Ramayana : श्रीराम शाकाहारी थे, तो हिरण को क्यों मारा था ?
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Ramayana : श्रीराम शाकाहारी थे, तो हिरण को क्यों मारा था ?

Ramayana : रामायण में जब श्रीराम को 14 साल का वनवास हुआ था. तब जगंल में एक हिरण को श्रीराम ने मारा था, जिस बात को लेकर कुछ लोगों का मानना है कि चूंकि श्रीराम क्षत्रिय थे. इसलिए वो मांस खाते थे. कुछ का कहना है कि माता सीता श्रीराम के लिए वन में हिरण की चमड़ी से बने वस्त्र बनाना चाहती थी.

प्रतीकात्मक फोटो

Ramayana : रामायण में जब श्रीराम को 14 साल का वनवास हुआ था. तब जगंल में एक हिरण को श्रीराम ने मारा था, जिस बात को लेकर कुछ लोगों का मानना है कि चूंकि श्रीराम क्षत्रिय थे. इसलिए वो मांस खाते थे. कुछ का कहना है कि माता सीता श्रीराम के लिए वन में हिरण की चमड़ी से बने वस्त्र बनाना चाहती थी.

कहानी बहुत सी हैं. लेकिन सच क्या है, हम आपको बताते हैं. श्रीराम एक संन्यासी और वनवासी हो चुके थे. राजसी राजपाट और वस्त्रों को त्याग कर श्रीराम, लक्ष्मण और सीता माता वन में रह रहे थे. सन्यासियों के साथ ही तीनों रह रहे थे और तप और ध्यान किया करते थे. बाद में दंडकारण्य में एक कुटिया का निर्माण कर वहां रहने लगे थे.

एक दिन माता सीता ने वन में एक सुनहरे हिरण के बच्चे को देखा और श्रीराम से उसे लाने का हठ किया. हालांकि श्रीराम ने एक छोटे हिरण के बच्चे को उसकी मां से अलग करने को गलत कहा, लेकिन सीता माता ने कहा कि जब तक हिरण के बच्चे की मां नहीं मिल जाती तब तक मैं उसकी देखरेख कर लूंगी.

माता सीता के हठ के सामने श्रीराम की ना चली और फिर श्री राम सुनहरे हिरण के पीछे गए. एकाएक अदृश्य होने वाले इस हिरण को देखकर श्रीराम को ये आभास हो गया कि ये हिरण नहीं बल्कि कोई मायावी है. क्योंकि श्रीराम जिस इलाके में रह रहे थे. कुछ समय से राक्षसों का डर सन्यासियों को सताने लगा था. ऐसे में मायावी हिरण के बच्चे को श्रीराम ने मारा था.

वाल्मिकी रचित रामायण में एक भी जगह श्रीराम के मांसाहार करने को लेकर कुछ नहीं लिखा गया है. रामायण में फल और कंदमूल खाए जाने के बारे में बताया गया है. आपको बता दें कि श्रीराम ने वनवास से पहले आहार से जुड़ी एक प्रतिज्ञा ली थी. चतुर्दश हि वर्षाणि वत्स्यामि विजने वने। मधु मूल फलैः जीवन् हित्वा मुनिवद् आमिषम् 

इस श्लोक का अर्थ है कि मैं सौम्य वन में एक ऋषि के तरह मांस का त्याग कर 14 साल तक कंदमूल, फल और शहद पर ही जीवन बिताउंगा. ये ही नहीं सुंदरकांड में और अयोध्याकांड में भी श्लोक में ये बताया गया है कि श्रीराम का भोजन किस प्रकार का था.

सुंदरकांड में बताया गया है कि जब हनुमान जी, माता सीता से अशोक वाटिका में मिलते हैं, तो श्रीराम की दिनचर्चा के साथ ही उनके स्वस्थ होने के बारे में बताते हैं. 
न मांसं राघवो भुङ्क्ते न चापि मधुसेवते।वन्यं सुविहितं नित्यं भक्तमश्नाति पञ्चमम् ||

अर्थ- राम ने कभी भी मांस सेवन नहीं किया और ना ही मदिरा पान किया है. हे देवी, श्रीराम हर दिन केवल संध्या समय में उनके लिए एकत्रित किए गए कंदमूल ही ग्रहण करते हैं.

अयोध्याकांड में एक श्लोक है, जिसमें लिखा है -अयम् कृष्णः समाप्अन्गः शृतः कृष्ण मृगो यथा, देवता देव सम्काश यजस्व कुशलो हि असि- यानि कि देवोपम तेजस्वी रघुनाथ जी मैं आपको बताना चाहता हूं कि जो काले छिलके वाला गजकन्द बिगड़ा हुआ है उसको ठीक करके पका दिया गया है. सबसे पहले आप प्रवीणता से देवताओं का स्मरण कीजिए क्योंकि उसमें आप अत्यंत कुशल है.

(डिस्क्लेमर- ये लेख सामान्य जानकारी है, जिसकी ज़ी मीडिया पुष्टि नहीं करता है)

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