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Rajasthan: लिव-इन में रहने को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट का बड़ा आदेश, पहले पोर्टल पर करना होगा रजिस्ट्रेशन

Rajasthan Live in Couples:   राजस्थान उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह सहजीवन यानी 'लिव-इन' संबंधों को पंजीकृत करने के लिए एक पोर्टल शुरू करे. यह निर्णय कई 'लिव-इन' जोड़ों की याचिकाओं पर सुनवाई के बाद आया है, जिन्होंने सुरक्षा की मांग की थी. पीठ ने कहा कि कई जोड़े 'लिव-इन' संबंध में रह रहे हैं और अपने इस रिश्ते को स्वीकार नहीं किए जाने के कारण उन्हें अपने परिवारों तथा समाज के अन्य लोगों से खतरा है. इसलिए, वे रिट याचिका दायर करके अदालतों का दरवाजा खटखटा रहे हैं और अपने जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए अनुरोध कर रहे हैं.

 

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अदालत ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा कि लिव-इन रिश्तों में रहने वाली महिलाओं की स्थिति पत्नी जैसी नहीं होती है. अदालत ने कहा कि ऐसे रिश्ते में रहने का विचार अनोखा और आकर्षक लग सकता है, लेकिन वास्तव में इससे उत्पन्न होने वाली समस्याएं कई हैं और चुनौतीपूर्ण भी हैं. अदालत ने आगे कहा कि लिव-इन रिश्तों में महिलाओं को सामाजिक स्वीकृति या पवित्रता का अभाव होता है, जो उनके लिए एक बड़ी चुनौती है.

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राजस्थान उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि लिव-इन संबंध समझौते को सरकार द्वारा स्थापित सक्षम प्राधिकारी/न्यायाधिकरण की ओर से पंजीकृत किया जाना चाहिए. इसके अलावा, पीठ ने यह भी कहा है कि राज्य के प्रत्येक जिले में ऐसे लिव-इन संबंधों के पंजीकरण के मामले को देखने के लिए एक समिति गठित की जाए. 

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यह समिति ऐसे जोड़ों की शिकायतों पर ध्यान देगी और उनका निवारण करेगी. साथ ही, एक वेबसाइट या वेबपोर्टल शुरू किया जाएगा ताकि इस तरह के संबंधों के कारण सामने आने वाले दिक्कतों का समाधान किया जा सके.

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राजस्थान उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह 'लिव-इन' संबंधों को पंजीकृत करने के लिए एक पोर्टल शुरू करे. इसके साथ ही, पीठ ने आदेश की एक प्रति राजस्थान राज्य के मुख्य सचिव, विधि एवं न्याय विभाग के प्रधान सचिव तथा न्याय एवं समाज कल्याण विभाग, नयी दिल्ली के सचिव को भेजने का निर्देश दिया है.

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ताकि इस न्यायालय द्वारा जारी आदेश-निर्देश के अनुपालन के लिए आवश्यक कार्यवाही की जा सके. अदालत ने एक मार्च 2025 तक या उससे पहले अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने और उठाए जा रहे कदमों से न्यायालय को अवगत कराने का भी निर्देश दिया है.