अखाड़ों की आमदनी के कई स्रोत होते हैं. यह न सिर्फ भक्तों के चढ़ावे से मिलता है, बल्कि उनकी संपत्तियों और धार्मिक गतिविधियों से भी जुड़ा होता है.
कई बड़े अखाड़े भारत के प्रमुख मंदिरों का संचालन करते हैं. इन मंदिरों में रोजाना हजारों श्रद्धालु आते हैं और चढ़ावा चढ़ाते हैं. इससे अखाड़ों को करोड़ों रुपये की आय होती है. कई अखाड़े शिक्षण संस्थानों और गौशालाओं का संचालन करते हैं। इनसे भी एक स्थिर आमदनी होती है.
भक्तगण अखाड़ों को सोना, चांदी, नकदी, जमीन, मकान जैसी चीजें दान में देते हैं. यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है, जब राजा-महाराजाओं और अमीर व्यापारियों द्वारा भी बड़े दान दिए जाते थे.
महाकुंभ जैसे बड़े आयोजनों के दौरान राज्य सरकारें अखाड़ों को आर्थिक सहायता देती हैं, जिससे वे आयोजन की तैयारियों और धार्मिक गतिविधियों को सुचारू रूप से चला सकें. कई अखाड़ों के पास बड़े शहरों और तीर्थ स्थलों पर बेशकीमती जमीनें हैं, जिन्हें किराए पर दिया जाता है. इससे उन्हें करोड़ों रुपये की आमदनी होती है.
अखाड़ों को प्राप्त होने वाली इस अकूत संपत्ति का उपयोग धार्मिक और सामाजिक कार्यों में किया जाता है. कुंभ जैसे मेले के आयोजनों में भव्य पंडाल, साधु-संतों के ठहरने और उनके स्वागत में भारी राशि खर्च होती है. इसके अलावा अखाड़ों के आश्रम, मंदिर और अन्य संपत्तियों के मेंटेनेंस में भी बहुत पैसा लगता है.
अखाड़ों में रहने वाले संतों और कर्मचारियों को भत्ते और अन्य सुविधाएं दी जाती हैं. अखाड़ों के संत देश-विदेश में धार्मिक कार्यक्रमों के लिए जाते हैं, जिस पर अच्छा-खासा खर्च होता है.
भारत में कुल 13 प्रमुख अखाड़े हैं, जिनमें से कुछ की संपत्ति हजारों करोड़ रुपये तक आंकी जाती है. एक हजार करोड़ की संपत्ति के साथ निरंजनी अखाड़ा पूरे देश में सबसे अमीर माना जाता है.
निरंजनी अखाड़े के प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक, उज्जैन, वाराणसी, नोएडा, जयपुर, वड़ोदरा आदि जगहों पर मठ और आश्रम है. प्रयागराज और आसपास में 300 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति है.
निर्वाणी अखाड़ा की फैजाबाद, गोंडा, बस्ती और प्रतापगढ़ में हजारों एकड़ जमीन है. यह कई प्रमुख मंदिरों का संचालन करता है. निर्मोही अखाड़ा की बस्ती, मानकपुर और खुर्दाबाद जैसे इलाकों में बेशकीमती भूमि है यह अयोध्या विवाद में भी प्रमुख पक्षकार रहा है. खाकी अखाड़ा के नवाब शुजाउद्दौला के समय में चार बीघा जमीन मिली थी, जो अब कई गुना बढ़ चुकी है. खाकी अखाड़े की बस्ती और अन्य स्थानों पर संपत्ति है.
अखाड़ों को सोसायटी एक्ट के तहत पंजीकृत कराना पड़ता है और आयकर अधिनियम के तहत इन्हें अपनी आय और खर्च का हिसाब देना होता है. आयकर अधिनियम 12ए के तहत इन धार्मिक संस्थाओं को आयकर में छूट मिलती है. 85% आय को चैरिटी में खर्च करना जरूरी है, नहीं तो आयकर विभाग नोटिस जारी कर सकता है. प्रयागराज कुंभ के बाद 13 अखाड़ों को आयकर विभाग की ओर से नोटिस भी भेजे गए थे.