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जगद्गुरु रामभद्राचार्य का क्या है असली नाम? जौनपुर के सरयूपारी ब्राह्मण, 7 साल की उम्र में रट डाली थी मानस-गीता

हिंदू धर्म में साधु-संतों का विशेष महत्व रहा है. इनके ज्ञान और प्रवचन भक्तों को सही दिशा दिखाकर जीवन का उद्धार करते हैं. इन्हीं में से एक जगद्गुरु रामभद्राचार्य हैं. जो किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. वह संस्कृत के विद्वान से लेकर शिक्षक और संगीतकार भी हैं.

स्वामी रामभद्राचार्य

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स्वामी रामभद्राचार्य

क्या आपको पता है कि स्वामी रामभद्राचार्य का जन्म कहां हुआ. उनका मूल नाम क्या था. उनकी आंखों की रोशनी कैसे चली गई और आध्यात्म की राह पर चलकर वह कैसे इतने प्रकांड विद्वान बन गए. चलिए आइए जानते हैं.

 

जौनपुर में जन्म

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जौनपुर में जन्म

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में हुआ था. मकर संक्रांति को दिन साल 1950 में उनका जन्म सरयूपारी ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम शचि देवी और पिता का नाम राजदेव मिश्रा था.

 

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का असली नाम क्या?

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जगद्गुरु रामभद्राचार्य का असली नाम क्या?

क्या आपको पता है कि जगद्गुरु रामभद्राचार्य का असली नाम गिरिधर मिश्रा है. उनके इस नाम के पीछे भी दिलचस्प कहानी है. दरअसल उनके दादा की चचेरी बहन मीरा बाई की भक्त थीं, इसलिए उनका नाम गिरिधर रखा गया.

 

दो महीने की उम्र में खोई आंख की रोशनी

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दो महीने की उम्र में खोई आंख की रोशनी

स्वामी रामभद्राचार्य की उम्र जब केवल दो महीने की थी, तभी उनकी आंखों की रोशनी चली गई. उनकी आंखों में रोहे नामक संक्रमण की बीमारी हुई थी. लेकिन अस्पताल में आंख में गलत ड्रॉप डालने से उनकी रोशनी चली गई.

 

22 भाषाओं का ज्ञान

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22 भाषाओं का ज्ञान

जगद्गुरु प्रतिभा के धनी हैं. नेत्रहीन होने के बाद भी उनको 22 भाषाओं का ज्ञान है. यही नहीं वह 80 ग्रंथों की रचना कर चुके हैं. महज 8 साल की उम्र में ही वह रामकथा और भागवत का पाठ करने लगे थे.

 

5 साल की उम्र, 15 दिन में रटी भगवद्गीता

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5 साल की उम्र, 15 दिन में रटी भगवद्गीता

उनकी जन्मजात प्रतिभा ही थी कि पंडित मुरलीधर मिश्रा के सानिध्य में महज 5 साल की उम्र में उन्होंने केवल 15 दिनों में ही 700 श्लोकों के साथ भगवद्गीता रट ली.

 

7 साल में कंठस्थ की मानस

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7 साल में कंठस्थ की मानस

सात साल की उम्र तक रामभद्राचार्य पूरी रामचरितमानस कंठस्थ कर चुके थे. धीरे-धीरे उन्होंने वेदों, उपनिषदों और पुराणों को कंठस्थ कर लिया.

 

ईश्वरदास महाराज से ली दीक्षा

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ईश्वरदास महाराज से ली दीक्षा

अयोध्या के विद्वान ईश्वरदास महाराज ने गायत्री मंत्र के साथ गुरु दीक्षा ली. कम उम्र में ही वो रामकथा का पाठ करने लगे और कथावाचक के तौर पर उनकी प्रसिद्धि बढ़ती गई.

 

स्वामी रामभद्राचार्य शिक्षा

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स्वामी रामभद्राचार्य शिक्षा

जौनपुर के आदर्श गौरीशंकर संस्कृत महाविद्यालय के बाद वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की. 1974 में उन्होंने स्नातक यानी शास्त्री की उपाधि ली और फिर आचार्य यानी परस्नातक भी संपूर्णानंद से किया. 

दिव्यांग विश्वविद्यालय की स्थापना

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दिव्यांग विश्वविद्यालय की स्थापना

रामभद्राचार्य ने चित्रकूट जिले में दिव्यांग विश्वविद्यालय की स्थापना की थी. वह उसके आजीवन कुलपति हैं. सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि उन्होंने अध्ययन के लिए ब्रेल लिपि का सहारा नहीं लिया.

दीक्षा पूरी होने के बाद कहलाए रामभद्राचार्य

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दीक्षा पूरी होने के बाद कहलाए रामभद्राचार्य

1976 में करपात्री महाराज ने उनसे आजीवन ब्रह्मचारी और विवाह न करने का वचन लिया. साथ ही वैष्णव पंथ में दीक्षा लेने की सलाह दी. 1983 को कार्तिक पूर्णिमा के दिन रामानंद संप्रदाय में श्री श्री 1008 रामचरणदास महाराज से दीक्षा पूर्ण हुई और वो गिरिधर मिश्र की जगह रामभद्रदास यानी रामभद्राचार्य कहलाए.  

 

पद्मभूषण से सम्म्मानित

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पद्मभूषण से सम्म्मानित

रामभद्राचार्य को उनकी को पद्मविभूषण सम्मान भी मिला है. रामानंद संप्रदाय के चार जगद्गुरु रामानंदाचार्यों में एक रामभद्राचार्य भी थे.