SC Verdict on aligarh muslim univesity minority status: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे से जुड़े मामले में अपना फैसला सुना दिया है. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की 7 जजों की बेंच ने ये निर्णय किया है. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है.
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Aligarh Muslim University News in Hindi: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी यानी AMU के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अहम फैसला सुनाया. चीफ जस्टिस जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सात जजों की पीठ ने इस पर 4-3 से अपनी राय दी. कोर्ट ने कहा कि एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा न देने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है. अदालत ने कहा कि किसी केंद्रीय या राज्य संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा इस वजह से समाप्त नहीं किया जा सकता कि उसकी नींव किसी राज्य की ओर से रखी गई थी.
संवैधानिक पीठ ने माना कि इसकी स्थापना अल्पसंख्यकों की ओर से की गई थी.लिहाजा संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत एएमयू अल्पसंख्यक दर्जे का हक मांग सकता है.लेकिन पीठ ने AMU के अल्पसंख्यक दर्जा पर आखिर फैसला लेने के लिए तीन जजों की नई पीठ गठित करने का आदेश दिया है. संविधान पीठ ने अनुच्छेद 30 के अनुसार, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा कायम रखना का मामला नियमित पीठ सुनेगी.
क्या था मामला
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर दिए सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही 56 साल पुराने फैसले को पलटा. साल 1967 के अजीज बाशा बनाम भारत गणराज्य के केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला एएमयू के अल्पसंख्यक दर्ज की राह में रोड़ा था. सुप्रीम कोर्ट ने तर्क दिया कि कोई शैक्षणिक संस्थान सरकारी कानून के तहत स्थापित किया गया है, तो भी वो अल्पसंख्यक संस्थान का दावा कर सकता है.लिहाजा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा की मांग गलत नहीं है, लेकिन यह दर्जा आगे कायम रहेगा या नहीं, इस पर निर्णय नियमित पीठ करेगी. अनुच्छेद 30 धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनके प्रशासन का अधिकार देता है.
1965 से शुरू हुआ विवाद
यह पूरा विवाद 1965 से शुरू हुआ था, जिसमें अजीज बाशा बनाम भारत सरकार का केस था. इसमें सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने 1967 में फैसला सुनाते हुए यह कहकर एएमयू के अल्पसंख्यक दर्ज का दावा खारिज कर दिया था कि वो कानून द्वारा स्थापित एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक को 1965 में तत्कालीन सरकार ने खत्म कर दिया था. केंद्र ने 20 मई 1965 को एएमयू कानून में संशोधन कर अल्पसंख्यक संस्थान के तौर पर उसकी स्वायत्तता छीन ली थी. इस निर्णय को अजीज बाशा ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.1972 में इंदिरा गांधी सरकार ने भी यही दलील दी कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है. हालांकि दबाव के आगे झुकी इंदिरा गांधी सरकार ने 1981 में एएमयू एक्ट में बदलाव कर यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा दिया.
हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2005 के फैसले में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्थान मानने से इंकार कर दिया था. इसके खिलाफ AMU ने SC में अर्जी दायर की थी. सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को इस कानूनी सवाल पर अपना फैसला सुनाया.
संविधान पीठ गठित की गई
सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने साल 2019 में इस मामले को 7 जजों की संविधान पीठ के पास भेजा था. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद एक फरवरी को फैसला सुरक्षित रखा था.
10 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं चीफ जस्टिस
जस्टिस चंद्रचूड़ 10 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं. उनके पास अब कुछ ही कार्य के दिन बचे हैं. ऐसे में उनकी सेवानिवृत्ति से पहले इन मामलों में फैसला आ जाएगा. बता दें कि जस्टिस चंद्रचूड़ अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में फैसला देने वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ के सेवानिवृत्त होने वाले आखिरी न्यायाधीश हैं.
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