महाकुंभ के पहले रसूलाबाद घाट का बदलेगा नाम, बदन पर 56 घाव खाने वाली छप्पन छुरी का नाम हटाने की तैयारी
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महाकुंभ के पहले रसूलाबाद घाट का बदलेगा नाम, बदन पर 56 घाव खाने वाली छप्पन छुरी का नाम हटाने की तैयारी

Prayagraj Rasoolabad Ghat: प्रयागराज महाकुंभ 2025 से पहले योगी सरकार गंगा किनारे घाटों का कायाकल्‍प कर रही है. इस बीच रसूलाबाद घाट नाम बदलने की योजना चल रही है. 

Prayagraj Rasoolabad Ghat

Prayagraj Rasoolabad Ghat: प्रयागराज महाकुंभ 2025 से पहले रसूलाबाद घाट का नाम बदला जा सकता है. योगी सरकार महाकुंभ 2025 से पहले रसूलाबाद घाट के नाम बदलने पर विचार कर रही है. जिला प्रशासन के स्‍तर पर नए नामों को लेकर मंथन चल रहा है. सीएम योगी आदित्‍यनाथ ने प्रमुख सचिव नगर विकास अमृत अभिजात और मेलाधिकारी विजय किरन आनंद को रसूलाबाद घाट का नाम बदलने का निर्देश दिया है. रसूलाबाद घाट का इतिहास वर्षों पुराना है. 

रसूलाबाद घाट का नाम कैसे पड़ा? 
प्रयागराज में पांच प्रमुख अरैल, गऊघाट, सरस्वती घाट और रसूलाबाद घाट हैं. स्‍थानीय लोगों का कहना है कि रसूलाबाद घाट का नाम गायिका जानकी बाई इलाहाबादी उर्फ छप्पन छुरी के नाम पर रखा गया है. बताया गया कि उनके शरीर पर 56 घाव थे, इसलिए उन्‍हें छप्‍पन छुरी का नाम रखा. जानकी बाई मूल रूप से बनारस की रहने वाली थीं. जानकी के पिता शिव बालक जानकी पेशे से पहलवान थे. एक महिला के संपर्क में आने के बाद पिता ने उनकी मां का त्याग कर दिया. इसके बाद मां मानकी और जानकी बाई प्रयागराज में आकर बस गए.

छप्‍पन छुरी का साधना स्‍थल था रसूलाबाद घाट 
जानकी बाई इलाहाबादी रसूलाबाद घाट पर ही आकर गीत गाती थी. इसी घाट पर बैठकर साधना करती थीं. सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' उनका गीत सुनने आया करते थे. यहीं पर ही महादेवी वर्मा और चंद्रशेखर आजाद की अंत्‍येष्टि स्‍थल है. स्‍थानीय लोगों का कहना है कि यहां महराजिन बुआ रहती थीं. अकेले महराजिन बुआ निडर होकर शव का दाह संस्‍कार करती थीं. रसूलाबाद श्मशान घाट पर चिताओं को जलाने का काम महाराजिन बुआ ने 10 साल की उम्र से ही शुरू कर दी थी. स्थानीय लोगों के मुताबिक, महाराजिन बुआ ने 14 लाख के करीब दाह संस्कार करवाए थे. महाराजिन बुआ की जिंदगी के संघर्ष पर फिल्म भी बनी है. 

महाराजिन बुआ अकेली करती थीं शव का दाह संस्‍कार 
प्रयागराज चकिया तहसील की रहने वाली महाराजिन बुआ के पिता लक्ष्मी नारायण मिश्र पुरोहित थे. सात भाई-बहनों में गुलाब महाराजिन सबसे बड़ी लड़की थीं. महज 7 साल की उम्र में गुलाब की शादी अरैल के शंकरजी त्रिपाठी के साथ हुई और 10 साल की उम्र में उनका गौना हो गया. दाह संस्कार के दौरान सारे कर्मकांड और चिता जलाने का कार्य वो खुद ही करती थीं. अपने जीवन के करीब 80 साल उन्होंने रसूलाबाद घाट पर ही बिताए. 2002 में 91 साल की उम्र में बुआ का देहांत हो गया. 

महादेवी वर्मा का घर 
रसूलाबाद घाट पर ही अमर शहीद क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की अंत्येष्टि स्थल है. यहां आने वाले लोग अक्सर इस जगह की ऐतिहासिकता को जानकर दंग रह जाते हैं. इसके अलावा इसी घाट पर ही हिंदी साहित्य की जानी-मानी लेखिका व कवित्री महादेवी वर्मा का प्राचीन घर भी स्थित है. इसके साक्ष्य आज भी मौजूद हैं.

चंद्रशेखर आजाद की अंत्‍येष्टि स्‍थल 
बताया जाता है कि आजादी के आंदोलन के समय चंद्रशेखर आजाद प्रयाग आया करते थे. 27 फरवरी 1931 को अल्फ्रेड पार्क (अब आजाद पार्क) में फिरंगियों से लड़ते-लड़ते जब पिस्तौल में एक गोली बची तो उन्होंने अपनी कनपटी पर मार ली. काफी देर तक कोई ब्रिटिश अफसर उनके शव के पास नहीं गया. फिर पैर पर गोली मारी गई. मौत की पुष्टि करने के बाद ही अफसर वहां गए. रसूलाबाद घाट पर जिस विशालकाय दरख्त के नीचे उनकी अंत्येष्टि हुई थी, वहां भारतीयों ने पूजा शुरू कर दी. 

 

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