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क्या है सबसे कठोर खप्पर तपस्या, 18 साल लंबी साधना, आग जलाकर बीच में बैठने की भी परीक्षा, बसंत पंचमी से 350 साधकों का इम्तेहान

Mahakumbh 2025: प्रयागराज में इस वक्त महाकुंभ की धूम बरकरार है. देश-दुनिया से श्रद्धालुओं का गंगा स्नान के लिए आना लगा हुआ है. इस बीच वैष्णव परंपरा के तपस्वी वसंत पचंमी से कुंभनगरी में परंपरागत सबसे कठिन साधना शुरू हो गई है. 350 साधक इस बार खप्पर तपस्या कर रहे हैं.  

 

 

महाकुंभ 2025

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महाकुंभ 2025
महाकुंभ 2025 के पावन अवसर पर वैष्णव परंपरा के 350 साधक सबसे कठिन खप्पर तपस्या करते हैं. यह विशेष साधना वसंत पंचमी से आरंभ होती है जिसमें साधक अपने कठोर तप से आत्मशुद्धि और ईश्वरीय के लिए तप करते हैं. 26 फरवरी तक चलने वाले महाकुंभ में एक से बढ़कर एक इस तरह के नजारे दिखते हैं. वैसे आपको बता दें कि बसंत पंचमी के बाद नागा साधुओं का महाकुंभ क्षेत्र से प्रस्थान शुरू हो जाता है. 

क्या है खप्पर तपस्या?

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क्या है खप्पर तपस्या?
खप्पर तपस्या एक अत्यंत कठिन और कठोर साधना है, जिसमें साधक एक विशेष प्रकार के पात्र (खप्पर) में ही अपना भोजन ग्रहण करते हैं और निरंतर धूना तापकर साधना करते हैं. यह वैष्णव और संन्यासी परंपरा में गहरी भक्ति और आत्मसंयम का प्रतीक माना जाता है.

प्रयागराज महाकुंभ

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 प्रयागराज महाकुंभ
प्रयागराज महाकुंभ में बसंत पचंमी से वैष्णव परंपरा के तहत तपस्वी परंपरागत कठिन साधना आरंभ कर दी है.   इस दफा करीब साढ़े तीन सौ तपस्वी धूनी साधना की खप्पर तपस्या कर रहे हैं.

आखिरी श्रेणी की तपस्या

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आखिरी श्रेणी की तपस्या
 यह तपस्या सबसे आखिरी श्रेणी की होती है.  इसके आधार पर ही अखाड़े में साधुओं की वरिष्ठता तय होती है. दिगंबर, निर्मोही एवं निर्वाणी समेत खाक चौक में करीब साढ़े तीन सौ तपस्वी यह कठिन साधना करेंगे जबकि अन्य साधक अपने अन्य चरण की तपस्या शुरू करेंगे.

धूना तापना सबसे बड़ी तपस्या

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धूना तापना सबसे बड़ी तपस्या
वैष्णव परंपरा में श्रीसंप्रदाय (रामानंदी संप्रदाय) में धूना तापना सबसे बड़ी तपस्या मानी जाती है.  पंचांग के मुताबिक यह तपस्या आरंभ होती है. सूर्य उत्तरायण के शुक्ल पक्ष से यह तपस्या आरंभ की जाती है.

निराजली व्रत

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निराजली व्रत
इस तपस्या से पहले साधक निराजली व्रत रखता है. फिर इसके बाद धूनी में बैठते हैं. ये तपस्या छह चरण में पूरी होती है.

इतनी होती हैं श्रेणी

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 इतनी होती हैं श्रेणी
 इन छह चरणों में पंच, सप्त, द्वादश, चौरासी, कोटि और खप्पर श्रेणी होती है. हर श्रेणी तीन साल में पूरी होती है.  इस तरह तपस्या पूरी करने में 18 साल का समय लगता है.

तपस्या की अलग-अलग रीति

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तपस्या की अलग-अलग रीति
सभी छह श्रेणी में तपस्या की अलग-अलग रीति होती है.  सबसे प्रारंभिक पंच श्रेणी होती है.  साधुओं के दीक्षा लेने के बाद उनकी यह शुरुआती तपस्या होती है. इसमें साधक पांच स्थान पर आग जलाकर उसकी आंच के बीच बैठकर तपस्या करते हैं. 

सात जगह पर आग जलाकर तपस्या

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सात जगह पर आग जलाकर तपस्या
 दूसरी श्रेणी में सात जगह पर आग जलाकर उसके बीच बैठकर तपस्या करते हैं.  इसी तरह द्वादश श्रेणी में 12 जगह, 84 श्रेणी में 84 जगह और कोटि श्रेणी में सैकड़ों जगहों पर जल रही अग्नि की आंच के बीच बैठकर तपस्या करनी होती है. 

खप्पर श्रेणी की तपस्या सबसे कठिन

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खप्पर श्रेणी की तपस्या सबसे कठिन
खप्पर श्रेणी की तपस्या सबसे कठिन होती है.  इस तपस्या में  सिर के ऊपर मटके में रखकर आग जलाई जाती है. इसकी आंच के मध्य में साधक को रोज  6 से 16 घंटे तक तपस्या करनी होती है. ये बसंत से गंगा दशहरा तक यह चलती है.

साधक की 18 साल लंबी तपस्या पूरी

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साधक की 18 साल लंबी तपस्या पूरी
तपस्या करने का ये क्रम तीन साल तक चलता है.  इसके पूरा होने के बाद साधक की 18 साल लंबी तपस्या पूरी मानी जाती है. चरण पूरे होने के साथ वरिष्ठता तय होती है.

डिस्क्लेमर

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डिस्क्लेमर
लेख में दी गई ये जानकारी सामान्य स्रोतों से इकट्ठा की गई है. इसकी प्रामाणिकता की पुष्टि स्वयं करें. एआई के काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.