यूपी के इस शहर में एशिया का सबसे पुराना छापाखाना?, डेढ़ रुपये में छपी कुरान, रामचरित मानस की 50 हजार प्रतियां
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यूपी के इस शहर में एशिया का सबसे पुराना छापाखाना?, डेढ़ रुपये में छपी कुरान, रामचरित मानस की 50 हजार प्रतियां

UP First Swdeshi Printing Press: राष्‍ट्रीय प्रेस दिवस पर यूपी की ही नहीं देश की पहली स्‍वदेशी प्रिंटिंग प्रेस की कहानी.... 

UP First Swdeshi Printing Press

UP First Swdeshi Printing Press: हर साल 16 नवंबर आज ही के दिन राष्‍ट्रीय प्रेस दिवस मनाया जाता है. इसके पीछे का मकसद लोक‍तांत्रिक समाज में स्‍वतंत्र और जिम्‍मदार प्रेस के महत्‍व को बताता है. साथ ही यह दिन पत्रकारिता के प्रति ईमानदारी, जिम्मेदारी और नैतिक रिपोर्टिंग के प्रति प्रेस की प्रतिबद्धता की याद दिलाता है. राष्‍ट्रीय प्रेस दिवस पर आइये जानते हैं देश की पहली स्‍वदेशी प्रिंटिंग प्रेस के बारे में. 

भारत का पहला स्‍वदेशी प्रिंटिंग प्रेस
दरअसल, भारत में प्रिंटिंग का इतिहास 1556 में शुरू होता है. हालांकि, इसके 200 साल बाद तक भारत में क‍िसी भारतीय ने प्रिंटिंग प्रेस की दुनिया में कदम नहीं रख पाया था. 1857 की क्रांति के एक साल बाद 1858 में लखनऊ में नवल किशोर नाम से एक प्रिंटिंग प्रेस खोला गया. इसके जनक मुंशी नवल किशोर थे. नवल किशोर ने प्रिंटिंग की दुनिया में ऐसी छाप छोड़ी कि उन्‍हें भारतीय प्रिंटिंग का 'प्रिंस' कहा जाने लगा. मुंशी नवल किशोर ने ही लखनऊ में एशिया का सबसे पुराना छापाखाना लखनऊ में स्‍थापित किया.  तो आइये जानते हैं कौन थे मुंशी नवल किशोर?. 

कौन थे मुंशी नवल किशोर? 
जानकारी के मुताबिक, मुंशी नवल किशोर यूपी के अलीगढ़ के रहने वाले थे. वह अमीर भार्गव जमींदार परिवार से आते थे. नवल किशोर के परिवार में उनके पुरखों ने मुगलों के यहां अच्छी हैसियत में नौकरियां की थीं. परिवार में संस्कृत पढ़ने लिखने की परंपरा थी. युवा नवल किशोर ने भी इसको अपनाया. इतना ही नहीं उन्‍होंने फारसी भी सीखी.  इसके बाद नवल किशोर ने 1952 में आगरा कॉलेज में दाखिला लिया. फिर 1954 में वह लाहौर चले गए. वहां उन्होंने कोह-ए-नूर प्रेस में नौकरी कर ली. तभी पंजाब का पहला उर्दू अखबार कोह-ए-नूर छापता था. एक साल उन्होंने यहां अप्रेंटिसशिप की. 

लखनऊ में खोला छापाखाना 
यहां से लौटने के बाद नवल किशोर ने खुद का अखबार साफिर ए आगरा शुरू किया. कुछ ही दिन बाद लाहौर से वापस आगरा आ गए. इसके बाद नवल किशोर ने अंग्रेजों का दिल जीता. साल 1958 में वह लखनऊ आ गए. तब यहां अंग्रेजों की हुकुमत थी. उसी साल नवंबर महीने में उन्होंने ब्रिटिश अफसरों की मंजूरी से एक प्रेस लगाई. उत्तर भारत का पहला उर्दू अखबार अवध अखबार निकालना शुरू किया. जल्दी ही अंग्रेज प्रशासन उन्हें प्रिंटिंग करने का काम बड़े पैमाने पर देने लगा. 

1.5 रुपये में छाप दिया कुरान 
इस प्रेस ने सबसे पहले ब्लैक एंड व्हाइट छपाई की. फिर धीरे धीरे कलर प्रिंटिंग भी शुरू कर दी. माना जाता है कि नवल प्रिंटिंग प्रेस ने 5000 से अधिक किताबों के टाइटल छापे. इसके बाद एक के बाद कई किताबें छापीं. इसी दौरान उन्होंने मिर्जा गालिब से संपर्क साधा. उनके प्रकाशन बने. 1869 में उनके प्रेस ने पहला उर्दू का नॉवेल छापा, जो नाजिर अहमद का लिखा था. इसी दौरान उन्होंने फैसला किया कि वो कुरान का संस्करण बहुत सस्ते दामों में छापेंगे. इसका दाम तब डेढ़ रुपये रखा गया. ये खूब बिकी. उन्‍होंने तुलसीदास की रामचरित मानस भी छापी, जो 1873 में 50,000 प्रतियां बिकीं. सुरदास की सूर सागर भी उनके प्रेस से छपी. 1880 में उनके प्रेस ने तुलसीदास का अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित किया. 

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