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मुलायम से जिंदगी में क्या नहीं सीख पाए अखिलेश, नेताजी ने कैसे बनाया परिवार-पार्टी से भी बड़ा मुकाम

Mulayam Singh Yadav: राम मनोहर लोहिया, राज नारायण और चंद्रशेखर ने मुलायम को राजनीति के दांव पेंच सिखाए.1967 में मुलायम सिंह पहली बार विधायक चुन लिए गए. संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर वे विधायक चुने गए थे. आपातकाल लगा तो वह भी जेल गए और 19 महीने वहीं रहे.

अखिलेश का नया सियासी प्रयोग

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अखिलेश का नया सियासी प्रयोग

मुलायम सिंह यादव ने यूपी की राजनीति में MY यानी मुस्लिम यादव समीकरण के सहारे सत्ता हासिल की, लेकिन मंडल यानी जातिवादी राजनीति के मुकाबले कमंडल यानी हिन्दुत्व की लहर मजबूत होने के साथ उनकी राजनीतिक पकड़ हाथ से बालू की तरह सरक गई. अखिलेश ने सबक लेते हुए इसे PDA यानी पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक की सियासत का रूप दिया और लोकसभा चुनाव में पहली बार अपने बलबूते बीजेपी को पछाड़ा.

अखिलेश सुधार रहे गलती

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अखिलेश सुधार रहे गलती

मुलायम सिंह यादव पार्टी के साथ परिवार को एकजुट करने में महारथी थे.मुलायम ने दिग्गजों की परवाह किए बिना 2012 में अखिलेश को सीएम बनाया, लेकिन कुर्सी पाते ही अखिलेश ने ऐसे फैसले लिए जो परिवार और पार्टी के नेताओं को नागवार गुजरे. अखिलेश ने 2016 में शिवपाल को ही मंत्रिपद से बर्खास्त कर दिया. पार्टी और परिवार में फूट से सत्ता गंवानी पड़ी. अखिलेश शिवपाल, रामगोपाल और उनके बेटे-बेटियों को राजनीतिक ओहदे देकर वही गलती अब सुधार रहे हैं.

समझौता करने की आदत

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समझौता करने की आदत

गांव की जमीनी राजनीति से शिखर पर पहुंचे मुलायम गठबंधन चलाने और राजनीतिक हालातों के मुकाबले समझौता करने और नरमी दिखाने में भी माहिर थे. उन्होंने दूसरे दलों के बड़े नेताओं पर सीधे निजी हमलों से खुद को दूर रखा. सभी से मधुर संबंध रहे. लेकिन अखिलेश उनसे अलग दिखते हैं. उन्होंने 2019 में संसद में पीएम मोदी को दोबारा सत्ता पाने का आशीर्वाद तक दे दिया, अखिलेश और सीएम योगी के बीच तीखी जुबानी जंग और पीएम मोदी पर सीधे वार अखिलेश की अलग शैली को दिखाता है.

निजी जीवन की तुलना

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निजी जीवन की तुलना

अखिलेश यादव और उनके पिता में एक फर्क निजी जीवन को लेकर है. जहां मुलायम सिंह यादव ने साधना गुप्ता के साथ अपने संबंध को बहुत बाद में स्वीकार किया. वहीं अखिलेश डिंपल यादव संग विवाहित हैं और न सिर्फ संसद बल्कि राजनीति से दूर रहकर भी डिंपल को हमेशा साथ रखते हैं. अपने निजी जीवन को दुनिया को बताने के मामले में अखिलेश अपने पिता से अधिक सहज हैं. 

सैफई में जन्म

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सैफई में जन्म

मुलायम सिंह यादव पिता सुघर सिंह और मां मूर्ति देवी के घर 22 नवंबर 1939 को जन्मे थे. उनका जन्म यूपी के इटावा के सैफई गांव में हुआ था. आज सैफई की पहचान मुलायम सिंह से है.

आगरा यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट थे मुलायम

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आगरा यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट थे मुलायम

मुलायम सिंह यादव ने न सिर्फ राजनीति की बल्कि वे राजनीतिशास्त्र के स्टूडेंट भी थे. उन्होंने इटावा से बीए किया और शिखोहाबाद से पढ़ाई की. आगे चलकर आगरा यूनिवर्सिटी से एमए भी किया. पढ़ाई के बाद वह शिक्षक बन गए. करहल मेनपुरी में उन्होंने शिक्षण की शुरुआत की. 1974 आते आते वह लेक्चरार हो गए थे.

समाजवादी आंदोलन से जुड़े

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समाजवादी आंदोलन से जुड़े

राम मनोहर लोहिया, राज नारायण और चंद्रशेखर ने उनको राजनीति के दांव पेंच सिखाए.1967 में मुलायम सिंह पहली बार विधायक चुन लिए गए. संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर वे विधायक चुने गए थे. आपातकाल लगा तो वह भी जेल गए और 19 महीने वहीं रहे. 1977 में वे राज्य सरकार में मंत्री हुए.1980 में मुलायम लोकदल के अध्यक्ष हो गए.आगे चलकर यह जनता दल बना.

कारसेवकों पर चली थी गोली

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कारसेवकों पर चली थी गोली

मुलायम सिंह पहली बार 1989 में यूपी के मुख्यमंत्री बने. 1990 में, संघ परिवार और विश्व हिंदू परिषद के कारसेवक अयोध्या पहुंचे थे. इस दौरान कारसेवक और पुलिस के बीच टकराव हुआ. सीएम यादव ने उस वक्त भीड़ को नियंत्रित करने के प्रयास में पुलिस को गोली चलाने की इजाजत दी. राज्य सरकार के आधिकारिक रिकॉर्ड की रिपोर्ट है कि कम से कम 17 कारसेवक मारे गए थे.

1991 में हारे चुनाव

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1991 में हारे चुनाव

नवंबर 1990 में वी.पी. सिंह के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के गिरने के बाद, यादव चंद्रशेखर की जनता दल (सोशलिस्ट) पार्टी में शामिल हो गए और कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री के रूप में पद पर बने रहे. उनकी सरकार तब गिर गई जब अप्रैल 1991 में कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर हुए घटनाक्रम के बाद अपना समर्थन वापस ले लिया. 1991 में यूपी में चुनाव हुआ तो मुलायम सिंह चुनाव हार गए.

1992 में बनाई समाजवादी पार्टी

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1992 में बनाई समाजवादी पार्टी

1992 में, यादव ने अपनी समाजवादी पार्टी बनाई. उन्होंने 1993 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनावों के लिए बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया. समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन ने राज्य में भाजपा को सत्ता में लौटने से रोक दिया. 1993 में, यादव दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.

उत्तराखंड कार्यकर्ताओं पर चली गोली

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उत्तराखंड कार्यकर्ताओं पर चली गोली

उत्तराखंड के लिए अलग राज्य की मांग के आंदोलन पर उनका रुख उतना ही विवादास्पद था जितना कि 1990 में अयोध्या आंदोलन पर उनका रुख. 2 अक्टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर में उत्तराखंड कार्यकर्ताओं पर गोली चलाई गई.1995 में मुलायम सिंह का साथ बसपा ने छोड़ दिया.

2003 में तीसरी बार बने थे सीएम

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2003 में तीसरी बार बने थे सीएम

साल 2003 में बहुजन समाज पार्टी के पर्याप्त बागी विधायकों ने निर्दलीय और छोटे दलों के समर्थन से यादव को मुख्यमंत्री बना दिया. उन्होंने सितंबर 2003 में तीसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. बाद में वे 2007 का विधानसभा चुनाव मायावती से हार गए.