International Geeta Mahotsav 2023: गांव में न बिजली न शिक्षा, हाथों से बनाई दोकरा कलाकृतियां, राष्ट्रीय स्तर पर दिलाई पहचान
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International Geeta Mahotsav 2023: गांव में न बिजली न शिक्षा, हाथों से बनाई दोकरा कलाकृतियां, राष्ट्रीय स्तर पर दिलाई पहचान

अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव 2023 में जहां देश के विभिन्न राज्यों के शिल्पकार आकर अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं. वहीं उड़ीसा के कालाहाडी जिले की महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह के द्वारा बनाई गई कला का प्रदर्शन अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में किया है. 

 

International Geeta Mahotsav 2023: गांव में न बिजली न शिक्षा, हाथों से बनाई दोकरा कलाकृतियां, राष्ट्रीय स्तर पर दिलाई पहचान

International Geeta Mahotsav: अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव 2023 में देश के विभिन्न राज्यों से आए हुए शिल्पकार अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं.  इन कलाकृतियों को लोग भी खूब पसंद कर रहे हैं.  वही उड़ीसा के कालाहांडी जिले से महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह के द्वारा बनाई गई कला का प्रदर्शन अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में किया. यहां पर दोकरा कला के पीतल से बनाई हुई मूर्तियों की प्रदर्शनी लगाई गई है, जिसको लोग खूब पसंद कर रहे हैं.

राष्ट्रीय स्तर पर किया कला का प्रदर्शन
जहां भारत सरकार डिजिटलीकरण पर जोर दे रही है. वहीं, एक ऐसा गांव भी है जिसमें अभी तक ना बिजली पहुंची है और ना ही शिक्षा के लिए पर्याप्त साधन है, लेकिन वहां की महिलाओं ने अपनी कला के बदौलत बिना बिजली और बिना शिक्षा के भी अपने आप को राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित करने का काम किया है. शिल्पकार रंजन ने बताया कि वह उड़ीसा कालाहांडी जिले के गांव कांकेरी के रहने वाले हैं.  उनका गांव जंगलों से लगता है, जहां चारों तरफ पहाड़ियां हैं. अभी तक उनके गांव में ना बिजली आई है और ना ही पढ़ाई के लिए स्कूल बनाये गए हैं.  इतना ही नहीं वहां पर अभी तक आंगनबाड़ी केंद्र भी छोटे बच्चों के लिए स्थापित नहीं किया गया है. गांव में कुछ लोग फोन रखते हैं, लेकिन नेटवर्क भी नहीं आता और वहां पर बिजली न होने के चलते फोन चार्ज करने की भी बड़ी समस्या होती है.  वहीं, उनके गांव की महिलाओं द्वारा बनाई गई दोकरा कला देश के राष्ट्रीय लेवल के कार्यक्रमों और मेलों में एक अलग पहचान दिला रही है. जिसके चलते गांव की महिलाएं काफी जुनून के साथ इस कला में लगी हुई हैं साथ ही अपने रोजी-रोटी कमा रही हैं. स्कूल में पढ़ाई करने के लिए उनको अपने गांव से करीब 10-12 किलोमीटर दूसरे गांव में जाना पड़ता है, जहां पर जाकर उनके गांव के बच्चे पढ़ाई करते हैं.

बड़े स्तर पर करती हैं मुर्तियों को तैयार
उन्होंने बताया कि गांव में यह कला पिछले तीन-चार दशकों से चल रहा है, लेकिन इस कला को बाहर के लोगों तक पहुंचने में उनको काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा है.  कुछ सामाजिक संस्थाएं उनके गांव में आई थी और उन्होंने उनकी कला की काफी सराहना की. उन्होंने उनकी कला को राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने में काफी सहायता भी की. शुरुआती समय में सिर्फ उड़ीसा राज्य के लिए ही कलाकृति तैयार की जाती थी, लेकिन जैसे-जैसे वह इस पर और अधिक काम करते गए तो वह अब बड़े स्तर पर मूर्तियां तैयार करते हैं. स्वयं सहायता समूह को सिर्फ 10 महिलाओं ने शुरू किया था.  अब उनके साथ और भी गांव की काफी महिलाएं जुड़ी गई हैं, जो इस पर काम कर रही हैं.

गांव में नहीं हैं पक्के रास्ते
हमारी दोकरा कला सिर्फ हमारे राज्य उड़ीसा में हमारे गांव के ही पास है.  उन्होंने आगे कहा कि दोकरा कला में पीतल से मूर्तियां बनाते हैं जिसमें वह देवी देवताओं सहित जंगल से संबंधित पशु पक्षी, जानवर और आदिवासियों की संस्कृति को अपनी आर्ट के जरिए दर्शाते हैं. कुछ समय पहले उनका गांव भी आदिवासी क्षेत्र में ही शामिल था.  थोड़ा बदलाव होने के कारण अब वह आदिवासियों की जिंदगी छोड़कर दूसरे लोगों की तरह रहने लगे हैं. लेकिन कहीं ना कहीं उनका कल्चर वही है जिसको वह अपनी कलाकृतियों के जारिए दर्शाते हैं.  उनका गांव चारों तरफ से पहाड़ियों से गिरा हुआ है और चारों तरफ जंगल ही जंगल है. गांव में आने के लिए अभी तक पक्के रास्ते भी नहीं बनाए गए हैं. इस वजह से उन लगों को काफी परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है.

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लोग भी इनकी कलाकृतियों को खूब पसंद करते हैं.
उन्होंने आगे बताते हुए कहा कि आज से कुछ दसकों पहले उनके गांव को कोई नहीं जानता था.  उनके गांव की महिलाओं ने अपनी कला के जरिए उनके गांव का नाम राष्ट्रीय स्तर पर रोशन करने का काम किया है. वह अपनी इस कला के बदौलत अपनी बनाई हुई कलाकृतियों को देश के कोने-कोने तक पहुंचा रही हैं. अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव पर वह पहली बार आईं हैं.  लेकिन भारत में जितने भी बड़े मेले और उत्सव होते हैं उन सभी में वह अपनी स्टॉल लगाने के लिए जाती हैं. लोग उनकी कलाकृतियों को खूब पसंद करते हैं.

Input- DARSHAN KAIT

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