गोसेवा की मिसाल बनें संतोष, लाखों की नौकरी छोड़ जुटे लंपी की लड़ाई में, खुद खड्डा खोद करते हैं गोवंश का अंतिम संस्कार
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गोसेवा की मिसाल बनें संतोष, लाखों की नौकरी छोड़ जुटे लंपी की लड़ाई में, खुद खड्डा खोद करते हैं गोवंश का अंतिम संस्कार

लक्ष्मणगढ़ के भिलुंडा गांव निवासी संतोष कुमार ने गोसेवा की एक मिशाल पेश की है. लाखों की जॉब छोड़कर वो लंपी वायरस से पीड़ित गायों की सेवा में तन-मन धन से जुट चुके हैं. अब तक खुद अपने हाथों से गड्डा खोदकर 242 मृत गोवंश का अंतिम संस्कार कर चुके हैं.

 

सीकर के संतोष बनें गोसेवा की मिसाल.

Sikar: सीकर प्रदेश भर में फैल चुकी लंपी बीमारी से अब तक हजारों गायों कि मौत हो चुकी है,  बीमारी से जूझ रहे गोवंश की मदद के लिए कई संगठन आगे आ रहे हैं. जिनमें कोई अपने स्तर पर तो कोई आपसी सहयोग से गोवंश की देखभाल कर रहा है. लेकिन इसी बीच सीकर के लक्ष्मणगढ़ इलाके के रहने वाले एक युवक ने मानवता की एक नई मिसाल पेश की है. इस युवक ने सालों पहले ही गोवंश के बचाव के लिए अपनी नौकरी तक ही छोड़ दी. नौकरी भी कोई छोटी मोटी नहीं बल्कि लाखों के पैकेज की.

5 महीने तक उन्होंने नौकरी की
आज हम आपको बात कर रहे हैं, लक्ष्मणगढ़ के भिलुंडा गांव निवासी संतोष कुमार के बारे में,  जो पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर हैं, करीब 7 साल पहले तक उनकी महाराष्ट्र के पुणे शहर में एक प्राइवेट कंपनी में करीब पांच लाख रुपए के पैकेज की नौकरी करते थे, 5 महीने तक उन्होंने नौकरी की. उस दौरान घर में पाले जा रहे गोवंश की देख-रेख के लिए संतोष कुमार नौकरी से छुट्टी लेकर अपने गांव आ गए. यहां घरवालों के साथ-साथ वह पशुओं की देखभाल और खेती का काम करने लगे. इसके बाद संतोष ने सरकारी नौकरी की तैयारी भी शुरू की.

संतोष कुमार सैकड़ों गायों का इलाज कर चुके हैं
इसी बीच करीब डेढ़ महीने पहले उनके पड़ोस में एक गोवंश की मौत हो गई. जब संतोष ने पड़ोस के घर जाकर देखा तो वहां बछड़ा अपनी मां के पास मायूस बैठा हुआ था, इसी दिन संतोष ने ठान लिया कि चाहे कुछ भी हो अब इस बीमारी से गांव के अन्य गोवंश को बचाना ही है, तब से ही उन्होंने गोवंश की मदद करना शुरू कर दिया. अब तक संतोष कुमार सैकड़ों गायों का इलाज कर चुके हैं.

इलाज ही नहीं बल्कि लंपी से मरने वाली करीब 200 से ज्यादा गायों का वह अपने खर्च पर अंतिम संस्कार भी कर चुके हैं. इसके साथ ही आसपास के करीब 30 किलोमीटर के दायरे में आने वाले गांवों में लोग उन्हें गोवंश का इलाज करने के लिए बुलाते हैं. जिसके बदले संतोष कुमार ग्रामीणों से 1 रुपए तक नहीं लेते.

इस तरह हुआ ये बदलाव
संतोष कुमार ने बताया कि अभियान की शुरुआत तब हुई जब उनके पड़ोस के रहने वाले सांवरमल के लंपी की चपेट में आने से एक गोवंश की मौत हो गई. सांवरमल ने यह बात संतोष को बताई. जब संतोष पड़ोस के घर गए तो वहां कोहराम मचा हुआ था. वहीं, मरी हुई गाय का बछड़ा गाय के पास ही मासूम बैठा हुआ था. जिसकी आंखों से आंसू भी निकल रहे थे. उसी दिन संतोष का दिल भर आया और उन्होंने अपना यह अभियान शुरू कर दिया.

अपने हाथों से खड्डा खोदकर दफनाते भी हैं
संतोष ने बताया कि इस अभियान में उनका सहयोग डॉ. प्रकाश सेवदा कर रहे हैं, जो संतोष को बीमार गायों के लिए दवाइयां और उपचार बताते हैं. उनके बताए अनुसार ही संतोष गांव-गांव जाकर गायों का इलाज करते हैं. लेकिन इसी बीच यदि कोई गाय मर भी जाती है, तो उसे संतोष खुद अपने हाथों से खड्डा खोदकर दफनाते भी हैं.

242 गायों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं
संतोष कुमार ने बताया कि वह गांव को गांव की जोहड़ी में ही दफनाते हैं, यहां रहने वाले लोगों को कोई तकलीफ नहीं हो, इसके लिए वह गांव के खुले मैदान में करीब 5 से 10 फीट का एक ही खड्डा खोदते हैं. इसके बाद मरे हुए गोवंश को उस में डाल कर देखना देते हैं. संतोष ने बताया कि अब तक वह करीब 242 गायों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं. संतोष ने बताया कि उन्हें यह प्रेरणा अपने माता-पिता और बड़े भाई मुकेश से मिली. परिवार पेशे से किसान है. ऐसे में शुरू से ही पशुधन से भी परिवार का लगाव काफी ज्यादा रहा था. 

अभियान जारी रहेगा
संतोष कुमार ने बताया कि भले ही लाखों रुपए के पैकेज की नौकरी छोड़ने के बाद वह गांव आ गए हों, लेकिन यहां भी वह सरकारी नौकरी की पिछले करीब 5 सालों से तैयारी कर रहे हैं. संतोष के बड़े भाई मुकेश वर्तमान में रेलवे में नौकरी कर रहे हैं. संतोष ने बताया कि जब तक की महामारी कम नहीं होती है, तब तक उनका यह अभियान जारी रहेगा. भले ही उनके इस अभियान में उन्हें कितना ही खर्च क्यों ना आए.

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