार पाई गए, जिनको 6 वर्ष से कम उम्र में ही स्मार्टफोन मिल गया था. ये आंकड़ा पुरुषों के मामले में थोड़ा कम है.

Child Care Tips: Mobile आपके बच्चे को कर रहा बीमार, अच्छे भविष्य के लिए अपनाएं ये 5 उपाय

Child Care Tips: क्या आपका बच्चा भी स्मार्टफोन के बिना खाना नहीं खाता. क्या आपके बच्चे भी मोबाइल हाथ में नहीं रहने पर मन नहीं लगने की शिकायत करते हैं या स्मार्टफोन को ही अपना टीचर या पूरी दुनिया मान चुके हैं. तो ये खबर आपके लिए हैं. बच्चों को पहली बार स्मार्ट फोन किस उम्र में दें, कितनी देर के लिए दें, उन्हें मोबाइल दें भी या न दें, ये सवाल हर माता-पिता के मन में आता है. वैसे तो इनमें से किसी भी सवाल का सही-सही जवाब कोई डॉक्टर नहीं बता पाया है, लेकिन अब ये जरूर पता लगा लिया गया है कि इस मामले में जितनी देर की जाए, उतना बेहतर है.  

अमेरिका की सेपियन्स लैब ने हाल ही में एक स्टडी की है. इसका नाम है-Age of first smartphone and mental wellbeing outcome.  इस सर्वे में मेंटल हेल्थ कोशेंट (Mental Health Quotient) यानी मानसिक स्वास्थ्य को स्कोर देकर लोगों का आकलन किया गया है. सर्वे के नतीजे उन अभिभावकों के लिए चिंता का विषय हो सकते हैं. इसके मुताबिक बच्चों को जितनी कम उम्र में स्मार्ट फोन मिल गया, उतनी ही कम उम्र में उनमें मानसिक परेशानियां पैदा होती गईं. रिसर्च के मुताबिक बच्चों को मोबाइल देने में जितनी भी देर की जाए, उतना भला है.  

भारत समेत 40 देशों के लोग सर्वे में हुए शामिल 

 

सर्वे में शामिल 74 प्रतिशत युवतियों पर किए गए एनालिसिस के दौरान वे डिप्रेशन और तनाव की शिकार पाई गईं. इनको 6 वर्ष से कम उम्र में ही स्मार्टफोन मिल गया था. ऐसी महिलाएं जिन्हें 10 वर्ष की उम्र में स्मार्ट फोन मिला था, उनमें से 61% मानसिक परेशानियों से जूझती पाई गईं. वहीं 15 साल की उम्र में पहली बार स्मार्टफोन पाने वाली महिलाओं में से 52% को मानसिक बीमारियों का शिकार पाया गया. ये सर्वे 40 देशों के युवाओं पर किया गया. इसमें 18 से 24 वर्ष के 27969 लोगों के व्यवहार का अध्ययन किया गया. इस सर्वे में भारत से 4000 लोग शामिल थे. 

पुरुषों में समस्या महिलाओं से कम 
पुरुषों के लिए सर्वे के नतीजे महिलाओं की अपेक्षा थोड़े बेहतर मिले. हालांकि जिन युवाओं को 6 वर्ष से पहले उम्र में स्मार्टफोन मिल गया था, उनमें से 42% पुरुष तनाव से पीड़ित मिले. 18 वर्ष की उम्र में पहली बार स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वाले 36% पुरुषों को मानसिक परेशानियों से जूझना पडा.  

कम उम्र में मोबाइल थमाने के साइड इफेक्ट  
सर्वे में शामिल युवाओं में ज्यादा गुस्सा आना, खुदकुशी का ख्याल और दुनिया से खुद को कटा हुआ महसूस करना जैसे लक्षण बाकियों के मुकाबले ज्यादा दिखाई दिए. ये रिसर्च भारतीयों के लिए बहुत अहम है. हाल ही में भारत में McAfee ने एक सर्वे किया था. इसके मुताबिक भारत में 10 से 14 वर्ष के 83% बच्चे स्मार्टफोन इस्तेमाल कर रहे हैं. 15 साल से ज्यादा उम्र के 88% बच्चे स्मार्टाफोन इस्तेमाल कर रहे हैं, जबकि मोबाइल इस्तेमाल के वैश्विक औसत की बात करें तो वो 76% है. 

