प्रेमानंद महराजा का मूल नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे है. उनका जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में हुआ. ब्राह्मण परिवार से आने वाले प्रेमानंद महाराज के पिता का नाम शंभू पांडे और मां रामा देवी हैं.
प्रेमानंद महाराज का परिवार शुरू से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति का रहा है. उनके दादाजी ने भक्तिभाव में संन्यास ले लिया था. यही नहीं उनके पिता शंभू नाथ पांडे और और भाई भी भक्ति में लीन रहते. वह रोजाना गीता का पाठ करते थे.
प्रवचन के दौरान एक बार प्रेमानंद महाराज ने भक्तिभाव का बचपन में उन पर कैसे असर पड़ा, इससे जुड़ा किस्सा सुनाया था. उन्होंने बताया जब वह 5वीं क्लास मेंथे तो उन्होंने गीता पढ़ना शुरू कर दी.
इसके बाद आध्यात्म में उनका मन रमता चला गया. जब वह 13 साल के हुए त उन्होंने ईश्वर के भक्ति मार्ग पर चलने की ठान ली और ब्रह्मचारी बनने का फैसला कर लिया.
इसके बाद वे घर का त्याग कर संन्यास की राह पर चल पड़े. इसके साथ ही उनका नाम अनिरुद्ध पांडे से बदलकर आर्यन ब्रह्मचारी हो गया.
संन्यास का शुरुआती जीवन बेहद संघर्षमय रहा. वह कानपुर से आकर वाराणसी में रहने लगे. दिन में तीन बार गंगा स्नान और इसके बाद तुलसी घाट पर भगवान शिव और मां पार्वती का पूजा पाठ.
इसके बाद भिक्षा मांगने निकलते. प्रेमानंद महाराज बताते हैं कि वह दिन में केवल 15 मिनट ही मंदिर के बाहर बैठते. अगर उनको कुछ मिलता तो वह भोजन करते वरना गंगाजल पीकर ही रहते. कई-कई दिन तक भूखे पेट सोए.
प्रेमानंद महाराज के वृंदावन आने की कहानी भी दिल छूने वाली है. एक दिन अनजान साधु ने उनको हनुमत धाम विश्वविद्यालय में श्री चैतन्य लीला और रासलीला देखने का निमंत्रण भेजा.
पहले तो प्रेमानंद महाराज ने इनकार कर दिया लेकिन जब साधु ने बार-बार अनुरोध किया तो वह मान गए. जब उन्होंने महीने भर ये दोनों लीलाएं देखी तो उन्हें बहुत मजा आया.
इसके बाद जब प्रेमानंद महाराज ने इन लीलाओं को देखने के लिए साधु से कहा तो उन्होंने बताया कि यह लीलाएं पूरी हो चुकी हैं. अगर आप रोजाना लीलाएं देखना चाहते हैं तो आपको वृंदावन आना होगा.
इसके बाद वह वृंदावन आ गए और राधा वल्लभ संप्रदाय से जुड़ गए और इसके बाद यहीं के हो गए. उनका नाम आर्यन ब्रह्मचारी से प्रेमानंद महाराज हो गया. यहां वह भगवान कृष्ण और राधारानी की आराधना में जीवन अर्पित कर दिया है.