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उत्तराखंड का हजारों साल पुराना महाभारत काल का मंदिर, जहां 24 घंटे शिवलिंग पर टपकता है जल

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के जिला मुख्यालय से 7 किलोमीटर की दूरी पर कैंट एरिया में टपकेश्वर महादेव मंदिर मौजूद है. मंदिर के रहस्य और महाभारत काल से जुड़ा है.

टपकेश्वर महादेव मंदिर

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टपकेश्वर महादेव मंदिर

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के जिला मुख्यालय से 7 किलोमीटर की दूरी पर कैंट एरिया में टपकेश्वर महादेव मंदिर मौजूद है. मंदिर के रहस्य और महाभारत काल से जुड़ा है.

 

महाभारत काल से जुड़ा इतिहास

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महाभारत काल से जुड़ा इतिहास

देवों के देव महादेव का मंदिर 6 हजार साल पुराना बताया जाता है. इस मंदिर को लेकर कई तरह का रहस्य भी है. महाभारत काल से यह मंदिर जुड़ा हुआ है. टोंस नदी के किनारे पर बसे इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यही है कि बारहमास इस मंदिर में पानी की बूंद टपकती रहती है.

 

शिवलिंग पर टपकती है जलधारा

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शिवलिंग पर टपकती है  जलधारा

स्वयंभू शिवलिंग पर हर मौसम में निरंतर जलधारा टपकती रहती है. इसलिए इसे टपकेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है. मंदिर के मुख्य पुजारी भारत जोशी का कहना है कि इस मंदिर के का जिक्र महाभारत काल में भी मिलता है.

ये पौराणिक मान्यता भी

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ये पौराणिक मान्यता भी

उनका कहना है कि पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के बेटे अश्वत्थामा का जन्म स्थल है और यहीं पर उन्होंने तपस्या भी की थी. इस तरह की मान्यता है कि जब द्रोणाचार्य के बेटे को दूध नहीं मिल पा रहा था तो द्रोणाचार्य ने भगवान भोले का आराधना की और इस गुफा से दूध की जलधारा फूट गई.

 

जल में बदली दूध की जलधारा

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जल में बदली दूध की जलधारा

भरत जोशी मुख्य पुजारी टपकेश्वर महादेव मंदिर उनका कहना है कि कालांतर में चलकर दूध का दुरुपयोग होने लगा और दूध की जलधारा जल में बदल गई आज भी मंदिर की प्राकृतिक गुफा में जल की धारा देखी जा सकती है.

 

मंदिर से जुड़ा सबसे बड़ा रहस्य

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मंदिर से जुड़ा सबसे बड़ा रहस्य

इस मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य ही है कि नदी के तट से 70 80 फीट के ऊपर पर मौजूद पहाड़ से जल की धारा हमेशा देखी जा सकती है. स्वयंभू शिवलिंग पर जल की धारा हमेशा प्रवाहित होती रहती है.

पूरी होती है मनोकामनाएं

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पूरी होती है मनोकामनाएं

मान्यता है कि जो भक्त जिस श्रद्धा भाव के साथ में यहां पर दर्शन के लिए आता है. भगवान भोले उसकी सभी मुरादे पूरी करते हैं. इस मंदिर की गुफाएं प्राकृतिक है जो पहाड़ों में खुद बनी हुई है.

 

मंदिर से जुड़ी मान्यता

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मंदिर से जुड़ी मान्यता

मंदिर का शिवलिंग स्वयंभू है इस तरह से मान्यता है कि मंदिर परिसर में गुरु द्रोणाचार्य को शंकर भगवान ने धनुष विद्या का ज्ञान प्रदान किया था. श्रद्धालु मंदिर में प्रवेश करने के पहले गुरु धर्माचार्य की एक प्रतिमा भी लगी हुई है, जहां श्रद्धालु माथा टेक कर आगे बढ़ते हैं.

 

दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु

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दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु

इसी तरह से मंदिर परिसर के चारों तरफ प्रकृतिक सौंदर्य भी है और प्राचीनता का दर्शन भी करता है देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु यहां पर मंदिर में आकर जलाभिषेक करते हैं और अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए भगवान भोले से प्रार्थना करते हैं.

 

डिस्क्लेमर

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डिस्क्लेमर

लेख में दी गई ये जानकारी सामान्य स्रोतों से इकट्ठा की गई है. एआई के काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.