Ramlila Maidan of Delhi: देश के कई शहरों में ऐसे रामलीला मैदान हैं, जो दशकों से सिर्फ धार्मिक आयोजन ही नहीं, बल्कि राजनीतिक हलचलों के भी गवाह बने हैं. बड़े-बड़े राजनीतिक दलों ने सत्ता संभालने से पहले इन मैदानों से जनता के बीच अपनी ताकत दिखाई है.
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Historical Ramlila Ground: दिल्ली का रामलीला मैदान न सिर्फ ऐतिहासिक आंदोलनों और राजनीतिक रैलियों का केंद्र रहा है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र की एक जीवंत प्रयोगशाला भी रहा है. यही वजह है कि जब भी देश में कोई बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम होता है, तो रामलीला मैदान चर्चा में आ जाता है. लेकिन यह राजनीति और जन आंदोलनों का केंद्र बनने वाला अकेला मैदान नहीं है. देश के कई शहरों में ऐसे रामलीला मैदान हैं, जो दशकों से सिर्फ धार्मिक आयोजन ही नहीं, बल्कि राजनीतिक हलचलों के भी गवाह बने हैं. आज दिल्ली के रामलीला मैदान में एक बार फिर इतिहास लिखा जाएगा, जब बीजेपी की नई मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता शपथ लेंगी. यह केवल एक राजनीतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि उस परंपरा की एक कड़ी है, जहां बड़े नेता सत्ता संभालने से पहले जनता के बीच अपनी ताकत दिखाते आए हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ दिल्ली का रामलीला मैदान ही राजनीति का केंद्र रहा है, या देश के दूसरे बड़े शहरों में भी कुछ ऐसे ऐतिहासिक स्थल हैं, जहां सियासत ने अपनी गहरी छाप छोड़ी है?
लखनऊ का ऐशबाग रामलीला मैदान, जहां आजादी की गूंज भी सुनाई दी
लखनऊ का ऐशबाग रामलीला मैदान भी राजनीतिक आयोजनों के लिए जाना जाता है. 1860 में अस्तित्व में आए इस मैदान में सबसे पहले नवाब वाजिद अली शाह के शासन काल में रामलीला और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता था, लेकिन आजादी के बाद यह मैदान सिर्फ धार्मिक आयोजनों तक सीमित नहीं रहा. 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो यहां बड़े स्तर पर आजादी का जश्न मनाया गया था. यही नहीं, कई राष्ट्रीय नेताओं ने यहां अपनी जनसभाएं कीं. 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ऐशबाग रामलीला में शामिल होकर तीर चलाकर रावण का दहन किया था. उस समय इसे केवल सांस्कृतिक आयोजन के रूप में नहीं देखा गया, बल्कि इसे हिंदुत्व और राजनीति के मेल की एक नई दिशा के रूप में भी देखा गया.
गाजियाबाद और गोरखपुर के रामलीला मैदान, चुनावी राजनीति का बड़ा केंद्र
गाजियाबाद का रामलीला मैदान, जो घंटाघर के पास स्थित है, 1900 से ही धार्मिक और राजनीतिक आयोजनों का केंद्र रहा है. यहां की रामलीला को उस्ताद सुल्लामन ने शुरू किया था, लेकिन आज यह स्थान राजनीतिक गतिविधियों के लिए भी महत्वपूर्ण हो गया है. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान यहां प्रमुख दलों की बड़ी रैलियां होती हैं. गोरखपुर का अंधियारीबाग रामलीला मैदान भी राजनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है. यह मैदान सिर्फ पूर्वांचल में रामलीला के भव्य आयोजनों के लिए ही नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक गतिविधियों के लिए भी प्रसिद्ध रहा है. बीजेपी और अन्य दलों की रैलियों का गढ़ माने जाने वाले इस मैदान में चुनावी मौसम में बड़ी हलचल देखने को मिलती है.
जयपुर और सीकर, जब राजस्थान की राजनीति गरमाई
राजस्थान में भी जयपुर का न्यूगेट स्थित रामलीला मैदान और सीकर का ऐतिहासिक रामलीला मैदान राजनीतिक आयोजनों के लिए चर्चित रहे हैं. सीकर के रामलीला मैदान में 1953 से रामलीला का आयोजन होता आया है, लेकिन इसकी पहचान केवल सांस्कृतिक आयोजन तक सीमित नहीं रही. जब भी राज्य में कोई बड़ा चुनाव होता है, यह मैदान राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन का केंद्र बन जाता है.
सिर्फ धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि लोकतंत्र का अखाड़ा
सूत्रों के अनुसार देशभर के इन ऐतिहासिक रामलीला मैदानों का महत्व सिर्फ धार्मिक आयोजन तक सीमित नहीं है. ये स्थान लोकतंत्र की जीवंत प्रयोगशालाएं हैं, जहां जनसभाओं, आंदोलनों और राजनीतिक शपथ ग्रहण समारोहों के जरिए देश की राजनीति की दिशा तय की जाती है. यही वजह है कि जब भी कोई बड़ा चुनावी या राजनीतिक घटनाक्रम होता है, तो इन रामलीला मैदानों की रौनक बढ़ जाती है. अब सवाल यह उठता है कि क्या ये मैदान सिर्फ सत्ता पक्ष के लिए ही हैं या विपक्ष भी इन्हें अपने विचार और विरोध की अभिव्यक्ति के लिए उतने ही अधिकार से इस्तेमाल कर सकता है. शायद यही लोकतंत्र का असली सार है जहां हर विचार, हर विचारधारा और हर राजनीतिक ताकत को अपनी बात कहने का मौका मिले, चाहे वह दिल्ली का रामलीला मैदान हो, लखनऊ का ऐशबाग या गोरखपुर का अंधियारीबाग.
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