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Karwa Chauth Vrat Katha: इन कथाओं के बिना अधूरी माना जाता है करवा चौथ व्रत, जरूर करें पाठ

करवाचौथ पर महिलाएं निर्जला व्रत रखकर पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सुहागिन व्रत रखती हैं. इस बार करवा चौथ 20 अक्टूबर रविवार को मनाया जाएगा. इस व्रत में करवा चौथ की कथा पढ़ी जाती है.

पतिव्रता करवा धोबिन की कथा!

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पतिव्रता करवा धोबिन की कथा!

पुराणों के अनुसार, करवा नाम की पतिव्रता धोबिन पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे एक गांव में रहती थी. उसका पति बूढ़ा था. एक दिन जब वह नदी के किनारे कपड़े धो रहा था तभी एक मगरमच्छ धोबी के पैर अपने दांतों में दबाकर यमलोक ले जाने लगा. उसने घबराई आवाज में करवा..! करवा..! कहकर अपनी पत्नी को पुकारने लगा. 

 

यमराज से प्रार्थना

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यमराज से प्रार्थना

पति की पुकार सुनकर धोबिन वहां पहुंची, तो मगरमच्छ उसके पति को यमलोक पहुंचाने ही वाला था. तब करवा ने मगर को कच्चे धागे से बांध दिया और मगरमच्छ को लेकर यमराज के द्वार पहुंची. करवा ने यमराज से अपने पति की रक्षा करने की गुहार लगाई और बोली- हे भगवन मगरमच्छ ने मेरे पति के पैर पकड़ लिए हैं. आप मगरमच्छ को इस अपराध के दंड-स्वरूप नरक भेज दें.

 

करवा ने कही श्राप देने की बात

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करवा ने कही श्राप देने की बात

करवा की पुकार सुन यमराज ने कहा- अभी मगर की उम्र बची है, ऐसे में मैं उसे अभी यमलोक नहीं भेज सकता. इस पर करवा ने कहा- अगर आपने मेरे पति को बचाने में सहायता नहीं कि तो मैं आपको श्राप देकर नष्ट कर दूंगी. करवा का साहस देख यमराज डर गए और मगर को यमपुरी भेज दिया. करवा के पति को दीर्घायु होने का वरदान दिया. मान्यता है कि तब से कार्तिक कृष्ण की चतुर्थी को करवा चौथ व्रत का प्रचलन में आया.

 

करवा चौथ व्रत कथा-2

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करवा चौथ व्रत कथा-2

एक अन्य प्रचलित कथा के अनुसार, "एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी. कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सेठानी सहित उसकी सातों बहुएं और उसकी बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा. रात के समय जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने बहन से भी भोजन कर लेने को कहा. इस पर बहन ने कहा- भाई, अभी चांद नहीं निकला है. चांद के निकलने पर उसे अर्घ्य देकर ही मैं आज भोजन करूंगी.

 

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साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे, उन्हें अपनी बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देख बेहद दुख हुआ. साहूकार के बेटे नगर के बाहर चले गए और वहां एक पेड़ पर चढ़कर आग जला दी. घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा- देखो बहन, चांद निकल आया है. अब तुम उन्हें अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो. साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा- देखो, चांद निकल आया है, तुम लोग भी अर्घ्य देकर भोजन कर लो. ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा- बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसकी रोशनी को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं.

 

Karwa Chauth vrat Katha

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Karwa Chauth vrat Katha

साहूकार की बेटी अपनी भाभियों की बात को अनसुनी करते हुए भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया. इस प्रकार करवा चौथ का व्रत भंग करने के कारण विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश साहूकार की लड़की से नाराज हो गए. गणेश जी की अप्रसन्नता के कारण उस लड़की का पति बीमार पड़ गया और घर में बचा हुआ सारा धन उसकी बीमारी में लग गया.

 

Karwa Chauth vrat Katha in Hindi

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Karwa Chauth vrat Katha in Hindi

साहूकार की लड़की को जब अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसे पश्चाताप हुआ. उसने गणेश जी से क्षमा प्रार्थना की और विधि-विधान पूर्वक चतुर्थी का व्रत शुरू कर दिया. उसने उपस्थित सभी लोगों का श्रद्धानुसार आदर किया और आशीर्वाद ग्रहण किया. इस प्रकार उस लड़की की श्रद्धा-भक्ति को देख गणपति प्रसन्न हुए और उसके पति को जीवनदान दिया. उसे सभी तरह के कष्टों से मुक्त कर धन, संपत्ति और वैभव का आशीर्वाद दिया.

