देवी-देवताओं, संत-महात्माओं के आपने कई मंदिर देखे होंगे, लेकिन क्या किसी कुतिया का मंदिर देखा या सुना है. इस मंदिर में लोगों की भीड़ जमा होती है.
झांसी के मऊरानीपुर तहसील के रेवन और ककवारा गांव के बीच में ये मंदिर बना हुआ है. रेवन गांव के पास सड़क के किनारे एक कुतिया की मूर्ति स्थापित की गई है. आसपास के लोग पूरे विधि-विधान से पूजा भी करते हैं.
स्थानीय लोग बताते हैं कि एक कुतिया इन दोनों गांवों में आती-जाती रहती थी. वह भोजन के लिए इन दोनों गांव पर निर्भर थी. गांव के किसी भी कार्यक्रम में खाना खाने पहुंच जाती थी.
लोग उसे बेहद प्यार करते थे और खाना खिलाते थे. एक बार कुतिया दोनों गांव के बीच में थी. तभी रेवन गांव से रमतूला बजने की आवाज आई. बुंदेलखंड में किसी कार्यक्रम में खाना खाने की सूचना के लिए बजाया जाने वाला यह परंपरागत यंत्र हुआ करता था.
आवाज सुनते ही कुतिया खाना खाने के लिए रेवन गांव में पहुंच गई, लेकिन देर हो जाने की वजह से सब खाना खाकर उठ गए. इसके बाद ककवारा गांव से रमतूला बजा और कुतिया खाने के लिए वहां दौड़ गई लेकिन वहां भी खाना खत्म हो चुका था.
गांव के ही रहने वाले रुस्तम बताते हैं कि लोग यहां नारियल चढ़ाते हैं और श्रद्धा से इसकी पूजा करते हैं. ककवारा गांव के हरदयाल दीक्षित बताते हैं कि इस कुतिया की मौत के बाद उसे यहीं दफना दिया गया था.
बाद में एक नाई को सपना आया कि इसका चबूतरा बनाया जाए तो लोगों ने इसका चबूतरा बनाया. नव विवाहित दम्पत्ति यहां आशीर्वाद लेने आते हैं.
संस्कृति कर्मी हरगोविंद कुशवाहा बताते हैं कि लगभग चार-पांच सौ साल पहले की बात है कि कुतिया की रेवन और ककवारा के बीच भोजन न मिलने के कारण उसकी मौत हो गयी.
तभी से एक कहावत भी बन गयी रेवन ककवारे की कुतिया. अब लोगों ने मंदिर बना दिया और उसकी पूजा करने लगे हैं.
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