48 प्रतिशत बच्चे मोबाइल पर छुपकर देखते हैं
भारत में 48% बच्चे अपनी मोबाइल चैट्स या यूज प्राइवेट रखते हैं यानी वो अपने माता-पिता या घर वालों से स्मार्टफोन की स्क्रीन छिपाते हैं, जबकि विश्व का औसत इस मामले में 37% है. इसके नतीजे भी उतनी ही खतरनाक है. भारत के 22% बच्चे साइबर बुलिंग का शिकार हुए, जो विश्व के औसत से 5% ज्यादा है. भारत में 23% बच्चों से उनकी फाइनेंशियल डिटेल्स स्मार्टफोन यूज के दौरान लीक हो गई, जो विश्व के औसत से 13% ज्यादा है. हैरानी की बात ये है कि भारत में केवल 47% अभिभावक बच्चों के स्मार्टफोन के इस्तेमाल से परेशान नजर आए.

37% भारतीय बच्चों में एकाग्रता की कमी 
अब आप सोचेंगे कि स्मार्टफोन तो हर हाथ में है, इसमें परेशानी क्या है. मार्च 2022 में इलेक्ट्रानिक्स मिनिस्ट्री ने संसद में रखे गए आंकड़ों में बताया कि भारत में 24% बच्चे सोने से पहले स्मार्टफोन चेक करते हैं और 37% बच्चे एकाग्रता यानी फोकस करने की क्षमता से जूझ रहे हैं.   

AIIMS की स्टडी हैरान करने वाली 

2015 में किए गए एम्स के अध्ययन में 10 प्रतिशत स्कूली बच्चों में (Myopia) मायोपिया की बीमारी देखी गई थी, लेकिन 2050 तक भारत के करीब 40 प्रतिशत बच्चे इसकी जद में आ चुके होंगे. इसका सीधा संबंध मोबाइल फोन की लाइट से पाया गया है.   

इस दशा का जिम्मेदार कौन? 
बड़ा सवाल ये है कि जब एक कमरे में बैठे सभी लोग मोबाइल की स्क्रीन से चिपके हों तों क्या इस हालत के लिए पूरी तरह से मां-बाप ही जिम्मेदार हैं. अभिभावकों के मुताबिक वे खुद हालात के शिकार होकर रह गए हैं. उन्हें समझ में नहीं आता कि वे बच्चों की मोबाइल की आदत को कैसे छुड़ाएं. उनका कहना है कि स्कूल से बच्चों को होमवर्क मिलता है, सर्कुलर वाट्सऐप पर आता है और बच्चों को सिखाने के लिए यू ट्यूब के वीडियो दिखाने की सलाह दी जाती है.

बच्चों के मानसिक विकास के उपाय 
एक्सपर्ट की मानें तो मोबाइल फोन के इस्तेमाल से परेशान होकर बहुत से माता पिता अपने बच्चों को क्लीनिक में लेकर आ रहे हैं. फोर्टिस अस्पताल, नोएडा की मनोचिकित्सक डॉ मनु तिवारी का कहना है कि बच्चों को मोबाइल फोन से दूर रखना डिजिटल युग में संभव नहीं है. हां बच्चों द्वारा इसके इस्तेमाल की अवधि पर लगाम लगाना और वो कौन सा कंटेंट देख रहे हैं, उस पर नजर रखना जरूरी है. 

 बच्चों के लिए ये आदतें तुरंत अपनाएं 
1. बच्चों को आउटडोर गेम्स खिलाने पर जोर दें. 
2. बच्चे को पार्टनर नहीं मिल रहा तो आप उसके साथ खेलें. 
3. घर में बच्चे आसपास हों तो अपना मोबाइल कम से कम इस्तेमाल करें. बच्चे देखकर ज्यादा सीखते हैं और नसीहत सुनकर कम. 
4. गर्मियों की छुट्टियां आ चुकी हैं. ऐसे में बच्चे को किसी फिजिकल एक्टिविटी में लगाएं, जो उसे पसंद हो. 
5. साथ ही बच्चों को डांटने से पहले खुद से पूछें कि आप स्वयं मोबाइल के कितने गुलाम हैं.  

 

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