Ajmer Sharif Dargah: राजस्थान में यहां सिर झुकाता था अकबर, पैदल ही आगरा से दौड़ पड़ा था मत्था टेकने
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Ajmer Sharif Dargah: राजस्थान में यहां सिर झुकाता था अकबर, पैदल ही आगरा से दौड़ पड़ा था मत्था टेकने

 बादशाह अकबर ने ख्वाजा साहब से एक पुत्र के लिए प्रार्थना की थी. उनकी इच्छा सलीम के रूप में पूरी हुई. इस उपलक्ष्य में अकबर ने आगरा से अजमेर दरगाह तक पैदल यात्रा की और ख्वाजा साहब को धन्यवाद देने के लिए गए. इस यात्रा में उन्हें 15 दिनों का समय लगा.

Ajmer Sharif Dargah: राजस्थान में यहां सिर झुकाता था अकबर, पैदल ही आगरा से दौड़ पड़ा था मत्था टेकने
Ajmer Sharif Dargah: बादशाह अकबर ने ख्वाजा साहब से एक पुत्र के लिए प्रार्थना की थी. उनकी इच्छा सलीम के रूप में पूरी हुई. इस उपलक्ष्य में अकबर ने आगरा से अजमेर दरगाह तक पैदल यात्रा की और ख्वाजा साहब को धन्यवाद देने के लिए गए. इस यात्रा में उन्हें 15 दिनों का समय लगा. यह अकबर की भक्ति और कृतज्ञता का प्रमाण है.
 

 

बादशाह अकबर को उनकी उदारता और सभी धर्मों के प्रति सम्मान के लिए जाना जाता है. एक बार अकबर ने अजमेर शरीफ दरगाह में एक विशाल देग (कड़ाही) भेंट की. यह देग इतना बड़ा था कि इसमें एक बार में हजारों लोगों के लिए खाना पकाया जा सकता था. अकबर की इस उदारता ने उनके धर्म-निरपेक्षता और दानशीलता को दर्शाया.
 

 
बादशाह अकबर द्वारा अजमेर शरीफ दरगाह में भेंट की गई देग अपनी अनोखी विशेषता के कारण भी प्रसिद्ध है. जब इस देग में खाना पकाने के लिए नीचे आग जलाई जाती है, तो देग का निचला हिस्सा गर्म हो जाता है, लेकिन इसके ऊपरी हिस्से पर गर्मी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता. आज हम आपको बता रहे हैं कि इस देग में एक बार में पकने वाले खाने की कीमत क्या है.
 
 
बादशाह अकबर द्वारा अजमेर शरीफ दरगाह को भेंट की गई देग में एक बार में 45 क्विंटल (4500 किलोग्राम) खाना पकाया जा सकता है. इस विशाल देग में आमतौर पर चावल, घी, चीनी, ज़ाफ़रान, सूखे मेवे और चावल के जरिए जर्दा (मीठे चावल) बनाया जाता है. यह देग अपनी विशालता और खाना पकाने की क्षमता के कारण प्रसिद्ध है.
 
अजमेर शरीफ में स्थित विशाल देग में पकने वाला जर्दा करीब 4500 किलोग्राम का होता है, जिसकी वर्तमान में कीमत लगभग 1.5 लाख रुपए होती है. इस देग में कोई भी व्यक्ति जर्दा पकवा सकता है, लेकिन इसके लिए पहले से ऑनलाइन बुकिंग करनी होती है. अजमेर शरीफ दरगाह में कुल 8 दरवाजे हैं, जिनमें से वर्तमान में 3 दरवाजों का उपयोग किया जाता है.
 
बादशाह अकबर ने आगरा से अजमेर दरगाह तक पैदल यात्रा की थी, जिसमें उन्हें 15 दिनों का समय लगा था. अजमेर शरीफ की वेबसाइट के अनुसार, अकबर 1561 से 1568 ईस्वी तक सैन्य उद्देश्यों के लिए अजमेर आया करते थे. लेकिन 1570 में उन्हें ख्वाजा साहब की आध्यात्मिक शक्तियों की पहचान हुई और इसके बाद उन्होंने एक पुत्र के लिए प्रार्थना की. उनकी इच्छा सलीम के रूप में पूरी हुई और इसके बाद अकबर ने आगरा से अजमेर दरगाह तक पैदल चलकर ख्वाजा साहब को धन्यवाद देने का फैसला किया.

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