हरियाणा चुनाव में सीएम भजनलाल की सक्रियता लाई रंग, लोहारू को छोड़कर बाकी 5 सीट पर बीजेपी का कब्जा
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हरियाणा चुनाव में सीएम भजनलाल की सक्रियता लाई रंग, लोहारू को छोड़कर बाकी 5 सीट पर बीजेपी का कब्जा

Rajasthan News: हरियाणा चुनाव के नतीजों के बाद विश्लेषक हैरान हैं, जिनका दावा सही हुआ वे अपनी बात दोहराते दिख रहे हैं, लेकिन जिनके कयास धरे रह गए, वे जनता जनार्दन को सर्वोच्च होने की बात कह रहे हैं.

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Rajasthan News: हरियाणा के रण में राजस्थान के नेता भी सक्रिय थे. दरअसल, पड़ोसी राज्य होने के कारण सीमा से लगते जिलों और विधानसभा सीटों पर तो नेताओं की सक्रियता रही है. साथ ही जातिगत समीकरण और सोशल इंजीनियरिंग के हिसाब से भी डिमांड बनी रही. बीजेपी की तरफ से बड़े चेहरों की बात करें, तो मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की सक्रियता खूब रही. सीएम की सक्रियता का असर भी दिखा और जिन छह सीट पर सीएम भजनलाल ने प्रचार किया, उनमें से लोहारू को छोड़कर बाकी पांच सीट पर बीजेपी ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की. सीएम के साथ ही राजस्थान बीजेपी की टीम को भी मुख्यमन्त्री भजनलाल और बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ ने सक्रिय रखा. 

मुख्यमंत्री भजनलाल के साथ ही संगठन प्रभारी के रूप में सतीश पूनिया ने भी लगातार रणनीति को क्रियान्वित किया. संगठन को एकजुट रखा और माइक्रो मैनेजमेंट सिस्टम से बूथ तक के कार्यकर्ता को चुनाव में सक्रिय रखा. पूनिया की खास बात यह रही कि उन्होंने विपक्ष के दुष्प्रचार से भी बीजेपी के कार्यकर्ता को बचाए रखा.

इधर कांग्रेस ने भी हरियाणा के नेताओं की फौज के साथ ही राजस्थान कांग्रेस के सक्रिय चेहरों को भी चुनाव प्रचार में उतारा. पूर्व सीएम अशोक गहलोत के साथ सचिन पायलट, पीसीसी चीफ गोविन्द डोटासरा, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव समेत राजस्थान से पार्टी के सांसद, विधायक, पीसीसी पदाधिकारी और नेता हरियाणा के चुनाव में सक्रिय रहे. सबसे ज्यादा सभाएं और कैंप तो टीकाराम जूली ने किए और केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ लोगों में माहौल बनाने की कोशिश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. हालांकि, पार्टी को उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं मिले, लेकिन इस पर पूर्व सीएम अशोक गहलोत का कहना है कि दिल्ली के स्तर पर नतीजों की समीक्षा होती है.

पड़ोसी राज्य होने के नाते राजस्थान से कांग्रेस और बीजेपी के नेताओं की सक्रियता हरियाणा चुनाव में अन्य राज्यों के मुकाबले ज्यादा थी, लेकिन किसी दूसरे राज्य के नेताओं की सक्रियता चुनावी नतीजों को पूरी तरह पलटने की गारंटी नहीं कही जा सकती. ऐसे में दोनों पार्टियों ने डिमांड के मुताबिक दूसरे राज्यों से अपने प्रत्याशियों के लिए स्टार प्रचारक तो दिए, लेकिन जीत उसी को मिली, जिसकी रणनीति, उसका क्रियान्वयन और इलेक्शन मैनेजमेंट बेहतर रहा. 

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