मध्य प्रदेश की अयोध्या में खास होती है दिवाली, दिलचस्प है ओरछा का इतिहास
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मध्य प्रदेश की अयोध्या में खास होती है दिवाली, दिलचस्प है ओरछा का इतिहास

Raja Raam Temple Of Orchha: मध्य प्रदेश का ओरछा दिवाली पर रोशनी और दिपों से जगमगा उठाता है. आइए जानते हैं कि आखिर इस मंदिर को यूपी के अयोध्या के समान क्यों माना जाता है. जानें इसके इतिहास की दिलचस्प कहानी-  

 

Raja Raam Temple of Orchha Diwali celebration

 

Diwali Celebration In MP 2024: मध्य प्रदेश के कई शहरों में वैसे तो दिवाली का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. लेकिन एमपी के  बुदेंलखंड की धार्मिक नगरी ओरछा में दिवाली उत्सव और भी खास हो जाता है.  हर साल की तरह इस साल भी दिवाली का त्योहार यहां बड़ी धूमधाम से मनाया जाएगा. बता दें कि ओरछा को उत्तर प्रदेश के अयोध्या की तरह माना जाता है. जहां राम के दर्शन करने के लिए हजारों भक्तों  की भीड़ उमड़ती है. क्योंकि यहां पर भी राम भगवान का बहुत पुराना नाता रहा है.  माना जाता है कि भगवान की यहां प्रतिमा नहीं बल्कि वे स्वयं प्रकट हुए थे. आइए जानते हैं कि इसका क्या सबंध रहा है. 

रानी कुंवर गणेश लाई राम को अयोध्या से ओरछा 
ओरछा और अयोध्या के बीच 600 साल पुराना काफी गहरा सबंध देखा जाता है. दोनो के बीच की दूरी करीब 450 कि.मी है. यहां मान्यता है कि  उस समय के बुंदेलखंड के राजा मधुकर शाह की पत्नी रानी कुंवर गणेश ही भगवान राम को अयोध्या से ओरछा लेकर आई थी. इसमें दोनो पति-पत्नी के बीच की दिलचस्प कहानी छिपी हुई है. दरअसल राजा कृष्ण भक्त थे तो रानी राम भक्त थी. इसी के चलते एक दिन उनके बीच बड़ा विवाद छिड़ गया. 

रानी ने किया 21 दिनों तक तप 
एक दिन की बात है जब राजा ने रानी को वृंदावन चलने के लिए कहा.  लेकिन रानी ने मना कर दिया. इसके साथ ही रानी ने तो अयोध्या जाने की जिद पकड़ ली. राजा को गुस्सा आ गया तभी उन्होंने रानी को ताना मारते हुए ये कह दिया कि अगर तुम्हारे राम सच में हैं तो उन्हें अयोध्या से ओरछा लाकर दिखाओ. तभी रानी ने भगवान राम को ओरछा लाने की ठान ली. तभी उन्होंने अयोध्या जाकर 21 दिनों तक तप किया. लेकिन भगवान राम ने उन्हें दर्शन नहीं दिए. इसके बाद रानी ने हार मानकर सरयु नदी में छलांग लगा दी.  तभी भगवान राम नदी के पानी से उनकी गोद में आ गए. इसके बाद रानी ने उनसे ओरछा चलने की प्राथना की. लेकिन भगवान राम ने अपनी शर्ते रखीं. 

तीन शर्ते ये थी भगवान राम की 
पहली शर्त थी कि वह जिस स्थान पर बैठ जाएंगे. वहां से फिर कभी नहीं उठेंगे।. दूसरी शर्त यह थी कि ओरछा में उन्हें राजा के रूप में पूजा जाएगा, और वहां किसी और की सत्ता नहीं रहेगी. तीसरी शर्त यह थी कि वे बाल रूप में पैदल यात्रा करेंगे. रानी गणेश ने तीनों शर्तो को माना और भगवान राम को ओरछा लेकर लौटीं. उस समय चतुर्भुज मंदिर बन रहा था. जहां भगवान को बैठाने की योजना थी. लेकिन मंदिर का निर्माण पूरा नहीं हुआ था.

महल के रनवास में बैठें है राम
मंदिर नहीं बनने के कारण रानी ने एक बार के लिए भगवान को अपने महल के रनवास में रखा. लेकिन भगवान राम हमेशा के लिए वहीं बैठ गए. ऐसा इसलिए क्योंकि उनकी शर्त थी कि वे जिस स्थान पर बैठेंगे. वहां से नहीं उठेंगे. इसलिए वे चतुर्भुज मंदिर में नहीं जा सके. आज भी भगवान राम उसी स्थान पर विराजमान हैं. उस स्थान को राजा राम का मंदिर कहा जाता है. 

पुलिस बल भी देते हैं राजा राम को सलामी
यह मंदिर खास इसलिए भी है क्योंकि भगवान राम की प्रतिमा यहां स्थापित नहीं की गई थी. बल्कि वे स्वयं प्रकट हुए थे.  ओरछा के लोग उन्हें एक सजीव राजा के रूप में पूजते हैं.  यहां तक कि पुलिस बल भी उन्हें सलामी देता है. बिल्कुल वैसे ही जैसे किसी राजा को दी जाती है. यह परंपरा भारत में अनोखी है और इसी परंपरा ने राजा राम मंदिर को बहुत खास बना दिया है. जो मंदिर बनवाया वह आज भी खाली है. 

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