Vidisha Vijay Mandir: मध्य प्रदेश सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण मिलकर विदिशा के ऐतिहासिक विजय मंदिर का जीर्णोद्धार करेंगे. 10वीं शताब्दी का यह भव्य मंदिर, अयोध्या के राम मंदिर और दिल्ली की नई संसद भवन की तरह है. बता दें कि औरंगजेब ने इसे तोड़ दिया था, लेकिन 1992 की बाढ़ में मस्जिद ढह गई और मंदिर का शिखर फिर से दिखाई देने लगा. अब इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा.
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Historical Vijay Mandir of Vidisha: मध्य प्रदेश का संस्कृति विभाग मंत्रालय ASI के साथ मिलकर विदिशा के ऐतिहासिक विजय मंदिर को विकसित करेगा. अयोध्या का राम मंदिर और दिल्ली के अंदर नई संसद का डिज़ाइन विदिशा के विजय मंदिर के बेस से बहुत मिलता-जुलता है. दसवीं शताब्दी के विजय मंदिर को मुगल शासक औरंगजेब ने तोपों से तोड़कर बाद में मस्जिद बना दी थी, लेकिन 1992 में बाढ़ के बाद मस्जिद का ढांचा गिरा तब मंदिर का शिखर दिखाई देने लगा. बाद में खुदाई के बाद हिंदू देवताओं की प्राचीन प्रतिमाएं एवं विजय मंदिर का टूटा हुआ हिस्सा निकलकर सामने आया. उसके बाद मंदिर और मस्जिद का यह मामला हाई कोर्ट में विचाराधीन हो गया. अब मध्य प्रदेश सरकार भारतीय पुरातत्व विभाग के साथ मिलकर इस मंदिर का कायाकल्प करने की तैयारी में है. मंदिर को टूरिस्ट बिंदु के रूप में विकसित किया जाएगा, ताकि पर्यटक ज्यादा से ज्यादा आएं. मंदिर में बुनियादी सुविधाएं स्थापित की जाएंगी एवं मंदिर को सुसज्जित किया जाएगा.
लोगों का कहना है कि विदिशा के परमार कालीन विजय मंदिर, विदिशा के प्राचीन किले के अंदर पश्चिम की तरफ स्थापित इस मंदिर के नाम पर ही विदिशा का नाम भेलसा पड़ा. सर्वप्रथम इस मंदिर का उल्लेख सन् 1024 में महमूद गजनी के साथ आए विद्वान अलबरूनी ने किया है. अपने समय में यह देश के विशालतम मंदिरों में से एक माना जाता था. साहित्यिक साक्ष्यों के अनुसार यह आधा मील लंबा-चौड़ा था. इसकी ऊंचाई 105 गज थी, जिससे इसके कलश दूर से ही दिखते थे. 2 बाहरी द्वारों के भी चिन्ह मिले हैं. यहां साल भर लोगों का मेला लगा रहता था और दिन-रात पूजा आरती होती रहती थी. कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण चालुक्य वंशी राजा कृष्ण के प्रधानमंत्री वाचस्पति ने अपनी विदिशा विजय के उपरांत किया. नृपति के सूर्यवंशी होने के कारण भेल्लिस्वामिन (सूर्य) का मंदिर बनवाया गया, इस भेल्लिस्वामिन नाम से ही इस स्थान का नाम पहले भेलसानी और कालांतर में भेलसा पड़ा.
अंग्रेजों ने कई बार की लूट-पाट
अपनी विशालता, प्रभाव व प्रसिद्धि के कारण यह मंदिर हमेशा से मुस्लिम शासकों के आंखों का कांटा बना रहा. कई बार इसे लूटा गया व तोड़ा गया और वहां के श्रद्धालुओं ने हर बार उसका पुनर्निर्माण कर पूजनीय बना डाला. मंदिर की वास्तुकला व मूर्तियों की बनावट यह संकेत देते हैं कि 10वीं-11वीं सदी में शासकों ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया था. मुस्लिम शासकों के आक्रमणों की शुरुआत परमार काल से ही आरंभ हो गई थी. पहला आक्रमण सन् 1236-37 ई. में दिल्ली के गुलामवंश के शासक इल्तुतमिश ने किया. उसने पूरे नगर में लूट-खसोट की. सन 1250 ई. इसका पुनर्निर्माण किया गया, लेकिन सन् 1290 ई. में फिर से अलाउद्दीन खिलजी के मंत्री मलिक काफूर ने इस पर आक्रमण कर अपार लूटपाट की और मंदिर की 8 फुट ऊंची अष्टधातु की प्रतिमा को दिल्ली स्थित बदायूं दरवाजे की मस्जिद की सीढ़ियों में जड़ दिया.
माता का मंदिर समझकर की पूजा
सन 1459-60 ई. में मांडू के शासक महमूद खिलजी ने इस मंदिर को तो लूटा ही. साथ-साथ भेलसा नगर व लोह्याद्रि पर्वत के अन्य मंदिरों को भी अपना निशाना बनाया. इसके बाद सन 1532 ई. में गुजरात के शासक बहादुरशाह ने मंदिर को पुनर्विनाश किया. अंत में धर्मांध औरंगजेब ने सन् 1682 ई. में इसे तोपों से उड़ा दिया. शिखरों को तोड़ डाला गया, मंदिर के अष्टकोणी भाग को चुनवाकर चतुष्कोणी बना दिया. अवशेष पत्थरों का प्रयोग कर दो मीनारें बनवा दीं तथा उसे एक मस्जिद का रूप दे दिया. मंदिर के पार्श्व भाग में तोप के गोलों के स्पष्ट निशान हैं. औरंगजेब के मृत्योपरांत वहां की टूटी-फूटी मूर्तियों को फिर से पूजा जाने लगा. सन 1760 ई. में पेशवा ने इसका मस्जिद स्वरूप नष्ट कर दिया. अब भोई आदि (हिंदुओं की निम्न जाति) ने इसे माता का मंदिर समझकर भाजी-रोटी से इसकी पूजा करने लगे.
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रिपोर्ट: दीपेश शाह (विदिशा)