 

Karwachauth vrat Katha

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Karwachauth vrat Katha

एक अन्य प्रचलित कथा के मुताबिक, "एक बार अर्जुन तपस्या करने नीलगिरि पर्वत गए. द्रौपदी ने सोचा कि यहां हर समय दिक्कतें आती  रहती हैं. उनको दूर करने के लिए अर्जुन तो यहां हैं नहीं, इसलिए कोई उपाय करना चाहिए. यह सोचकर उन्होंने भगवान श्री कृष्ण का ध्यान किया. भगवान वहां उपस्थित हुए तो द्रौपदी ने अपने कष्टों के निवारण के लिए कोई उपाय बताने को कहा. इस पर श्रीकृष्ण बोले- एक बार पार्वती जी ने भी शिव जी से यही प्रश्न किया था तो उन्होंने कहा था कि करवाचौथ का व्रत गृहस्थी में आने वाली छोटी- मोटी विघ्न-बाधाओं को दूर करने वाला है. यह पित्त प्रकोप को भी दूर करता है. इस पर श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को एक कथा सुनाई, जो इस प्रकार है- 

 

करवाचौथ कथा

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करवाचौथ कथा

प्राचीनकाल में एक धर्मपरायण ब्राह्मण के सात पुत्र तथा एक पुत्री थी. बड़ी होने पर पुत्री का विवाह कर दिया गया. कार्तिक की चतुर्थी को कन्या ने करवा चौथ का व्रत रखा. सात भाइयों की लाड़ली बहन को चंद्रोदय से पहले ही भूख सताने लगी. उसका फूल सा चेहरा मुरझा गया. भाइयों के लिए बहन की यह वेदना असहनीय थी. अत: वे कुछ उपाय सोचने लगे. उन्होंने बहन से चंद्रोदय से पहले ही भोजन करने को कहा, पर बहन न मानी. तब भाइयों ने स्नेहवश पीपल के वृक्ष की आड़ में प्रकाश करके कहा- देखो ! चंद्रोदय हो गया. उठो, अर्ध्य देकर भोजन करो. बहन उठी और चंद्रमा को अर्ध्य देकर भोजन कर लिया. भोजन करते ही उसका पति मर गया. वह रोने चिल्लाने लगी. दैवयोग से इन्द्राणी देवदासियों के साथ वहां से जा रही थीं. रोने की आवाज़ सुन वे वहां गईं और उससे रोने का कारण पूछा.

 

करवाचौथ व्रत कथा

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करवाचौथ व्रत कथा

ब्राह्मण कन्या ने सब हाल कह सुनाया. तब इन्द्राणी ने कहा- ‘तुमने करवा चौथ के व्रत में चंद्रोदय से पूर्व ही अन्न-जल ग्रहण कर लिया, इसी से तुम्हारे पति की मृत्यु हुई है. अब यदि तुम मृत पति की सेवा करती हुई बारह महीनों तक प्रत्येक चौथ को यथाविधि व्रत करो, फिर करवा चौथ को विधिवत गौरी, शिव, गणेश, कार्तिकेय सहित चंद्रमा का पूजन करो और चंद्र उदय के बाद अर्ध्य देकर अन्न-जल ग्रहण करो तो तुम्हारे पति अवश्य जीवित हो उठेंगे.’

 

द्रौपदी ने रखा व्रत

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द्रौपदी ने रखा व्रत

ब्राह्मण कन्या ने अगले वर्ष 12 माह की चौथ सहित विधिपूर्वक करवा चौथ का व्रत किया. व्रत के प्रभाव से उनका मृत पति जीवित हो गया. इस प्रकार यह कथा कहकर श्रीकृष्ण द्रौपदी से बोले- ‘यदि तुम भी श्रद्धा एवं विधिपूर्वक इस व्रत को करो तो तुम्हारे सारे दुख दूर हो जाएंगे और सुख-सौभाग्य, धन-धान्य में वृद्धि होगी.’ फिर द्रौपदी ने श्रीकृष्ण के कथनानुसार करवा चौथ का व्रत रखा. उस व्रत के प्रभाव से महाभारत के युद्ध में कौरवों की हार तथा पाण्डवों की जीत हुई. 

 

Disclaimer:

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Disclaimer:

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