Aurangzeb : औरंगजेब इतना क्रूर मुगल शासक था कि शाही खानदान के लोगों को ग्वालियर के किले में कैद करता था, जहां कैदियों को अफीम खाना अनिवार्य था. जो मना करते उन्हे खाना नहीं दिया जाता था. तो वो भूख से मर जाते थे. और जो अफीम खाते वो बीमार होकर मर जाते. दोनों ही सूरतों में औरंगजेब अपने विरोधियों को धीमी मौत दे रहा था और ऐसा ही कुछ वो अपने भाई मुराद के साथ भी करना चाहता था.
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Mughal : फ्रांसिसी यात्री फ्रांस्वा बर्नियर ने लिखा है कि कैसे औरंगजेब ने छोटे भाई मुराद बख्श को पहले जाल में फंसाया और फिर बड़ी की क्रूरता से उसकी भी हत्या कर दी. लेकिन इस हत्या से पहले भाई मुराद से बहुत से काम भी औरंगजेब करा चुका था.
दरअसल शाहजहां बहुत बीमार था और उसके चारों बेटों के यकीन था कि उसे जहर दिया गया है. ऐसे में चारों बेटे ज्यादा से ज्यादा अमीर और राजाओं को अपने-अपने पाले में करने के लिए जुट गये. जाहिर सी बात है जिसके पास दौलत ज्यादा होगी वो ही सत्ता पर बैठ सकता था. सबसे पहले शुजा बंगाल से आगरा कूच कर गया. इधऱ औरंगजेब ने दक्कर से कूच की लेकिन उसके पास शुजा की तरह दौलत नहीं थी और उसकी फौज भी छोटी थी. ऐसे में उसने एक शातिर तरकीब लगायी और छोटी भाई मुराद बख्श को खत लिखा.
औरंगजेब ने लिखा कि मेरे भाई आपको ये याद दिलाने की जरूरत नहीं कि हुकूमत में मेरा मन नहीं लगता है,मैं फकीर की जिंदगी जीना चाहता हूं. बादशाहत पर मेरा कोई दावा नहीं है. दारा शिकोह में हुकूमत की काबिलियत नहीं है और शुजा भी ताज संभालने के लायक नहीं है.
औरंगजेब ने मुराद को कहा कि इतनी बड़ी सल्तनत को सिर्फ संभालने की काबलियत आपमें हैं. जब आप बादशाह बन जाएं तो मुझे किसी शांत जगह पर रहने की इजाजत दीजिएगा ताकि मैं वहां खुदा की इबादत कर सकूं. खत में औरंगजेब ने मुराद को सूरत के किले को फौरन कब्जे में लेने की सलाह भी दे दी. क्योंकि वहीं सल्तनत का सबसे बड़ा खजाना था.
मुराद, औरंगजेब की चाल को समझ नहीं पाया. उसने सूरत के किले को अपने कब्जे में ले लिया था. तभी औरगंजेब का एक और खत उसे मिला. जिसमें उसे आगरा कूच करने की सलाह दी गयी थी. बार्नियर के मुताबिक मुराद के भरोसेमंद हिजड़े और जाबंज शाह अब्बास ने उसे औरंगजेब से बचकर रहने की सलाह दी थी.
लेकिन मुराद ने किसी की नहीं मानी और अहमदाबाद से निकल गया, पहाड़ों और दरख्तों को पार करते हुए मुराद उस जगह पहुंचा, जहां औरंगजेब उसका इंतजार कर रहा था. मुराद का भव्य स्वागत हुआ. बातचीत के दौरान औरंगजेब ने मुराद को कहा कि उसका मकसद दारा को हराना और मुराद को सिंहासन पर बैठाना है.
औरंगजेब के मुंह से लगातार बादशाह, हजरत या जहांपनाह जैसे शब्द सुन सुनकर मुराद के अंदर भी बादशाह बनने की चाहत बड़ी होती जा रही थी. उसे ये समझ ही नहीं आ रहा था कि वो जाल में फंसता चला जा रहा है. आखिरकार मई 1658 में आगरा के पास ही सामूगढ़ में दारा की फौज से औरंगजेब और मुराद की टक्कर हुई.
दारा शिकोह हार गया और औरंगजेब और मुराद आगरा पहुंचे. अब औरंगजेब ने मुराद का नाम ले कर कई राजाओं को अपनी तरफ मिला लिया था. वो हमेशा खुद को फकीर और मुराद को हीरो बताता था. इधर शाहजहां ने दारा शिकोह को दिल्ली रवाना कर दिया. औरगंजेब भी दारा का पीछा करने के लिए तैयार हो चुका था. उसने मुराद को भी साथ बुलाया लेकिन मुराद के करीबियों ने उसे फिर से समझाया की इसमें औरंगजेब की चाल हो सकती है.
लेकिन मुराद ना माना. दिल्ली के रास्ते में वो दोनों मथुरा में रुके. दोनों की सेनाओं के अलग अलग खेमे बने थे. मुराद के साथियों ने उसे औरंगजेब के खेमे में नहीं जाने की सलाह दी थी, लेकिन मुराद नहीं माना और औरंगजेब के न्योते पर उसके खेमें चला गया. औरंगजेब खुद छोटे भाई की मेहमान नवाजी में जुट गया. ये देख मुराद भावुक हो गया उसकी आंखों से आंसू निकल आए.
खाना खाने के बाद मुराद के सामने शिराज और काबुल की शराब लाई गयी. औरंगजेब शराब नहीं पीता था लेकिन मुराद शराब का शौकीन था, उसने खूब पी और वहीं नशे में सो गया. बस इसी पल का औरंगजेब को इंतजार था. मुराद पूरी तरह से सोया है नशे में हैं भी या नहीं, ये जांचने के लिए औरंगजेब ने कई बार उसे पैर से धक्का दिया.
लेकिन जब मुराद की आंखे खुली तो औरंगजेब ने उसे कहा कि ये कितने शर्म की बात है, तुम बादशाह हो और तुम्हे होश ही नहीं है , दुनिया क्या कहेगी, औरगंजेब ने सैनिकों से कहा कि मुराद के हाथ पैर बांध दो. मुराद चीखता रहा लेकिन औरंगजेब ने उसकी एक ना सुनी.
मुराद के कुछ करीबियों को ताकत से तो कुछ को दौलत से चुप करा दिया गया. मुराद को ग्वालियर के किले में कैद किया गया. इस किले में शाही खानदान के लोगों को कैद किया जाता था और कैदियों को अफीम खाना अनिवार्य था. जो मना करते उन्हे खाना नहीं दिया जाता था. तो वो भूख से मर जाते थे. और जो अफीम खाते वो बीमार होकर मर जाते. दोनों ही सूरतों में औरंगजेब अपने विरोधियों को धीमी मौत दे रहा था और ऐसा ही कुछ वो अपने भाई मुराद के साथ भी करना चाहता था.
लेकिन औरंगजेब जानता था कि कैद में भी कई लोग मुराद को पसंद करते हैं और हो सकता है, उसे रोज अफीम नहीं दी जाए या उसकी मदद की जाए. ऐसे में बिना ज्यादा वक्त गंवाये औरंगजेब ने अपने छोटे बाई का बहुत ही बेदर्दी से कत्ल करा दिया.