Firozabad News: फिरोजाबाद में रंग-बिरंगी चूड़ियों का निर्माण एक पारंपरिक कार्य है, जिसका इतिहास काफी पुराना है. फिरोजाबाद दुनिया में कांच की चूड़ियों के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है. आइए जानते हैं कि सबसे पहले फिरोजाबाद में चूड़ी बनाने का काम किसने शुरू किया.
देश के सबसे बड़े प्रदेशों में से एक उत्तर प्रदेश में आज भी ऐसे अनगिनत किस्से दफन हैं, जिनके बारे में शायद आप जानते भी नहीं होंगे. इनमें कई ऐतिहासिक किस्से भी शामिल हैं. यूपी के हर जिले की एक अलग विशेषता है, ऐसे ही कहानी यूपी के जिले फिरोजाबाद की है जो उसे अलग पहचान देती है. आज हम फिरोजाबाद (Firozabad) के बारे में बात करेंगे.
फिरोजाबाद, रंग-बिरंगी चूड़ियों के लिए जाना जाता है. यहां चूड़ी बनाना एक घरेलू व्यवसाय है, फिरोजाबाद कांच के कारखाने पीढ़ियों से पारंपरिक तरीकों से चलाए जा रहे हैं. जानेंगे फिरोजाबाद के इस पारंपरिक व्यवसाय को शुरू किसने किया और इसके इतिहास के बारे में..
फिरोजाबाद में चूड़ियों का इतिहास मुगल काल से चला आ रहा है. मुगलों ने फिरोजाबाद को कांच उद्योग के लिए सही माना और यहां कई कारखाने स्थापित किए. फिरोजाबाद में चूड़ी बनाने का उद्योग कांच की तरफ स्थानांतरित हो गया, क्योंकि यह अधिक किफ़ायती सामग्री थी.
फिरोजाबाद में चूड़ियों के कारखानों का विस्तार हुआ और ये शहर चूड़ियों के लिए जाना जाने लगा. फिरोजाबाद में कांच उद्योग के पिता हाजी रुस्तम को हर साल श्रद्धांजलि दी जाती है. फिरोजाबाद दुनिया में कांच की चूड़ियों के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है.
सबसे पहले 1920 में आधुनिक कारखाने की नींव हाज़ी रुस्तम उस्ताद ने डाली थी. हाजी रुस्तम उस्ताद को फिरोजाबाद में चूड़ियां बनाने का जनक माना जाता है. उन्होंने 1920 में चूड़ियों के आधुनिक कारखाने की नींव रखी थी.
हाज़ी कल्लू उस्ताद, कादिर बक्स और उस्ताद भूरे खां की मेहनत, उत्साह, लगन से फिरोजाबाद में भी सुंदर चूड़ियों का निर्माण होने लगा. अशिक्षित होने के बावजूद भी ये चारों कैमिकल का काम करने और रंग बनाने में माहिर थे. इन्हीं लोगों ने लकड़ी के बेलन का प्रयोग कर चूड़ियां बनाना शुरू किया, इनकी मेहनत रंग लाई. इस तरह यहां चूड़ी कारीगरों की मेहनत, कुशलता और सरकार की व्यापार सुरक्षा नीति के चलते पूरे भारत में कांच की चूड़ियों की खूब खपत होने लगी.
आगरा जिले की औद्योगिक जांच रिपोर्ट साल 1924 के मुताबिक, यहां का कांच उद्योग लगभग 12 हजार लोगों को रोज़गार देता था. रिपोर्ट के मुताबिक, आधुनिक तकनीक के कारखानों के खुलने से यहां कुटीर उद्योग-धंधे की आधार पद्धति नष्ट हो गई. यहां ब्लॉक ग्लास के 7 कारखाने हैं, जिनमें से 6 चालू हैं बाकी बंद हो गए.
साल 1910 में यहां का पहला कारखाना 'द इंडियन ग्लास वर्क्स' स्थापित हुआ. जानकारी के मुताबिक, इसके पीछे शहर के सेठ नंदराम के अथक प्रयास बताए जाते हैं. इस कारखाना भट्टी में कोयले की गैस से सिर्फ कांच ही पकाया और ब्लॉक ग्लास बनाया जाता था. 'द इंडियन ग्लास वर्क्स' की स्थापना के साथ ही फिरोजाबाद में कांच बनाने की नींव पड़ी. इसके बाद यहां से अन्य जगहों पर भी कांच जाने लगा. इस समय तक बनने वाली चूड़ियां सिर्फ लाल, पीले, नीले रंग की भद्दी, मोटी और भारी हुआ करती थी.
चूड़ियां एक पारंपरिक गहना हैं. इसकी खनक से घर में खुशहाली आती है और वास्तुदोष भी दूर होता है. वहीं, हिन्दू धर्म में चूड़ियों को सुहाग का प्रतीक माना गया है. चमक-दमक और रंगीन होने के कारण चूड़ियों का महिलाओं के साज श्रृंगार में एक महत्वपूर्ण स्थान है. लाल, हरी नीली, पीली रंग बिरंगी कांच की चूड़ियों के लिए विश्वविख्यात शहर फिरोजाबाद में लगभग 200 कारखाने हैं जिनमें कई तरह के कांच उत्पाद बनाए जाते हैं.
खास बात ये है कि कांच की चूड़ी किसी मशीन से नही बल्कि कुशल कारीगरों द्वारा हाथों से (पूर्णतया हेंडीक्राफ्ट से) बनाई जाती है. पूरे भारत मे केवल फिरोजाबाद में ही कांच की चूड़ियों का उत्पादन किया जाता है. परंपरागत कांच की चूड़ियों में समय के साथ कई नए प्रयोग किए जा रहे हैं, ताकि महिलाओं की कलाईयां और सुंदर लग सकें.
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