Delhi Elections 2025 : दिल्ली चुनाव प्रचार के लिए अब सिर्फ दस दिन बचे हैं. एक तरफ बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बड़े नेता जमकर प्रचार कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस के बड़े नेता नजर नहीं आ रहे हैं.
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Delhi Assembly Elections 2025 : 'युद्ध नहीं जिनके जीवन में वे भी बहुत अभागे होंगे या तो प्रण को तोड़ा होगा या फिर रण से भागे होंगे'... डॉ. अर्जुन सिसोदिया की ये पंक्तियां चुनावी मौसम में इन दिनों राहुल गांधी की ओर इशारा कर रही है. दरअसल, दिल्ली विधानसभा चुनावों के बीच कांग्रेस पार्टी एक बार फिर अपने नेतृत्व और प्रचार को लेकर सवालों के घेरे में है. पार्टी के प्रमुख चेहरों की गैरमौजूदगी और प्रचार की सुस्ती ने पार्टी कार्यकर्ताओं और उम्मीदवारों की उम्मीदों को झटका दिया है. राहुल गांधी, जिन पर उम्मीदवारों को सबसे ज्यादा भरोसा था वो भी चुनावी रण से गायब है और अपनी प्रस्तावित तीन सभाओं में शामिल नहीं हो पाए है. उनकी गैरमौजूदगी ने न केवल कांग्रेस खेमे में निराशा बढ़ाई है, बल्कि पार्टी की चुनावी रणनीति पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं. अब देखना होगा कि कांग्रेस के कितने उम्मीदवार 'जमानत जब्त' से खुद को बचा पाएंगे और कितने 'जीत' दर्ज कराएंगे.
राहुल गांधी की रैलियों की रद्दीकरण से बढ़ी मुश्किलें
दिल्ली में राहुल गांधी की सदर बाजार, मुस्तफाबाद और मादीपुर में तीन बड़ी रैलियां प्रस्तावित थीं, लेकिन किसी भी रैली में उनकी उपस्थिति न होने से कांग्रेस उम्मीदवार खुद को अकेला महसूस कर रहे हैं. भाजपा और आम आदमी पार्टी के बड़े नेता जहां पूरे जोश के साथ प्रचार कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस के शीर्ष नेता मैदान से गायब हैं. राहुल की अनुपस्थिति ने चुनावी गलियारों में चर्चाओं को जन्म दिया है कि पार्टी जानबूझकर खुद को कमजोर कर रही है या यह किसी आंतरिक रणनीति का हिस्सा है.
कांग्रेस का कमजोर प्रचार अभियान
कांग्रेस के 40 स्टार प्रचारकों में से केवल कुछ ही प्रचार में नजर आए हैं. प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे जैसे दिग्गज नेता अब तक दिल्ली के चुनाव प्रचार में शामिल नहीं हुए हैं. पार्टी ने शुरू में ताकत झोंकने की कोशिश की, लेकिन धीरे-धीरे प्रचार अभियान बिखरता नजर आ रहा है. कुछ उम्मीदवार जैसे संदीप दीक्षित और अनिल चौधरी अपने स्तर पर मजबूती से चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन अधिकांश उम्मीदवार बड़े नेताओं की सभाओं की कमी से परेशान हैं.
कांग्रेस खेमे में निराशा और आम आदमी पार्टी को फायदा
बीते दो विधानसभा चुनावों में खाता न खोल पाने वाली कांग्रेस के लिए यह चुनाव काफी अहम हैं, लेकिन मौजूदा हालात में पार्टी कार्यकर्ताओं की निराशा आम आदमी पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है. आम आदमी पार्टी अपने आक्रामक प्रचार और उपलब्धियों के दम पर मतदाताओं को रिझाने में जुटी है, जबकि कांग्रेस के कमजोर अभियान ने पार्टी के वोट बैंक को और कम कर दिया है.
क्या सियासी मजबूरी या रणनीतिक गलती?
कांग्रेस की यह स्थिति राजनीतिक विश्लेषकों के लिए भी एक बड़ा सवाल बन गई है. क्या यह राहुल गांधी की गैरमौजूदगी से उपजा संकट है या पार्टी के भीतर कोई सियासी मजबूरी है? इन सवालों के जवाब दिल्ली के चुनावी नतीजों के बाद ही सामने आएंगे.
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