जौनपुर जिले के चौबाहां गांव में 1962 से रामलीला होती आई है लेकिन गांव वालों ने आज तक रावण का वध या दशहरा पर रावण का पुतला नहीं जलाया. गांववालों का मानना है रावण ब्राह्मणों का वंशज था, इसलिए वो रावण का पुतला नहीं दहन करते हैं.
गौतमबुद्धनगर के बिसरख गांव में भी रावण दहन नहीं किया जाता है. इस गांव के लोग उसे भगवान मानकर पूजा करते हैं. मान्यता है कि रावण के पिता विश्रवा ऋषि इसी गांव में रहते थे. उनके नाम पर ही गांव का नाम बिसरख पड़ा.
बागपत में खेकड़ा तहसील का बड़ा गांव ऐसा गांव है जहां रावण दहन को लोग अभिशाप मानते हैं. यहां रामलीला का भी आयोजन नहीं किया जाता है. कहा जाता है कि रावण की वजह से ही गांव में मां मंशादेवी विराजमान हैं.
हमीरपुर जिले के मुस्करा थाना क्षेत्र के बिहुंनी कला गांव में गांव वाले दशहरा पर रावण दहन नहीं करते हैं. गांव वाले विजयदशमी पर रावण की पूजा करते हैं. गांव में रावण की एक विशालकाय मूर्ति भी स्थापित है.
मेरठ के गगोल गांव में भी लंकेश का दहन नहीं किया जाता है. दशहरा पर बाकायदा हवन पूजन किया जाता है. मान्यता है कि मेरठ मंदोदरी का मायका था. उन्होंने बिलेश्वर नाथ मंदिर की स्थापना कराई थी.
जसवंतनगर में रामलीला का आयोजन किया जाता है लेकिन आखिरी में रावण का पुतला नहीं फूंका जाता है. यहां के लोग रावण को पूजनीय मानते हैं. साथ ही रावण के पुतले की लकड़ियों को घर ले जाते हैं, लोगों का मानना है कि इससे कष्ट दूर होते हैं.
कानपुर में दशानन मंदिर है. यहां रावण की विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है. रावण को दूध से नहलाया जाता है और उसका शृंगार किया जाता है.
उत्तराखंड के जौनसार बावर के उदपाल्टा गांव में दशहरे पर रावण दहन नहीं किया जाता है. इस दिन दो गांवों के बीच युद्ध होता है. दिलचस्प बात यह है कि इसमें न कोई हारता है और न ही कोई जीतता है.
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