Sushma Swaraj Life Story: सुषमा स्वराज का जन्म 14 फरवरी 1952 को हरियाणा के अंबाला छावनी में हुआ था. उनका राजनीतिक सफर जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से शुरू हुआ. साल 1977 में जब वह सिर्फ 25 साल की थीं, तब उन्हें हरियाणा सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया. उस समय वे सबसे कम उम्र की मंत्री थीं.
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Sushma Swaraj Jayanti: 1998 का राजनीतिक परिदृश्य भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए दिल्ली में एक महत्वपूर्ण मोड़ लेकर आया. राजधानी की सियासत में उस समय साहिब सिंह वर्मा और मदन लाल खुराना के बीच खींचतान जारी थी. चुनाव नजदीक थे और कांग्रेस ने शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बना दिया था. ऐसे में BJP को एक दमदार महिला नेतृत्व की जरूरत महसूस हुई और तब दिल्ली की राजनीति में सुषमा स्वराज की एंट्री हुई. सुषमा स्वराज ने दिल्ली का मुख्यमंत्री पद संभालने से पहले शर्त रखी थी कि अगर पार्टी चुनाव हारती है, तो वह इस्तीफा देकर केंद्र में वापस लौटेंगी. भाजपा ने इस शर्त को स्वीकार कर लिया. सुषमा ने मुख्यमंत्री पद संभाला, लेकिन उनकी सरकार महज 52 दिनों तक चली. यह कार्यकाल भले ही छोटा था, लेकिन इसने उन्हें जनता की नेता के रूप में स्थापित कर दिया.
हरियाणा से दिल्ली तक का सफर
14 फरवरी 1952 को हरियाणा के अंबाला छावनी में जन्मी सुषमा स्वराज का राजनीतिक सफर जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से शुरू हुआ. 1977 में मात्र 25 वर्ष की आयु में वह हरियाणा सरकार में कैबिनेट मंत्री बनीं, जो उस समय की सबसे युवा मंत्री थीं. उनके नेतृत्व और कार्यकुशलता ने उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में अलग पहचान दिलाई.
संसद में बुलंद आवाज
सुषमा स्वराज अपने ओजस्वी भाषणों और धाराप्रवाह वक्तृत्व कला के लिए जानी जाती थीं. 1996 में संसद में दिए गए उनके भाषण को आज भी याद किया जाता है, जिसमें उन्होंने कहा था, 'हां, हम सांप्रदायिक हैं, क्योंकि हम 'वंदे मातरम' की वकालत करते हैं.' उनके भाषणों में राष्ट्रप्रेम की भावना झलकती थी, जो जनता को प्रभावित करती थी.
मानवीय विदेश मंत्री
2014 में विदेश मंत्री बनने के बाद सुषमा स्वराज ने ट्विटर के जरिए आम जनता को विदेश में सहायता पहुंचाई. जब मंगल ग्रह पर फंसने की बात पर एक मजाकिया ट्वीट आया, तो उनका जवाब था, 'अगर आप मंगल ग्रह पर फंस गए हैं, तो भारतीय दूतावास आपकी मदद करेगा.'
2019 में अंतिम विदाई
6 अगस्त 2019 को दिल का दौरा पड़ने से सुषमा स्वराज का निधन हो गया. उन्होंने एक सशक्त महिला नेता, कुशल राजनेता और जनसेवक के रूप में अपनी अमिट छाप छोड़ी. दिल्ली की 52 दिनों की सरकार के बावजूद, वह जनता की यादों में आज भी जीवित हैं.
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