Delhi CM Oath Ceremony: जहां कभी 'मैं भी अन्ना' की टोपी पहन राजनीति में उतरे केजरीवाल, आज उसी मैदान में सरकार बनाएगी BJP
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Delhi CM Oath Ceremony: जहां कभी 'मैं भी अन्ना' की टोपी पहन राजनीति में उतरे केजरीवाल, आज उसी मैदान में सरकार बनाएगी BJP

BJP VS AAP: भाजपा 27 साल बाद दिल्ली में सरकार बनाने जा रही है और इसके लिए उसने शपथ ग्रहण के लिए रामलीला मैदान को चुना है. यह सिर्फ एक साधारण समारोह नहीं, बल्कि एक बड़ा राजनीतिक संदेश भी है.

 

Delhi CM Oath Ceremony: जहां कभी 'मैं भी अन्ना' की टोपी पहन राजनीति में उतरे केजरीवाल, आज उसी मैदान में सरकार बनाएगी BJP

Ramlila Maidan: दिल्ली का रामलीला मैदान सिर्फ एक ऐतिहासिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति के कई अहम पड़ावों का गवाह रहा है. यही वह मैदान है, जहां से अन्ना आंदोलन की चिंगारी उठी, जिसने कांग्रेस सरकार की नींव हिला दी. यही वह जगह है, जहां अरविंद केजरीवाल ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की और आम आदमी पार्टी (AAP) का जन्म हुआ. अब, आज इसी ऐतिहासिक मंच से भारतीय जनता पार्टी (BJP) दिल्ली में अपनी सत्ता की नई पारी शुरू करने जा रही है. 27 साल बाद दिल्ली में सरकार बनाने जा रही भाजपा ने अपने मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण के लिए रामलीला मैदान को चुनकर एक बड़ा राजनीतिक संदेश दिया है. यह केवल एक औपचारिक समारोह नहीं, बल्कि एक प्रतीकात्मक शक्ति प्रदर्शन भी होगा. यह दिखाएगा कि बीजेपी ने न केवल केजरीवाल की पार्टी को सत्ता से बेदखल किया, बल्कि उसी ऐतिहासिक स्थल से अपनी सरकार का शंखनाद कर विपक्ष को सीधी चुनौती भी दी है.

केजरीवाल का उभार और रामलीला मैदान
दिल्ली का रामलीला मैदान बदलाव और क्रांति का प्रतीक रहा है. साल 2011 में जब समाजसेवी अन्ना हजारे ने जन लोकपाल बिल को लेकर आंदोलन छेड़ा, तो इस मैदान पर हर दिन हजारों की भीड़ जुटी. यह आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता का आक्रोश था, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. यहीं से अरविंद केजरीवाल एक नौकरशाह से आंदोलनकारी बने और फिर राजनीति में कदम रखा. 2012 में केजरीवाल ने इसी मैदान से अपनी नई पार्टी 'आम आदमी पार्टी' का ऐलान किया और फिर 2013 में, जब उनकी पार्टी को दिल्ली चुनाव में अप्रत्याशित सफलता मिली, तो उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ भी इसी रामलीला मैदान में ली. वह एक ऐसा दौर था, जब केजरीवाल को जनता का अपार समर्थन था और रामलीला मैदान इसकी गवाही दे रहा था.

अब भाजपा ने क्यों चुना यही मैदान?
अब 2025 में 27 साल बाद बीजेपी ने दिल्ली की सत्ता में वापसी की है. ऐसे में पार्टी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह के लिए इसी ऐतिहासिक मैदान को चुनकर न केवल एक रणनीतिक फैसला लिया, बल्कि एक मजबूत राजनीतिक संदेश भी दिया है. यह मैदान, जो कभी केजरीवाल के उत्थान का गवाह था, अब भाजपा की विजयगाथा का हिस्सा बनने जा रहा है. भाजपा ने यह मैदान चुनकर यह स्पष्ट कर दिया है कि वह दिल्ली की राजनीति में स्थायी दावेदारी पेश कर रही है. जहां केजरीवाल ने कभी आम आदमी की राजनीति का नारा दिया था, वहीं अब भाजपा इसी जगह से अपने विकास, स्थिरता और मजबूत नेतृत्व का संदेश देगी.

दिल्ली के चुनावी नतीजे और भाजपा की नई पारी
8 फरवरी को घोषित दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों ने राजनीतिक परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया. बीजेपी ने 70 में से 48 सीटें जीतकर AAP को सत्ता से बाहर कर दिया, जबकि 10 साल से दिल्ली की सत्ता संभाल रही आम आदमी पार्टी महज 22 सीटों पर सिमट गई. यह नतीजे इस बात का संकेत थे कि दिल्ली की जनता अब बदलाव चाहती थी और भाजपा ने इस अवसर को बखूबी भुनाया.

शपथ ग्रहण समारोह, शक्ति प्रदर्शन या नया संदेश?
आज होने वाला यह शपथ ग्रहण समारोह केवल औपचारिकता नहीं होगी, बल्कि यह भाजपा का एक बड़ा शक्ति प्रदर्शन भी होगा. बताया जा रहा है कि इस समारोह के लिए भव्य तैयारियां की जा रही हैं. तीन बड़े मंच बनाए जा रहे हैं, जिनमें से मुख्य मंच 40×24 का होगा और दो अन्य मंच 34×40 के होंगे. समारोह में 100 से 150 विशिष्ट लोगों के लिए सीटें होंगी, जबकि आम जनता के लिए 30,000 कुर्सियों की व्यवस्था की गई है. भाजपा इस समारोह को केवल एक शपथ ग्रहण तक सीमित नहीं रखना चाहती. यह उसके लिए एक अवसर है कि वह दिल्ली में अपनी मजबूत पकड़ का प्रदर्शन कर सके और आने वाले वर्षों में खुद को स्थायी राजनीतिक ताकत के रूप में स्थापित करे.

क्या यह केजरीवाल युग के अंत की शुरुआत है?
रामलीला मैदान जो कभी केजरीवाल के राजनीतिक सफर की शुरुआत का गवाह था, अब भाजपा के सत्ता में लौटने का मंच बनने जा रहा है. यह केवल एक स्थान नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संदेश है. वहां से जहां कभी बदलाव की हवा चली थी, अब एक नई राजनीतिक शक्ति का दौर शुरू होने वाला है. क्या यह भाजपा के लिए दिल्ली में एक स्थायी सत्ता की ओर पहला कदम है और क्या यह केजरीवाल युग के अंत की शुरुआत है? इन सवालों के जवाब तो आने वाले समय में ही मिलेंगे, लेकिन इतना तय है कि रामलीला मैदान एक बार फिर भारतीय राजनीति के सबसे बड़े मोड़ का गवाह बनने जा रहा है.

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