Dungarpur news: डूंगरपुर के चौरासी से सरकारी स्कूलों का सच बयां करने वाली खबर है, आपको बता दें कि यहां एक ऐसा स्कूल है जहां न भवन हैं, न दरवाजे फिर ऐसे में बच्चे कैसे पढ़ेंगे. राजस्थान कैसे बढ़ेगा?
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Dungarpur news: राज्य सरकार व शिक्षा विभाग सरकारी स्कूलों को हाईटेक करने के लिए नए-नए फार्मुले तैयार कर रही हैं. वहीं, दूसरी और आजादी के 76 वर्ष बाद भी पूराने भवन में अब तक शिक्षा का मंदिर संचालित हो रहा है. ऐसा ही मामला सामने आया है. डूंगरपुर जिले के चीखली ब्लॉक के राजकीय प्राथमिक विद्यालय डेरी वाली माली,पंचकुंडी का जहां स्कूल के दो कमरो में से एक कमरे में बच्चे को पढ़ने को मजबूर हैं. वहीं, दूसरे कमरे में आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हैं.
कहने को तो यह प्राथमिक स्तर का विद्यालय है. लेकिन सुविधाओं के नाम पर आंगनवाड़ी स्तर की सुविधाएं भी स्कूल में नहीं है.जिस पर न तो सरकार का न जनप्रतिनिधियों का और न नही विभाग का ध्यान जा रहा है. यह विद्यालय चालीस वर्ष पूर्व बने जर्जर भवन में ही चला आ रहा है.ऐसे में शिक्षकों एवं छात्र-छात्राओं के मनोबल बढ़ाने के बजाय दिनों-दिन कम होता जा रहा है.वहीं, साल दर साल नामांकन भी घटता जा रहा है.
वर्ष 1978 से यह विद्यालय संचालित है.लेकिन इतने वर्षो के बाद भी यह विद्यालय असुविधाओं की मार झेल रहा है. जिससे साल दर साल स्कूल में बच्चों का नामाकंन कम होता जा रहा है. वर्तमान में 32 बच्चों का नामांकन पर संस्थाप्रधान एवं एक शिक्षक भी कार्यरत है.लेकिन पूराने जर्जर भवन में बच्चों को पढ़ाई करवाना किसी खतरे से खाली नही है. बावजूद इसके विद्यालय वर्षो से संचालित हो रहा है.
दो कमरों में संचालित स्कूल के बच्चों को शामिल बिठाकर अध्ययन कराया जा रहा हैं. पास में स्थित दो कमरें पूरी तरह क्षत्रिग्रस्त हो चुके हैं. दरवाजे एवं खिड़किया तक नहीं हैं. ऐसे में महज एक कक्षा-कक्ष में स्कूल का एक से पांचवी तक के बच्चों की शिक्षण व्यवस्था करवानी पड़ रही है. कमरों की कमी के बावजूद एक कमरे में आंगनवाड़ी केन्द्र संचालित हो रही है.
विद्यालय को अर्सो हो गए,पर बजट के नाम पर अब तक फूटी कोड़ी नही मिली। खिडकीयों की मरम्म्त न कर पत्थरों को सहारा बनाया है. स्थिति इतनी भयावह है कि कार्यालय रूम से लेकर हर कमरे की खिडक़ीयों व रोशनदान को भी पत्थरों के टूकडों के सहारे पाट रखा है. इस बीच नैनिहालों को आखर ज्ञान दिया जा रहा है. ऐसे में स्कूली समय में तेज हवा के चलने पत्थर लूढ़कर कमरों में आ गिरते का डर सताता है.
ऐसे में बच्चों को बिठाकर पढ़ाई करवाना भी बड़ा जोखिम है.विद्यालय का कार्यालय भी इतना छोटा हैं कि अन्दर बैठने के लिए भी जगह पर्याप्त नही हैं.वहीं, यहा पर खिडक़ीया पूरी तरह क्षतिग्रस्त्र हैं. खिडकियों पर ईट,पत्थरों के बंद कर रखा हैं. ऐसे में स्टॉफ के बैठने के लिए जगह नही होना दुर्भागयपुर्ण हैं.स्कूल की चार दिवारी भी नहीं हैं.
वर्ष 2005 में ग्राम पंचायत के माध्यम से इस स्कूल के नाम पर मरम्मत का एक लाख पैतिस हजार का बजट आया था. लेकिन इसे यहा व्यय न कर राप्रावि सालेडा पंकुण्डी में खर्च कर दिया.वहीं, विद्यालय प्रशासन पूर्व में भी ब्लॉक स्तर पर अधिकारीयों को पत्र लिखकर मरम्मत कराने की जानकारी दी है.लेकिन बजट के अभाव में समस्या हो रही हैं.ऐसे में स्कूल में बच्चो की अध्ययन कार्य प्रभावित हो रहा है.
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