सामान्यतया 300 से 500 रुपये में मिलने वाला उल्लू अब अवैध बाजार में 20 गुना रेट पर मिल रहा है. दिवाली के वक्त उल्लू की कीमत 2 से 10 हजार रुपये हो जाती है.
दीपावली के दौरान उल्लुओं के शिकार को रोकने के लिए वन विभाग और स्थानीय पुलिस की संयुक्त कार्रवाई बेहद जरूरी है. इससे उल्लुओं की तस्करी और शिकार पर नकेल कसी जा सकती है. साथ ही, उल्लुओं के संरक्षण के लिए समाज के हर वर्ग को इस दिशा में जागरूक किया जाना भी आवश्यक है.
भारत में उल्लुओं की तस्करी के कई मामले सामने आ चुके हैं, जिसमें इन दुर्लभ प्रजातियों को भारी कीमतों पर बेचा जाता है. इसके चलते उनके संरक्षण के प्रयासों को बड़ा झटका लगता है.
वन्यजीव कार्यकर्ताओं का मानना है कि तंत्र-मंत्र और जादू-टोने से जुड़े अंधविश्वास न केवल उल्लुओं के शिकार को बढ़ावा देते हैं, बल्कि इसके चलते इन संकटग्रस्त प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है.
अंधविश्वासों के चलते उल्लुओं की तस्करी और अवैध शिकार की घटनाएं बढ़ जाती हैं. विशेष रूप से दीपावली के समय उल्लुओं की मांग में वृद्धि देखी जाती है, जिससे वन्यजीवों के अस्तित्व पर खतरा गहराता है.
उत्तराखंड वन विभाग ने सभी जिलों में उल्लुओं के शिकार पर निगरानी बढ़ाने के निर्देश दिए हैं. विभाग ने ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलाने की योजना भी बनाई है,जिससे स्थानीय लोगों को उल्लुओं के संरक्षण और उनके शिकार से होने वाले खतरों के बारे में जानकारी दी जा सके.
उल्लू की बलि देने या शिकार करने पर कम से कम 3 साल या इससे अधिक की सजा का प्रावधान है. उल्लू को विलुप्त प्रजाति के जीवों की श्रेणी में जगह दी गई है.
भारतीय वन्यजीव अधिनियम 1972 के तहत उल्लुओं की सभी प्रजातियों को संरक्षित किया गया है. बावजूद इसके, अंधविश्वास और तंत्र-मंत्र के कारण इन प्रजातियों का शिकार जारी हैं, जो इनके संरक्षण के प्रयासों को प्रभावित कर रहा है.
दुनियाभर में उल्लू की लगभग 250 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 50 खतरे में हैं. भारत में उल्लुओं की लगभग 36 प्रजातियां हैं, जिनमें से कई संकटग्रस्त श्रेणी में आती हैं.
भारत में कई क्षेत्रों में यह भ्रामक मान्यता है कि दीपावली के दौरान तांत्रिक क्रियाओं से उल्लुओं की बलि देने से धन, संपत्ति और इच्छाएं पूरी होती हैं. तांत्रिक और काले जादू से जुड़े लोग उल्लुओं के नाखून, पंख, आंखों और चोंच जैसी अंगों का इस्तेमाल तंत्र-मंत्र के दौरान करते हैं.
उल्लू को मां लक्ष्मी का वाहन माना जाता है. दीपावली के दौरान अंधविश्वास और तंत्र-मंत्र से जुड़े कारणों से उल्लुओं के शिकार का खतरा काफी बढ़ जाता है. इस समय उल्लुओं की बलि देने की घटनाएं सबसे ज्यादा होती हैं.