सावन में हर साल लोग कावड़ यात्रा पर जाते हैं. हिंदू धर्म में पवित्र गंगा जल को अमृत के समान पूजनीय और महत्वपूर्ण माना गया है. यही कारण है कि पूजा-पाठ से लेकर हर शुभ काम में गंगा जल का विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है.
सावन के पावन महीने के साथ ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत हो जाती है. जगह-जगह श्रद्धालु बम-बम भोले के जयकारों के साथ गंगा जल लेने यात्रा पर निकले पड़ते हैं.
धार्मिक मान्यता है कि श्रावण मास में भोले बाबा को गंगाजल से जलाभिषेक करने से शिव भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
सावन महीने को भगवान शिव का प्रिय माह कहा जाता है. इस दौरान भोले बाबा की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति को शुभ-फल और उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती है.
सावन माह में लोगों को कांवड़ लेकर हरिद्वार, काशी, उज्जैन आदि जगहों पर जाते हैं. क्या आपको पता है कि कांवड़ में लाया गया गंगाजल सबसे पहले मंदिर ही क्यों ले जाते हैं. आइए जानते हैं इसका कारण
अगर किसी व्यक्ति की कोई मनोकामना है तो इसकी पूर्ति के लिए जातक पवित्र नदी से जल मिट्टी के पात्र या किसी अन्य बर्तन में भरकर ले जाते हैं और महादेव को जलाभिषेक करते हैं.
घर से निकलकर नदी से जल भरकर शिवलिंग के जलाभिषेक के बीच की जो भी यात्रा होती है उसे कांवड़ यात्रा कहते हैं.
कांवडिए गंगाजल लाकर घर पर नहीं जाते हैं. वह सीधे शिवलिंग पर अर्पित किया जाता है. ऐसा धर्म शास्त्रों में उल्लेखित है कि कांवड जल सीधा शिवलिंग को अर्पित करें.
कांवड़ में नदी से जल भरने के बाद उसे भगवान शिव पर अर्पित किया जाता है. बता दें कि घर से मंदिर दर्शन करने जाने पर हम सभी प्रसाद खरीदते हैं, जिसे भगवान को भोग लगाने के बाद खाते हैं.
श्रावण मास में आपकी शिव साधना सफल हो इसके लिए घर में गंगाजल लाने, उसे रखने और भगवान शिव पर चढ़ाने से जुड़े जरूरी नियम जरूर पता होना चाहिए.
ऐसा ही कुछ कांवड़ में लाए गए जल के साथ होता है. बता दें कि हिंदू धर्म के अनुसार ऐसी मान्यता है कि कांवड़ में भरा हुआ गंगाजल शिवलिंग पर चढ़ाने के बाद प्रसाद के रूप में परिवर्तित हो जाता है.
इसलिए गंगाजल को शिवलिंग पर अर्पित किया जाता है. भोले के भक्त बहुत ही भक्तिभाव से जल चढ़ाते हैं.
यहां दी गई सभी जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. Zeeupuk इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.