Mangalwar Ke Upay: मंगलवार का दिन बजरंगबली को समर्पित है. अगर आप भी भूत-प्रेत बाधा की समस्या से परेशान हैं, तो मंगलवार को श्री हनुमत तांडव स्तोत्र का पाठ करना चाहिए.
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Mangalwar Ke Upay: आज आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि है. आज दिन मंगलवार है. हिंदू धर्म में मंगलवार का दिन हनुमानजी को समर्पित है. उन्हें बजरंगबली, मारुति नंदन, अंजनीपुत्र के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि मंगलवार को हनुमानजी की पूजा करने से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. मंगलवार को लोग हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं. इसके साथ ही श्री हनुमत तांडव स्तोत्र का पाठ भी करना चाहिए. मान्यतानुसार अगर इसका पाठ सही उच्चारण के साथ किया जाए तो यह अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है. इतना ही नहीं, मंगल, राहु आदि ग्रहों के कष्टों से भी जातक को मुक्ति मिल जाती है. इसका नियमित पाठ करने से भूत प्रेत, रोग, दुर्घटना आदि का भय नहीं रहता है. आइए पढ़ते हैं श्री हनुमत तांडव स्तोत्र...
श्री हनुमत तांडव स्तोत्र
॥ श्रीहनुमत्ताण्डवस्तोत्रम् ॥
वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम् । रक्ताङ्गरागशोभाढ्यं शोणापुच्छं कपीश्वरम्॥
भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं, दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम् ।
सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं, समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम् ॥ १॥
सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न ।
इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराऽधिनाथ आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः ॥ २॥
सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना, भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ ।
कृतौ हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ, विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम् ॥ ३॥
सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः, कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम् ।
प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभुः ॥ ४॥
प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं, फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत् ।
विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्, सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम् ॥ ५॥
नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम् ।
सुपुच्छगुच्छतुच्छलङ्कदाहकं सुनायकं विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम् ॥ ६॥
रघूत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रीकाप्रदर्शकम् ।
विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम् सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम् ॥ ७॥
नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता महासहा यता यया द्वयोर्हितं ह्यभूत्स्वकृत्यतः ।
सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम् ॥ ८॥
इमं स्तवं कुजेऽह्नि यः पठेत्सुचेतसा नरः कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः ।
प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा न शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह ॥ ९॥
नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेऽनङ्गवासरे । लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम् ॥ १०॥
॥ इति श्री हनुमत तांडव स्तोत्र ॥
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