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ऋषि- मुनि, साधु, संत, महर्षि, संन्यासी और महात्मा में क्या होता है अंतर, पढ़े-लिखों को भी पता नहीं होंगी ये बात

सनातन धर्म में प्राचीन समय से ही साधु,संत, ऋषि, महर्षि, और मुनियों का नाम बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता रहा है. लेकिन वर्तमान समय में अधिक जानकारी न होने के कारण इन सभी को एक दूसरे का पर्याय मान लिया गया है. आइये आज आपको बताते हैं इनमें कितना अंतर होता है.

ऋषि

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ऋषि

ऋषि उन विद्वानों को दिया जाने वाला नाम है जिन्होंने वैदिक ग्रंथों की रचना की. परब्रह्म के मुख से जिस ऋषि ने जिस मंत्र को सुना और मनुष्य जाति को बताया उसी ऋषि से वह मंत्र जाना गया. ऋषि वह होता है जो क्रोध, लोभ, मोह, माया, अहंकार, ईर्ष्या आदि से कोसों दूर रहता है.

 

साधु

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साधु

जो लोग अपना अधिकतर समय ध्यान में बिताते हैं उन्हें साधु कहते हैं. साधु बनने के लिए वेदों का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक नहीं है. जो लोग ध्यान के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करते हैं. शास्त्रों में उल्लेख है कि जो लोग काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि से दूर रहते हैं उन्हें भी साधु कहा जाता है.

संत

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संत

संत की उपाधि उन लोगों को दी जाती है, जो सत्य का अनुसरण करते हैं,  ये लोग आत्‍मज्ञानी और सत्यवादी होते हैं. ऐसे व्यक्ति जिसका नियंत्रण अपनी वाणी पर है, जिसके मन में कोई उद्वेग नहीं है, जो लालसा से मुक्त है, जिसका अपनी भूख प्यास पर नियंत्रण है और जो इच्छाओं से रहित है वही संत है.

मुनि

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मुनि

मुनि वे आध्यात्मिक ज्ञानी लोग होते हैं जो अधिकतर समय मौन रहते हैं या बहुत कम बोलते हैं। लेकिन ऋषियों को वेदों और शास्त्रों का पूरा ज्ञान होता है। वे मौन रहने का व्रत भी लेते हैं। जो ऋषि घोर तपस्या के बाद मौन धारण करने की शपथ लेते हैं, वह मुनि कहलाते हैं.

महर्षि

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महर्षि

महर्षि की उपाधि उन महात्माओं को दी जाती है जिन्हें दिव्य चक्षु की प्राप्ति होती है. बता दें कि मनुष्य को तीन प्रकार के चक्षु प्राप्त होते हैं. ज्ञान चक्षु, दिव्य चक्षु और परम चक्षु. इसके साथ जिन्हें ज्ञान चक्षु की प्राप्ति होती है, उन्हें ऋषि कहा जाता है और जो परम चक्षु को जागृत कर लेते हैं, उन्हें महर्षि कहा जाता है

अंतिम महार्षि !

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अंतिम महार्षि !

जानकारी के मुताबिक अंतिम महर्षि दयानंद सरस्वती हुए थे.  उनके बाद किसी को भी महर्षि की उपाधि प्राप्त नहीं हुई. महर्षि दयानन्द सरस्वती आधुनिक भारत के चिन्तक और आर्य समाज के संस्थापक थे. 'वेदों की ओर लौटो' यह उनका ही दिया हुआ प्रमुख नारा है.

महात्मा

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महात्मा

ऐसा कोई भी व्यक्ति जो अपने ज्ञान और कर्मों द्वारा साधारण मनुष्यों से ऊपर उठ जाये उसे महात्मा, अर्थात महान आत्मा कहते हैं. इनका संन्यासी अथवा साधु होना आवश्यक नहीं.  एक व्यक्ति जो गृहस्थ जीवन में भी उच्च आदर्श का प्रदर्शन करता है, वो भी महात्मा कहलाता है. कोई मनुष्य अपने संयम, आदर्श और आचरण से महात्मा बन सकता है.

संन्यासी

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संन्यासी

संन्यासी शब्द संन्यास से बना है जिसका अर्थ है त्याग करना. इसलिए जो त्याग करता है उसे संन्यासी कहते हैं. संन्यासी संपत्ति, गृहस्थ जीवन या वैवाहिक जीवन, सामाजिक और सांसारिक जीवन का त्याग करता है. वह योग और ध्यान का अभ्यास करते हुए अपने आराध्य की भक्ति में लीन रहता है.

स्पष्ट सीमाएं नहीं

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स्पष्ट सीमाएं नहीं

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सभी नाम भिन्न-भिन्न पहलुओं को ध्यान में रखकर दिये गए हैं. इनकी कोई स्पष्ट सीमाएं नहीं है. उदाहरण के लिए एक ऋषि संत भी हो सकता है. एक मुनि साधु भी हो सकता है और एक महार्षि महात्मा भी हो सकता है.

DISCLAIMER

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DISCLAIMER

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