इस बार महाकुंभ मेले में 30 पांटून पुल बनाए गए हैं, जो मेला क्षेत्र के दोनों छोरों को जोड़ते हैं. ये पुल महाकुंभ मेले का अहम हिस्सा हैं और श्रद्धालुओं के लिए आवागमन को सरल बनाते हैं.
पांटून पुल की तकनीक लगभग 2500 साल पुरानी है, जिसे पहली बार फारसी इंजीनियरों ने 480 ईसा पूर्व में विकसित किया था. 1973 में मिस्र की सेना ने स्वेज नहर पार करने के लिए करीब 10 पुलों का निर्माण किया था. तो वहीं 1976 में अमेरिकी सेना ने फ्लोटिंग ब्रिज बनाया था.
संगम और झूंसी फ्लाईओवर के बीच करीब 1.5 किलोमीटर के क्षेत्र में 10 पांटून पुल बनाए जा रहे हैं. इन्हें क्रेन और हाइड्रा की मदद से नदी में स्थापित किया जाता है. पांटून के दोनों तरफ 20-20 मीटर लंबे मोटे रस्से में लकड़ी का एक बड़ा टुकड़ा पानी में डाल दिया जाता है. कुछ दिनों बाद लकड़ी का यह हिस्सा बालू में डूब जाता है जिसके बाद पांटून इधर-उधर नहीं होता.
पांटून में आर्किमिडीज के सिद्धांत का उपयोग किया जाता है. इसमें कुछ भी भरा नहीं होता. जिससे ये ज्यादा वजन के बावजूद पानी में तैरते रहते हैं. हर पांच मीटर पर एक पांटून लगाया जाता है. यानी 100 मीटर के पांटून पुल में 20 पीपों की जरूरत होती है.
इस बार मेले की भीड़ को देखते हुए पांटून पुलों को वन-वे बनाया गया है, यानी एक पुल से केवल एक तरफ ही जाया जा सकता है. ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि इस बार महाकुंभ में काफी बड़ी संख्या में लोग आ रहे हैं.
हर पांटून 5 टन तक का भार सहन कर सकता है. इससे अधिक वजन पड़ने पर यह डूब सकता है. पांटून पुल ज्यादातर उन्ही जगहों पर बनाए जाते हैं जहां पानी गहरा न हो, क्योंकि गहरे पानी में इनके बहने की संभावना ज्यादा होती है. पुल पर भीड़ को लगातार चलने के लिए कहा जाता है ताकि एक जगह सारा वजन न पड़े.
प्रयागराज के आलोपी बाग में पांटून पुल बनाने की वर्कशॉप है. एक पांटून का वजन 52 किंवटल 69 किलो होता है. 30 पांटून पुल बनाने के लिए 17.31 करोड़ रुपए का बजट तय किया गया है. पुल बनाने का खर्च 50 लाख से लेकर 1.13 करोड़ रुपए तक है.
प्रयागराज में बनने वाले ये पांटून 15-20 साल तक उपयोगी रहते हैं. मेले के बाद इन्हें वापस समेट लिया जाता है. पहले ये परेड ग्राउंड में रखे जाते थे लेकिन इस बार इन्हें सरायइनायत के पास कनिहार में स्टोर किया जाएगा. कुछ त्रिवेणीपुरम और परेड ग्राउंड में भी रखे जाएंगे.
यूपी के जिन इलाकों में नदी पर अस्थाई पुल की जरूरत होती है, वहां के सांसद-विधायक भी मांग करते हैं. उन्हें भी अलॉट किया जाता है. यहीं से पांटून जाते हैं. इससे पहले पुल बनाने वाले ठेकेदार ही अगले 3 महीनों तक इनका रखरखाव करेंगे. पुल की मजबूती बनाए रखने के लिए हर तकनीकी पहलू का ध्यान रखा जाता है.
लेख में दी गई ये जानकारी सामान्य स्रोतों से इकट्ठा की गई है. इसकी प्रामाणिकता की जिम्मेदारी हमारी नहीं है.एआई के काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.