नए संसद भवन का अशोक स्तंभ क्यों है इतना खास, कुल 16000 किलो के स्ट्रक्चर को खड़ा करने में ये आईं ये चुनौतियां
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नए संसद भवन का अशोक स्तंभ क्यों है इतना खास, कुल 16000 किलो के स्ट्रक्चर को खड़ा करने में ये आईं ये चुनौतियां

पीएम नरेंद्र मोदी ने आज सुबह पूजा पाठ और वैदिक मंत्रोच्चार करने के साथ नए संसद भवन (सेंट्रल विस्टा) की छत पर 20 फीट ऊंचे अशोक स्तंभ का अनावरण किया. इस नए संसद भवन का निर्माण इस साल दिसंबर तक पूरा करने की योजना है.

नए संसद भवन का अशोक स्तंभ क्यों है इतना खास, कुल 16000 किलो के स्ट्रक्चर को खड़ा करने में ये आईं ये चुनौतियां

नई दिल्ली: पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने आज सुबह नए संसद भवन (सेंट्रल विस्टा) की छत पर बने राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ (Ashoka Pillar) का अनावरण किया. जब इस पर से पर्दा हटा तो इस विशालकाय आकृति नजर आई और इसे देखकर सबसे पहले मन में यही खयाल आया कि इसे सेंट्रल विस्टा की छत पर कैसे लाया गया होगा.

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क्यों ये अशोक स्तम्भ औरों से अलग है. आइए हम आपको बताते हैं. कांसे का बना यह अशोक स्तंभ 9500 किलोग्राम वजनी है, जबकि इसे सपोर्ट देने वाले स्ट्रक्चर का वजन 6500 किलो है. भारतीय कारीगरों द्वारा पूरी तरह से हाथ से तैयार किए गए इस अशोक स्तंभ की ऊंचाई 6.5 मीटर है. इसे बनाना आसान नहीं था, क्योंकि इसे जमीन से 32 मीटर ऊपर बनाया जा रहा था.

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नए संसद भवन की छत पर अशोक स्तंभ की ढलाई का काम 8 चरणों में पूरा किया गया. सामग्री और शिल्प कौशल के दृष्टिकोण से भारत में कहीं और इस जैसा कोई अन्य स्ट्रक्चर खड़ा नहीं किया गया है. देश के विभिन्न हिस्सों के 100 से अधिक कारीगरों ने अंतिम स्थापना में देखी जा सकने वाली गुणवत्ता को जांचने के लिए 6 माह से ज्यादा वक्त लिया. 

यह स्तंभ अशोक के सारनाथ वाले स्तंभ का रूपांतरण है, जिसे सारनाथ संग्रहालय में संरक्षित किया गया है. एक शीर्ष फलक पर चार शेर एक-दूसरे से पीठकर चारों दिशाओं में खड़े होते हैं. शीर्ष फलक पर एक हाथी, एक सरपट दौड़ता हुआ घोड़ा, एक बैल के अलावा धर्म चक्र भी होता है, जो भारतीय प्रतीक की  शक्ति, हिम्मत, गर्व, और विश्वास को दिखाता है. 

राष्ट्रीय प्रतीक की ढलाई की प्रक्रिया
इस विशालकाय अशोक स्तंभ को बनाने के लिए सबसे पहले कंप्यूटर ग्राफिक स्केच और उसके आधार पर एक क्ले मॉडल बनाया गया था, जिसे सक्षम अधिकारियों द्वारा अनुमोदित किए जाने के बाद एफपीआर मॉडल बनाया गया. इसके बाद लॉस्ट वैक्स प्रोसेस के जरिये बनाए सांचे में पिघले हुए कांसे को पलट दिया गया. मिट्टी को कांसे में डालकर मोल्ड तैयार किया गया. यह कांसे और पिघले हुए मोम के बीच छूटी जगह में जरूरत के मुताबिक मोटाई में भर दिया गया. मोल्ड को हटाने के बाद मोम के खोल को गर्मी प्रतिरोधी मिश्रण से भर दिया जाता है. मोम ट्यूब, जो कास्टिंग के दौरान कांसा डालने के लिए नलिकाएं प्रदान करते हैं. 

इस प्रक्रिया में उत्पादित गैसों के लिए वेंट को मोम खोल के बाहर फिट किया जाता है. इसे सुरक्षित करने के लिए धातु के पिन इस्तेमाल किए गए. इसके बाद तैयार मोम खोल पूरी तरह से गर्मी प्रतिरोधी फाइबर की परतों से ढका हुआ है और इसके बाद इसे ओवन के माध्यम के गर्म कर सुखाया गया. गर्म होने से मोम ट्यूब के माध्यम से निकल जाता है और फिर तैयार प्लास्टर मोल्ड को रेत में पैक किया जाता है और इसके बाद पिघला हुआ कांसा नलिकाओं के माध्यम से डाला जाता है, जो मोम द्वारा छोड़े गए स्थान में भर जाता है. ठंडा होने के बाद बाहरी प्लास्टर और कोर हटा दिए जाते हैं और तैयार हुए स्ट्रक्चर को पॉलिश पॉलिश कर दिया गया.

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