'मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ,वो गजल आपको सुनाता हूँ'... पढ़िए दुष्यंत कुमार की चुनिंदा शायरी

Harsh Katare
Nov 23, 2024

सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

मत कहो आकाश में कोहरा घना है, यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है

मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ, वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ

मुझमें रहते हैं करोड़ों लोग चुप कैसे रहूँ हर ग़ज़ल अब सल्तनत के नाम एक बयान है

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए

कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो

इस नदी की धार से ठंडी हवा आती तो है नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है

तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं, कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

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