कार्यक्रम के अतिथि एवं डूसू अध्यक्ष अक्षित दहिया ने कहा की, विश्वविद्यालय ही वह परिसर है, जहां लोकतंत्र छात्रों के माध्यम से जन्म लेता और फलता-फूलता है. जामिया जैसे विश्वविद्यालय परिसर में आज लोकतंत्र की हत्या हुई है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा ही वामपंथियों के साथ मिलकर हुआ.
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नई दिल्ली: 6 जून के दिन जामिया के छात्रों ने पर्यावरण दिवस पर एक कार्यक्रम आयोजित किया था, जिसकी प्रशासन से लिखित अनुमति भी ली गई थी. 2 घंटे पहले ही कार्यक्रम की अनुमति को निरस्त कर दिया गया. इसके बाद कार्यक्रम के अतिथि और छात्रों के साथ यूनिवर्सिटी प्रशासन और सुरक्षा गार्डों द्वारा अभद्रता कर गेट से बाहर खदेड़ दिया. उनमें से एक छात्र का फोन भी गार्ड ने छीन कर तोड़ दिया और धक्के मार कर बाहर निकाल दिया, जो छात्र कार्यक्रम के लिए सेमिनार हॉल में बैठे थे. उन्हें हॉल में ही बंद कर दिया और बाहर नहीं आने दिया गया. किसी प्रकार से छात्रों ने यूनिवर्सिटी के गेट पर वक्तव्य किया और पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त रखने में सहयोग करने की शपथ ली. कार्यक्रम के पहले और बाद भी प्रशासन के अधिकारियों ने अतिथियों के साथ काफी बदसलूकी की.
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6 जून को स्टूडेंट फॉर सेवा (SFD)- जामिया जो की एबीवीपी (ABVP) का आयाम है, स्टूडेंट फॉर सेवा ने पर्यावरण दिवस पर वक्तव्य आयोजित कराया था, जिसके लिए संबंधित संस्थान के डायरेक्टर से लिखित अनुमति ली गई थी एवं प्रॉक्टर की भी अनुमति ली गई थी. कार्यक्रम का विषय था "वेस्ट मैनेजमेंट एवं आत्मनिर्भर भारत" जिसमें जाने माने पर्यावरणविद एवं पर्यावरण कार्यकर्ता इम्तियाज अली जी मुख्य वक्ता थे. डूसू अध्यक्ष अक्षित दहिया भी अन्य वक्ता के रूप में रहे.
कार्यक्रम की अनुमति पहले लेने के बावजूद कार्यक्रम से कुछ समय पहले अतिथियों एवं आयोजक छात्रों को यूनिवर्सिटी गेट से नहीं घुसने दिया गया एवं गार्डों ने उनसे अभद्र व्यवहार और धक्का मुक्की की और एक छात्र का मोबाइल छीन कर तोड़ दिया.
किसी प्रकार आयोजकों ने कार्यक्रम को गेट पर ही करने का निर्णय लिया, परंतु कार्यक्रम शुरू होते ही वामपंथी छात्रों ने वहां विरोधी एवं वामपंथी नारे लगाए. आयोजकों को बुरा भला बोलने लगे. इसी बीच कार्यक्रम शुरू होने से पहले जो छात्र कार्यक्रम हेतु सेमिनार हॉल में बैठे थे. उन्हें वहीं बंद किया गया ताकि वह कार्यक्रम में भाग न ले सकें. आज कार्यक्रम के दूसरे दिन भी जो छात्र कार्यक्रम के आयोजन में लगे थे. उनको फोन करके धमकियां दी जा रही हैं और उनपर एकेडमिक दबाव भी बनाया जा रहा है.
कार्यक्रम के अतिथि एवं डूसू अध्यक्ष अक्षित दहिया ने कहा की, विश्वविद्यालय ही वह परिसर है, जहां लोकतंत्र छात्रों के माध्यम से जन्म लेता और फलता-फूलता है. जामिया जैसे विश्वविद्यालय परिसर में आज लोकतंत्र की हत्या हुई है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा ही वामपंथियों के साथ मिलकर हुआ. प्रशासन का इतना अभद्र रवैया पूरी तरह से असहनीय है. जामिया प्रशासन पूर्णतया वामपंथियों के इशारों पर नाच रहा है और छात्र अधिकारों का खुलेआम हनन कर रहा है.
हमारे छात्र मित्रों को फोन करके धमकाया और उनपर एकेडमिक दबाव बनाया जा रहा है. ऐसा जामिया में पहली बार नहीं हुआ है, पहले भी राष्ट्रवादी विचारों से संबंध रखने वाले छात्रों को कार्यक्रम करने से रोका जाता रहा है, वहीं वामपंथी विचार रखने वाले छात्र बेधड़क बिना पूर्व अनुमति के कार्यक्रम करते रहे हैं. लेकिन इससे छात्र दबने वाला नहीं है और हम समाज जीवन से जुड़े मुद्दों पर और कार्यक्रम करते रहेंगे.
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता एवं पर्यावरणविद इम्तियाज अली ने कहा कि मैं अब भी सदमे में हूं कि प्रदर्शनकारियों ने दावा किया कि वह वहां भड़काऊ भाषण देने आए थे. उन्होंने कहा कि मैं खुद को कभी किसी खास पार्टी, समूह, संगठन या विचारधारा से नहीं जोड़ता. पर्यावरण मेरे लिए सर्वोच्च प्राथमिकता है. मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुझे किसने बुलाया है. मैं एकदम सदमे में था जब उन्होंने हमें अंदर नहीं जाने दिया, यह दावा करते हुए कि मैं भड़काऊ भाषण दूंगा. मैंने उनसे बात करने की कोशिश की. मैंने उनसे मेरी प्रोफाइल देखने को कहा था.
इम्तियाज अली ने कहा कि मैंने उन्हें कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया और उनसे कहा कि जो मैंने वहां कहा है उसे रिकॉर्ड करें. मेरे द्वारा उत्तेजक कुछ भी कहने का कोई सवाल ही नहीं था. मेरा काम लोगों को प्लास्टिक कचरा प्रबंधन के बारे में शिक्षित करना है. इसके लिए मैंने डेढ़ घंटे का लेक्चर तैयार किया था. मेरा इरादा छात्रों को कचरा प्रबंधन क्षेत्र में नौकरी के अवसरों के बारे में शिक्षित करना था. साथ ही, मैंने एक योजना तैयार की थी कि आने वाले वर्षों में जामिया कैसे जीरो वेस्ट बन सकता है. मैं छात्रों को उनके कैंपस को कचरा प्रबंधन में एक मिसाल बनाना सिखाना चाहता था, लेकिन प्रशासन ने मुझे बोलने नहीं दिया.
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