Mulayam Singh Yadav Last Rites हम सबके नेता जी का जन्म सैफई में हुआ. पहलवानी विरासत में मिली लेकिन पढ़ाई को चुना. पर अखाड़े से दूर नहीं रहे. कुश्ती का दांव-पेंच सीखा और सियासी अखाड़े में ऐसे रमे कि देश के रक्षामंत्री और यूपी के मुखिया तक बने. लोगों ने प्यार से उन्हें नेताजी, धरतीपुत्र तक की संज्ञा दी.
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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम और समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव का अंतिम संस्कार आज दोपहर तीन बजे सैफई में होगा. उनके निधन पर यूपी में तीन दिन के राजकीय शोक की घोषणा की गयी है. पीएम मोदी, सीएम योगी, राजनाथ सिंह, बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी समेत कई लोग उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि देंगे. नेता जी यूपी के सैफई में जन्में और वहीं उनका अंतिम संस्कार होगा.
नेता जी के अंतिम दर्शन के लिए उनके समर्थकों और चाहने वालों का सैलाब उमड़ रहा है. कल जब उनका पार्थिव शव सैफाई पहुंचा तो समर्थकों ने नारे लगाए कि जब तक सूरज चांद रहेगा, मुलायम सिंह का नाम रहेगा. सैफई में नेता जी के अंतिम दर्शन के लिए हजारों की संख्या में लोग भी पहुंच रहे हैं. इसे देखिए हुए वहां सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई है. पीएसी की 5 बटालियन की तैनाती सैफाई की गई है.
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सैफई में होगा अंतिम संस्कार
नेता जी का अंतिम संस्कार सैफई में ही दोपहर 3 बजे होगा. नेता जी का जन्म यहीं हुआ था. यहीं से पहलवानी शुरू की और फिर सियासत के पहलवान कहलाए. मुलायम सिंह यादव की पहचान देश में जमीनी नेता के तौर पर रही. इसलिए उन्हें लोग धरतीपुत्र की संज्ञा दी. वे हर वर्ग के नेता कहलाए, प्यार से जनता ने उन्हें नेता जी का नाम दिया. सुभाष चंद्र बोस के बाद नेताजी कहकर लोग मुलायम सिंह यादव को पुकारते थे.
दादा भैया से धरतीपुत्र तक कहलाए
मुलायम सिंह ने कभी राजनीतिक द्वेष नहीं पाला. उनके सहयोगी अलग हुए लेकिन नेता जी ने कभी उनसे मनमुटाव नहीं पाला. नेताजी के पहले गांव के लोग उन्हें दादा भैया कहते थे. हुआ ये एक की स्कूल में एक दलित छात्र के लिए दबंगों से भिड़ गए. न केवल भिड़े बल्कि धूल भी चटा दी. वह दलितों के चहेते हो गए. पहलवानी करते रहे तो गांव और आसपास के लोगों ने उन्हें धरतीपुत्र कहा. लोगों की समस्याएं उठाना और उनका समाधान करने लगे तो नेता जी हो गए. 1992 में कारसेवकों पर गोलियां चलवाईं तो विरोधियों ने उन्हें 'मुल्ला मुलायम' कहना शुरू कर दिया.